बुधवार, 26 दिसंबर 2012

दादा कबहु न आना मेरे देश

कल  देश के महामहिम राष्ट्रपति महोदय का बनारस आगमन काशी  हिन्दू विश्वविद्यालय  में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की 150 वीं जयंती पर आयोजित विशेष दीक्षांत समारोह के अवसर पर हुआ था।पूरा बनारस चील्ह पों से ग्रसित था ।पता नहीं ये दिल्ली के गर्माहट का भय था या जो भी लेकिन लोगो की दबी जुबान आवाज तो सुनाई पड  ही रही थी कि जितना सुरक्षा व्यवस्था महामहिम शब्द का आडम्बर हटाने की कवायद करने वाले माननीय राष्ट्रपति जी के लिए थी पुरे देश से सिपाही लाठी डंडे से लैश ,उनके लिए लगाये गए थे ,अगर उसका हजारवा हिस्सा भी सामान्य आदमी को मिल जाता तो शायद दिल्ली को इस ठंडी में गरम होने का अवसर नहीं मिलता।
हर तरफ रोक थाम कही एम्बुलेंस रोके गए थे जिसमे रोगियों की तड़प थी तो कही सटीक महामना के प्रतिमा के सामने एक शव यात्रा को रोका  गया था ,महामना की आडम्बर हीन  जीवन पर इस महान  आडम्बर का लाजवाब तड़का देखने लायक था।एक बुजुर्ग को साईकिल समेत पुलिस कर्मियों ने उठा कर जब चौराहे से किनारे किया तो उनका धैर्य जवाब दे दिया उनकी बद्बदाहत थी की  ,,उ कहे क नेता जब उन्हें जनता से ही इतना भय हौ ,काश अपने से उतर के आगे बढ़ के सबसे मिलते ,,,बात भारत में तो सम्भव तो नहीं है लेकिन इतना जनता त्रस्त पहले कभी किसी राष्ट्रपति या  के आने पर नहीं हुई थी,कुछ लोगों का कहना था की ये दिल्ली  में अचानक उपजी गर्मी की देन है ,ये  जिसकी भी  देन  हो लेकिन इतनी जलालत पहली बार देखने को मिली मनो पूरा बनारस चिल्ला रहा था की अगर ऐसे ही आना है तो ,,दादा कबहु न आना मेरे देश ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

                   
                               चाय की महानता .............

