ये साल बड़ा होनहार निकला ,,तुम ,,,,में अपनापन नजर आता था,,,,आज ,,,,आप ,,,अपना सा लगने लगा है। ठंढे बिस्तर में आंहे भरता कीचड पुत्र भी इस साल ऐसा ऐसा खिला ऐसा खिला ,,,मानो शेर जंगल में गीदड़ तलाश रहा हो। अरसों से घर कि मुखिया का बोझ ढो ,,थकी हारी अम्मा को भी उसके बेटे ने ,,खुद जिम्मेदारी ले,,उन्हें राहत बरपी ,,,इत्यादि,,,,,,तो इस क्रम में अगले बरस को और होनहार होने कि सोचना बेमानी नहीं होगी । इसी आस्था और विश्वास के साथ आप सबको नए साल के उगते सूरज कि शानदार चमक का स्वागत नए उमंग के साथ करने कि ढेरों शुभ मनोभावों संग,,,नव वर्ष की असीम शुभकामनाएं।
मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013
युवाओं के नाम पाती ……
युवा सोंच अरोक होती है । युवा अपरिवर्तनशील में भी परिवर्तन कि क्षमता रखता है । अवसर बनाता है अवसर उसके लिए न तलाशने का विषय होता है न ही इन्तजार का ।युवा अतिसंवेदनशील एवं नितांत त्यागी होता है । उससे बेहतर लोकसेवी की उम्मीद नहीं की जा सकती है । देश कि सीमा पर नौजवान होता है और देश के खेत और खलिहानों में खून पसीने एक कर देश का पेट भी नौजवान ही भरता है । नौजवान विवेकानंद होता है ,नौजवान सुभाषचंद्र और भगत होता है , कहीं गांधी तो कहीं पटेल होता है और हर कुछ से पहले वो बिगड़ों की नकेल होता है ।
आज देश में हर जगह युवाओं के लिए चिल्लहट लगाए जा रहे हैं ,युवा मौन है क्योंकि युवाओं के लिए ,, न फूलपुर होता है न गुजरात होता है उसके लिए देश ही सबसे बड़ा सौगात होता है ,,। कहीं कहीं युवाओं के स्वछन्द आकलन करने कि युवा क्षमता से भयग्रस्त उसे झंडाबरदार और खूटे से बधने कि सलाह देते हैं । लेकिन आज समय आ गया है जब युवा अपनी सोच पर जिए । केंद्रीय और राजकीय राजनीती में अपनी सक्रियता का आभास कराये वो भी बेझंडा होकर । लगभग एक दशक पहले एक बुजुर्ग मनीषी ने एक सवाल मुझसे किया कि ,,तुम किस धारा के हो ,,मेरा अगंभीर जवाब उन्हें बड़ा गम्भीर कर दिया ,,,मैं धारा में नहीं धरा में आस्था रखता हूँ ,,मैं बेधार ही सही लेकिन जिस धारा में धरा हो उससे आप मुझे जोड़ सकते हैं ।
अतः आज समय है जब माँ भारती को पुनः उसके छोटे बेटों की तलाश है ,,,,युवाओं उठो ,, क्या गुजरात ,क्या बंगाल ,,पूरा देश तुम्हारे बाँहों में समाने को आतुर है ,,,
हिन्द के नौजवानों उठो शान से ,,,
युवा सोंच अरोक होती है । युवा अपरिवर्तनशील में भी परिवर्तन कि क्षमता रखता है । अवसर बनाता है अवसर उसके लिए न तलाशने का विषय होता है न ही इन्तजार का ।युवा अतिसंवेदनशील एवं नितांत त्यागी होता है । उससे बेहतर लोकसेवी की उम्मीद नहीं की जा सकती है । देश कि सीमा पर नौजवान होता है और देश के खेत और खलिहानों में खून पसीने एक कर देश का पेट भी नौजवान ही भरता है । नौजवान विवेकानंद होता है ,नौजवान सुभाषचंद्र और भगत होता है , कहीं गांधी तो कहीं पटेल होता है और हर कुछ से पहले वो बिगड़ों की नकेल होता है ।
