सोमवार, 20 जनवरी 2014

काशी  हिन्दू विश्व्विद्यालय  को महज एक शिक्षण संस्थान नहीं अपितु एक चिंतन स्थल के रूप में देखा जाता है ,चिंतनशीलता एवं लोकतान्त्रिक तथा राजनैतिक भारत को सुसंगठित एवं मजबूत करने कि दृष्टि से ही यहाँ राधाकृष्णन से लेकर आचार्य नरेंद्रदेव ,जैसे लोग स्वयं महामना के उसूलों के नजदीक थे ,,कारण राष्ट्र निर्माण सबके केंद्रीय भूमिका में था । लेकिन आज का विश्व्विद्यालय लगता है लोकतान्त्रिक ढांचे को अपना दुश्मन मानता है ,चिंतनशीलता एवं समजवादिता का अपने को अंग नहीं समझता है ,,कितना हास्यास्पद है कि एक खुद में बड़ा समाज समाज से या समाजशीलता से ही मुह मोड़ने में अपनी तटस्थता का मिथ्या सबूत देने को आतुर है । कुछ दिन पहले अखबारो के माध्यम से जान पड़ा कि प्रो आनंद कुमार जो खुद एक जाने माने समाजशास्त्री हैं ,चिंतक हैं ,प्रोफेसर शब्द से तो विश्व्विद्यालय के नीतिको  को खासा प्रेम  है वो इस तमगे से भी जड़ित हैं उन्हें भाषण के लिए प्रवेश नहीं दिया गया ,,उन्हें आम आदमी पार्टी से बनारस लोकसभा लड़ने की सम्भावना के तहत । मैं नहीं जानता आनन्द कुमार जी यहाँ से चुनाव लड़ेंगे या नहीं पर यह जरूर जानता हूँ कि कितने लोग यहाँ से भाषण करने के बाद विभिन्न जगहों से चुनाव लड़े हैं या लड़ते हैं ,,,आजादी के संग्राम में भी यहाँ एक तरफ गांधीवादियों की तो दुसरे तरफ क्रांतिकारियों के ठिकानो और वैचारिक विभिन्नताओं के बाद भी एकता की अनेकानेक कहानियां मिलती हैं । फिर किस संविधान को आड़े आते देख किसी विद्वान ,किसी राजनेता को या किसी समाजशास्त्री को विश्व्विद्यालय प्रशासन बेईज्जत करता है । और फिर किस मुह से पुनः आमंत्रण देता है और खातिरदारी करता है जब वो कही सत्तासीन हो जाता है । क्या यहाँ लोकतान्त्रिक चर्चा ,,राजनैतिक चर्चा अपराध घोषित किया जा चूका है ।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

 सेवा में
              श्री श्यामदेव राय चौधरी 
                 माननीय विधायक
                 शहर दक्षिणी 
                  वाराणसी 

महोदय 
           विश्व की प्रचीनतम  धार्मिक एवं पौराणिक  नगरी एवं शिक्षा की निर्विवादित राजधानी काशी को वाराणसी नाम देने वाली नदी असि बरसों से नाले की  गाली सुन शहर का गन्दा पानी ढोने  को विवश है  । इस के उद्धार हेतु कटिबद्ध शहर के युवाओं और बुद्धजीवियों का एक समूह असि बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले  सालों से संघर्ष कर रहा है । लेकिन क्षोभ कि दिन प्रतिदिन नदी में इमारतें तनती जा रही हैं । प्रशासनिक उदासीनता इस कदर जारी है मानो नदी की जमीन के कब्जे के लिए उनकी मौन स्वीकृति हो । एक तरफ पूरे विश्व में जल संरक्षण को बढ़ावा देने की बात होती है वही दूसरी तरफ नदियां ही पाटी जाती हैं । जिक्र करना लाजमी होगा कि इस नदी का अति धार्मिक और पौराणिक महत्व रहा है ,जिसका जिक्र महाभारत ,जवालोपनिषद ,वामन पुराण सरीखे तमाम धर्म ग्रंथों में है । धार्मिक महत्व से इतर यह एक तरफ बाढ़ काल में जहा शहर को जलभार से उबारती थी वही दूसरी तरफ जल स्तर को नियंत्रित करने में महत्व्पूर्ण भूमिका अदा करती है । इसे आज कही चुपचाप प्रशासन पाइप से प्रवाहित करने की जुगत में है तो कही ,,इसके किनारे पचास मीटर के दायरे को हरित पट्टी घोषित कर निर्माण प्रतिबंधित करने की बात कर पल्ला झाड़ लेती है । 
                  अतः आप महानुभाव से निवेदन है कि काशी की स्मिता और धार्मिक पहचान बरकरार रखने के हमारे इस पहल को नैतिक समर्थन व आशीर्वाद दें । जिससे नदी को उसकी धार और बहाव मिल सके ,,काशी सुरक्षित और संरक्षित हो सके । 

सधन्यवाद 


                                                                                                                          गणेश शंकर चतुर्वेदी 
                                                                                                                               (संयोजक )