इस देश में चाय की भी   अपनी एक संस्कृति है  जिसकी अनगिनत  महान उपलब्धियां  है।ऐसे में जब हम बनारस शहर के होते हैं तो बनारसी संस्कृति में चाय का तड़का क्या अमेरिका   क्या जापान सबको अपने में समेट  लेता है ।यहाँ  चाय दुकानों जिस पर देश विदेश के मुद्दों पर चर्चाएँ होती हैं,वो अगर शहर के एक छोर से शुरू की जाय तो महामना की तपोस्थली  द्वार  स्थित टंडन टी  स्टाल से शुरू होती है जो कभी समाजवादी नेताओं की सिद्धपीठ होती थी, उसके ठीक  सामने अब जहाँ आज प्रेस की ईमारत खडी है मैनेजर की चाय दुकान हुआ करती थी,उसके आगे चौराहे   पर फक्कड़ की चाय दुकानं और दाल  में घी की तरह केशव पान ,आगे दूध और काम रोक कर   चाय पिला   कर  लोगों की राय सुनने और अपनी कहने   वाले मन्ना सरदार  ,आगे बढे तो अस्सी की चाय दुकानों चाहे पप्पू हो या कोई ,ये महज चाय दुकान नहीं राष्ट्रीय मंच हैं,आगे  बढिए तो इसी तर्ज पर सोनार पूरा , कमच्छा , गोदोलिया ,मैदागिन ,तेलियाबाग ,इंग्लिशियालाइन  फूल मंडी  के  सामने ,सरीखे ऐसी कई जहाँ  स्वस्थ स्वस्थ चर्चाएँ होती हैं ।लेकिन तब भी चाय की महानता  के प्रति इतना गंभीर नहीं हो पाया था।
लेकिन इसी चाय दुकान की उप्लब्धि गुजरात के तिबारा चुने मुख्यमंत्री माननीय मोदी जी भी हैं। बनारस न सही गुजरात ही लेकिन चाय दुकान की उपलब्धि है।कल एक स्व वित्त पोषित नेता जी ने कहा की यार काँग्रेस   गुजरात में  हुई इसका  नहीं ,बीजेपी   आगे  गयी इसका भी क्षोभ नहीं पर मोदी साहब जैसे का इतना महिमा मंडन  अपच कर रहा है। दो सीनियर सिटिजन की तरफ अग्रसर  की  का जिक्र कर   देना लाजमी होगा एक ने कहा की मोदी क आगे  जाना साम्प्रदायिकता को बढ़ावा है ,तो दुसरे ने छूटते ही कहा अब साम्प्रदायिकता जैसे  शब्द छोडिये नहीं तो हो  इतिहास हो जायेंगे।  इतिहास बिना भूगोल कैसे बनेगा ।
तब तक पीछे से एक सज्जन    कलमाड़ी भी चाय  काफी  वाले थे ।एक और ने   टांग अदाई बोले कहा इ तुलना टीक नहीं है।खैर मैं जब अहलूवालिया साहब ने चाय को राष्ट्रीय पेय बनाने की हुंकार भरी थी तो मैंने बनारस से  उनका विरोध जताते हुए मठ्ठे  को राष्ट्रीय पेय बनाने की गुहार की थी,पर आज लगता है चाय राष्ट्रीय नहीं तो राजनैतिक पेय घोषित हो जाना चाहिए।

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

                          क्या अमीरी रेखा भी कभी तय होगी

भारत जैसे स्वचालित राष्ट्र में गरीबों के लिए तो आये दिन हदें तय की जाती हैं,लेकिन क्या अमीरी की भी कोई रेखा तय करने की जरुरत नहीं समझी जानी चाहिए।गरीब कितने में खा सकता है कितने में सो सकता है कितने में उसके बच्चों की परवरिश हो सकती  है ये सारी हदें तो तय की जाती हैं लेकिन क्या रातो रात महलों   में तफ्बील हो रही झोपड़ियों की कोई सीमा बद्धिता होगी।सच तो यह है की गरीबी  रेखा नहीं देश में अमीरी रेखा  की जरुरत पर बहसेआम होनी चाहिए।
एक ग्राम प्रधान जब चुनाव लड़ता है तब की उसकी आर्थिक स्थिति और जीतने के बाद पर भी चर्चा जरुरी है ,ये पद जैसे जैसे ऊपर बढ़ता है ,आर्थिक विकास उतना ही उन्नति शील होता है।साइकिल मोटर साइकिल की जगह स्कोर्पियो ले लेती है।समाजसेवा और राजनीती को अनमोल रोजगार समझा जाना कत्तई गलत नहीं है।अम्बानी के पास कितना रहेगा ,ये भी तय होगा 
  