आज देश में हर जगह युवाओं के लिए चिल्लहट लगाए जा रहे हैं ,युवा मौन है क्योंकि युवाओं के लिए ,, न फूलपुर होता है न गुजरात होता है उसके लिए देश ही सबसे बड़ा सौगात होता है ,,। कहीं कहीं युवाओं के स्वछन्द आकलन करने कि युवा क्षमता से भयग्रस्त उसे झंडाबरदार और खूटे से बधने कि सलाह देते हैं । लेकिन आज समय आ गया है जब युवा अपनी सोच पर जिए । केंद्रीय और राजकीय राजनीती में अपनी सक्रियता का आभास कराये वो भी बेझंडा होकर । लगभग एक दशक पहले एक बुजुर्ग मनीषी ने एक सवाल मुझसे किया कि ,,तुम किस धारा के हो ,,मेरा अगंभीर जवाब उन्हें बड़ा गम्भीर कर दिया ,,,मैं धारा में नहीं धरा में आस्था रखता हूँ ,,मैं बेधार ही सही लेकिन जिस धारा में धरा हो उससे आप मुझे जोड़ सकते हैं ।
अतः आज समय है जब माँ भारती को पुनः उसके छोटे बेटों की तलाश है ,,,,युवाओं उठो ,, क्या गुजरात ,क्या बंगाल ,,पूरा देश तुम्हारे बाँहों में समाने को आतुर है ,,,
हिन्द के नौजवानों उठो शान से ,,,
शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013
पंडितजी बद्बदाये जा रहे थे ,,,केतनो रटावा ,,इ सब सूरत हराम हवे, खाली बढ़िया कपडा ,बढ़िया टाई ,बढ़िया फीस ,,पावरोटी वाली टिफिन ,,,,चटनी के पाकिट के साथ ,,,कायदे से गोड़ परत रहलन ,वोकरे जगह गुड मार्निंग ,,,,इ कुल फुटानी बरदास हो जात अगर कुछ बनी जाते सब ,,,,लेकिन,,,त ,,,,,तब तक पंडिताइन का धैर्य जवाब दे दिया ,,,सबेरे सबेरे लईकन प पर गयला ,,,,कुल कमी हमराही बच्च्वान में दिखाल तोहके ,,,सोना जैसन लईकन क दिन खराब ,,,,पंडित पर्पराए ,,,इ अपने सोनवन के मढ़ा के रख ला ,,,जब सोना महंग होइहें त कामे आयी ,,,,वैसहू हम खाली तोहरे लईकवन के ही ना कहत है ,,इ देशवे का हाल हौ ,,,,इ सीटी बजावे वाले ज्ञान दूकान प हमार गुस्सा हौ ,,,कुल स्कूल फटाहा कपडा वालन के पढ़वात रहलन ,,,लेकिन कौनो ऐसन न हौ जो एक आ ई एस ना बनवले हौ ,,अ इ साला शुरुवे में टाई बध्वाय के वोसे ऐसन घिरना पैदा कराय देत हवे की ,,,पढ़ लिख के फटाहा पहिरे बदे परशान हो जान ,,,कौनो के पल्ले के अलावा एक अधिकारी बनावे क इतिहास न बा ,,,कुल खपड़ेल्वे सैक्ड़न क इतिहास बतोराले बाडन ,,,,तबले साइकिल क घंटी बजावले कुरता पहिने दूधवाला चिल्लाया ,,दूध लेल पंडित जी ,,पैसा खोदात हौ ,,देखे के हौ ,,,,,पैसा के नाम पर पंडितजी क गुस्सा फुर्र
मंगलवार, 3 सितंबर 2013
जग जाहिर है जब जब प्रकृति के साथ अप्राकृतिक व्यवहार हुआ है तब तब विनाश गले का हार बनती है । अभी कुछ दिन पहले काशी हिन्दू विश्विविद्यालय में आपदा प्रबंधन पर चर्चा के दौरान कुछ पर्यावरण के विद्वानों ने नदियों को जोड़ने की कवायद की । मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कोई ऐसी नदी है जो किसी दूसरी नदी से जुडी न हो । हां नए विकास के माडल और नए पर्यावरण के विद्वानों ने अपने इन्ही कृत्रिम सोचों से प्राकृतिक आपदाओं को बखूबी न्योता दिया है । एकाक न्योतों की तादात और बढ़ जायेगी । हाँ एक फायदा जरूर होगा जैसा की होता रहा है ,,कुछ पर्यावरण का जबरन झोरा ढोने वालों के आलमारियों में कुछ गद्दियों की संख्या बढ़ जायेगी ,,या बैंक बचत में कई शून्य । प्रकृति जब जब छेड़ी जाती है धरासायी होता है सामान्य जन जीवन ,,जो तैयार रहे अगले के लिए,,,,,,,,
एक तरफ पंद्रह साल से पहले आप हाईस्कूल नहीं पास कर सकते ,,तो फिर मेरे समझ में नहीं आता की तेरह साल की बच्ची सुषमा को लखनऊ विश्वविद्यालय में एम्एससी में दाखिला कैसे मिल गया या इसके पहले की पढ़ाई उसको इतने कम उम्र में करने की छूट कहाँ से मिली ,,इस तरह की चर्चाएँ अक्सर अख़बारों में बखानी जाती हैं ,,उस बिटिया की तेजी से कोई ऐतराज नहीं है उसे कोटि शह प्रशंसा मिलनी चाहिए ,,,पर ये व्यवस्था कैसे मिलती है ,,कृपया शिक्षाविद महोदय लोग सुझाएँ ।
गुरुवार, 29 अगस्त 2013
दो करोड़ खटाई में,,,,,,,,,,,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के रचयिता पंडित मदन मोहन मालवीय ने १९१६ में जिस जगह फावड़ा चलाकर विश्वविद्यालय की नीव रखी थी ,,,वह जगह खाली छोड़ उससे हट कर बाद में विश्वविद्यालय का निर्माण शुरू किया । कारन की वह गंगा का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था ,और प्रयाग में नदियों के उफान में बाकायदा उनकी समझ थी । अतः उस जगह को स्थापना स्थल के रूप में जाना और पूजा जाता था ,,महामना के फावड़े के निशानी के रूप में सजोया गया था । पर कुलपति डॉ लालजी सिंह ने वहां दो सौ करोड़ की लागत से ट्रामा सेंटर बनवा डाला । जब बाढ़ की विभीषिका में बनारस जलमग्न होना शुरू हुआ तो उन्हें अपने ट्रामा सेंटर की याद आई और उसे देखने सदल पहुचे ,,पूरा प्रस्ताव मानों बाढ़ में आहें भर रहा हो ,,हो सकता है कोई रास्ता कुलपति महोदय को मिल ही जाय और मोटी रकम खर्च कर के पानी को अन्दर आने से कुछ और रोक भी लें ,,लेकिन अदूरदर्शी होने के वजह से राष्ट्र का दो सौ करोड़ तो खटाई में ही दिख रहा है ,,ऊपर से महामना के प्रथम फावड़े की अनमोल निशानी भी निगल ली इस ट्रामा सेंटर ने ।ये देश को फायदा कितना देगा भगवान् जाने पर तत्काल कुछ बिचौलियों की जेबों में तो हरियाली आयी ही होगी ।
सबसे बड़ा कारन की इस इतने बड़े विश्वविद्यालय को समझने में तीन बरस बीत जाते है यहाँ के कुलपतियों को ,,फलतः ये जिन चंद लोगों से घिरे होते हैं उन्ही को बीएचयू समझते हैं ,,और कितने लोगों की नौकरियां गणेश परिक्रमा में ही पूरी ही नहीं होती बल्कि पुष्पित और पल्लवित होती है ,,,महामना जैसे युग पुरुष ने विपन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण कराया देश को संपन्न बनाने के लिए ,,,और