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

बीएचयूं प्रशासन की हेकड़ी
युवा मन जब आंदोलित होता है तो बड़े से बड़े को बौना साबित कर देता है।कारन वह निश्छल होता है।काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव पर लगे ताले को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने जब तत्काल ख़ारिज कर छात्र संघ चुनाव शीघ्रादिशीग्र संपन्न कराने  का आदेश पारित कर दिया तो भी विश्वविद्यालय प्रशासन की हेकड़ी काबिले तारीफ है ।ये लोग देश में लोकतंत्र का पाठ पढवाते है पर अपने परिसर में लोकतंत्र को पचा पा रहे हैं।कारन इन्हें भय है की इनकी लूट धराशायी होगी ।ये पकडे जायेंगे ,पकडे तो आज भी जाते हैं लेकिन छात्रों के इस सशक्त मंच के न होने से ये मुक्त ही नहीं उन्मुक्त भवरे  बन धन पुष्पों पर कुंडली मार  बैठे हैं।इस मदमस्त हाथी पर छात्र संघ कोचवान न बन बैठे इसका इनको भय है,और शुरू से रहा है।
   कल कुछ पुराने साथियों से चर्चा हो रही थी जिसमे एक बात निकल कर आयी जिसका जिक्र कर देना उचित है ,उनका कहना था की छात्र संघो की शुचिता की भी तो कोई गारंटी नहीं है।एक समय के बाद ये मंच भी ठेके कोटे की दर्बारगिरी  में लग जाता है।चुनाव लड़ने के लिए विचार नहीं तलाशे जाते धन उगाही को प्रथम अध्याय बनाया जाता है ।ऐसी बहुतायत बाते आयी,जो बहुत बेदम भी नहीं थी।मैंने कहा छात्र संघो की उपज  कितनी  भी गिरेगी  ,महामना की फोटो देखते ही उसकी आत्मा काँप जाएगी,,पर ये उनकी छाती पर बैठ के मूंग दल रहे है।वैसे भी ये मंच कितना हु गलत होगा उसका प्रतिशत कभी सौ नहीं होगा उसी में वो तारा भी निकलेगा जो अकेले दिशा निर्धारण भी करेगा और प्रकाश पुंज भी होगा,,,,।

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

एक मित्र जो पान  के शौक़ीन आदमी हैं एक दिन कहे ये पान की दुकाने रामायण के चरित्र कालनेमी की तरह लगती है,इतना ही नहीं कुछ मशहूर पान दुकानों के नाम के आगे काल्नेमी जोड़ के वो बोल रहे थे बड़ा सटीक सुनने  में लग रहा था ,फिर भी मुझे उनकी बात हजम नहीं हुई तो मैंने पूछा की वो तो ठीक है लेकिन कालनेमी अच्छे चरित्र के रूप में तो देखे नहीं जाते तो आपने इन लोगो को ये संज्ञा क्यों दी ? इसके पीछे भी उनका बड़ा प्यारा और निर्दोष तरह का जवाब था कि देखिये  जब हनुमान जी संजीवनी लाने  की जल्दीबाजी में थे और सुशेन वैद्य ने इसके लिए निर्धारित अवधी तय की थी तो काल्नेमी ने उन्हें रस्ते में डिस्टर्ब करने की कोशिश की थी जिससे वो सही समय पर न पहुच पाए,अब तो अगर आप पान न भी खाते होंगे तो जान गए होंगे की क्यों पान  दुकानदारों  को काल्नेमी की संज्ञा दी महोदय ने ।
  वो बात अलग है की आज काल्नेमियों की अलग अलग वरायटी हाजिर है आपकी सेवा में , पान वाले और  दुकान वाले क्या खाक कल्नेमीहोंगे असल काल्नेमी तो बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं में अप्सराओं के साथ आराम फरमा  रहे है और दहाड़े मार रहे है की ,,,दम  है तो बढ़ आगे,,,
भारतीय विकास की आंधी में अगर सबसे अधिक किसी को झटका लगा तो वो है गाँधी का चरखा ,,,सबसे ज्यादा चरमराय़ी  तो ये स्वावलंबी बनाने वाली मशीन जिसे भारतीय जन मानस ने सिर्फ लकड़ी के औजार ,तकुये और सूत तक सीमित करके देखा ,,,,आज सब कुछ है निःसंदेह लेकिन स्वावलंबन नहीं है ,चरखा एक जीवन पद्धति है जो आपको अमेरिका नहीं देता लेकिन अमेरिका जरुरत भी नहीं होने देता ।