उनके मानस पुत्र सम्पन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण करा रहे हैं लेकिन देश को शायद विपन्न बनाने के लिए ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के रचयिता पंडित मदन मोहन मालवीय ने १९१६ में जिस जगह फावड़ा चलाकर विश्वविद्यालय की नीव रखी थी ,,,वह जगह खाली छोड़ उससे हट कर बाद में विश्वविद्यालय का निर्माण शुरू किया । कारन की वह गंगा का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था ,और प्रयाग में नदियों के उफान में बाकायदा उनकी समझ थी । अतः उस जगह को स्थापना स्थल के रूप में जाना और पूजा जाता था ,,महामना के फावड़े के निशानी के रूप में सजोया गया था । पर कुलपति डॉ लालजी सिंह ने वहां दो सौ करोड़ की लागत से ट्रामा सेंटर बनवा डाला । जब बाढ़ की विभीषिका में बनारस जलमग्न होना शुरू हुआ तो उन्हें अपने ट्रामा सेंटर की याद आई और उसे देखने सदल पहुचे ,,पूरा प्रस्ताव मानों बाढ़ में आहें भर रहा हो ,,हो सकता है कोई रास्ता कुलपति महोदय को मिल ही जाय और मोटी रकम खर्च कर के पानी को अन्दर आने से कुछ और रोक भी लें ,,लेकिन अदूरदर्शी होने के वजह से राष्ट्र का दो सौ करोड़ तो खटाई में ही दिख रहा है ,,ऊपर से महामना के प्रथम फावड़े की अनमोल निशानी भी निगल ली इस ट्रामा सेंटर ने ।ये देश को फायदा कितना देगा भगवान् जाने पर तत्काल कुछ बिचौलियों की जेबों में तो हरियाली आयी ही होगी ।
सबसे बड़ा कारन की इस इतने बड़े विश्वविद्यालय को समझने में तीन बरस बीत जाते है यहाँ के कुलपतियों को ,,फलतः ये जिन चंद लोगों से घिरे होते हैं उन्ही को बीएचयू समझते हैं ,,और कितने लोगों की नौकरियां गणेश परिक्रमा में ही पूरी ही नहीं होती बल्कि पुष्पित और पल्लवित होती है ,,,महामना जैसे युग पुरुष ने विपन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण कराया देश को संपन्न बनाने के लिए ,,,और उनके मानस पुत्र सम्पन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण करा रहे हैं लेकिन देश को शायद विपन्न बनाने के लिए ।
बुधवार, 14 अगस्त 2013
देश में ६७ वाँ आजादी का जश्न मनाने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं ,रंगाई पोताई चालू है ,कुछ टूटे फूटे ,भूले और छूटे भी लीप पोत दिए जायेंगे । देश की तरक्कियां गिनाई जाएँगी ,फिर से कुछ कश्मे वायदे होंगे । संस्कारशाला सा माहौल रहेगा ,,महापुरुषों के सिद्धांतों पर चलने की सीख दी जाएँगी ,,,,दुकान डलिया बंद रहेगी ,छात्रों के लिए घुमक्कड़ी का दिन सा होगा ,,,,फिर साल भर के लिए इस भारी खुराक का अंत ,,,,,,कुछ इस तरह से फिर हम जुटेंगे गणतंत्र की तैयारियों में कितना दिन ही बचा है मात्र पांच ही महीने न ,,,,,,फिर भी रश्मों रिवाज की फितरतों से ऊपर उठ कर ,,,,बन्दे मातरम् से लबरेज होना ,,,,,जय हिन्द जय भारत
सदस्यता लें
संदेश (Atom)