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

ये साल बड़ा होनहार निकला ,,तुम ,,,,में अपनापन नजर आता था,,,,आज ,,,,आप ,,,अपना सा लगने लगा है। ठंढे बिस्तर में आंहे भरता कीचड पुत्र भी इस साल ऐसा ऐसा खिला ऐसा खिला ,,,मानो शेर जंगल में गीदड़ तलाश रहा हो। अरसों से घर कि मुखिया का बोझ ढो ,,थकी हारी अम्मा को भी उसके बेटे ने ,,खुद जिम्मेदारी ले,,उन्हें राहत बरपी ,,,इत्यादि,,,,,,तो इस क्रम में अगले बरस को और होनहार होने कि सोचना बेमानी नहीं होगी । इसी आस्था और विश्वास के साथ आप सबको नए साल के उगते सूरज कि शानदार चमक का स्वागत नए उमंग के साथ करने कि ढेरों शुभ मनोभावों संग,,,नव वर्ष की असीम शुभकामनाएं। 

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

युवाओं के नाम पाती ……
युवा सोंच अरोक होती है । युवा अपरिवर्तनशील में भी परिवर्तन कि क्षमता रखता है । अवसर बनाता है अवसर उसके लिए न तलाशने का विषय होता है न ही इन्तजार का ।युवा अतिसंवेदनशील एवं नितांत त्यागी  होता है । उससे बेहतर लोकसेवी की उम्मीद नहीं  की जा सकती है । देश कि सीमा पर  नौजवान होता है और देश के खेत और  खलिहानों में खून पसीने एक कर देश का पेट भी नौजवान ही भरता है । नौजवान विवेकानंद   होता है ,नौजवान सुभाषचंद्र और भगत होता है , कहीं गांधी तो  कहीं पटेल होता है और हर कुछ से पहले वो   बिगड़ों की नकेल होता है ।
आज देश में हर जगह युवाओं के लिए चिल्लहट लगाए जा रहे हैं ,युवा मौन है क्योंकि युवाओं के लिए ,, न फूलपुर होता है न गुजरात होता है उसके लिए  देश ही सबसे बड़ा सौगात होता है ,,। कहीं कहीं युवाओं   के स्वछन्द आकलन करने कि युवा क्षमता से भयग्रस्त उसे झंडाबरदार  और खूटे से बधने कि सलाह देते हैं । लेकिन आज समय आ गया है जब युवा अपनी सोच पर जिए । केंद्रीय और राजकीय राजनीती में अपनी सक्रियता का आभास कराये वो भी  बेझंडा होकर । लगभग एक दशक पहले एक बुजुर्ग मनीषी ने एक सवाल मुझसे किया कि ,,तुम किस धारा के हो ,,मेरा अगंभीर जवाब उन्हें बड़ा गम्भीर कर दिया ,,,मैं धारा में नहीं धरा में आस्था रखता हूँ ,,मैं  बेधार ही सही लेकिन जिस धारा में धरा हो उससे आप मुझे जोड़ सकते हैं ।
अतः आज समय है जब माँ भारती  को पुनः उसके छोटे बेटों की  तलाश है ,,,,युवाओं उठो ,,  क्या गुजरात ,क्या बंगाल ,,पूरा देश तुम्हारे बाँहों में समाने को आतुर है ,,,
हिन्द के नौजवानों उठो शान से ,,,

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

पंडितजी बद्बदाये  जा रहे थे ,,,केतनो रटावा ,,इ सब सूरत हराम हवे, खाली बढ़िया कपडा ,बढ़िया टाई ,बढ़िया फीस ,,पावरोटी वाली टिफिन ,,,,चटनी के पाकिट के साथ ,,,कायदे से गोड़ परत  रहलन ,वोकरे जगह गुड मार्निंग ,,,,इ कुल फुटानी बरदास हो जात अगर कुछ बनी जाते सब ,,,,लेकिन,,,त ,,,,,तब तक पंडिताइन का धैर्य जवाब दे दिया ,,,सबेरे सबेरे लईकन प पर गयला ,,,,कुल कमी हमराही बच्च्वान में दिखाल तोहके ,,,सोना जैसन लईकन क दिन खराब ,,,,पंडित पर्पराए ,,,इ अपने सोनवन के मढ़ा के रख ला ,,,जब सोना महंग होइहें त  कामे आयी ,,,,वैसहू हम खाली तोहरे लईकवन के ही ना कहत है ,,इ देशवे का हाल हौ ,,,,इ सीटी बजावे वाले ज्ञान दूकान प हमार गुस्सा हौ ,,,कुल स्कूल फटाहा कपडा वालन के पढ़वात रहलन ,,,लेकिन कौनो ऐसन न हौ जो एक आ ई एस  ना बनवले हौ ,,अ इ साला शुरुवे में टाई बध्वाय के वोसे ऐसन घिरना पैदा कराय देत हवे की ,,,पढ़ लिख के फटाहा पहिरे बदे परशान हो जान ,,,कौनो के पल्ले के अलावा एक अधिकारी बनावे क इतिहास न बा ,,,कुल खपड़ेल्वे सैक्ड़न क इतिहास बतोराले बाडन ,,,,तबले साइकिल क घंटी बजावले कुरता पहिने दूधवाला चिल्लाया ,,दूध लेल पंडित जी ,,पैसा खोदात हौ ,,देखे के हौ ,,,,,पैसा के नाम पर पंडितजी क गुस्सा फुर्र

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

जग जाहिर है जब जब प्रकृति के साथ अप्राकृतिक व्यवहार हुआ है तब तब विनाश गले का हार बनती है । अभी कुछ दिन पहले काशी हिन्दू विश्विविद्यालय में आपदा प्रबंधन पर चर्चा के दौरान कुछ पर्यावरण के विद्वानों ने नदियों को जोड़ने की कवायद की । मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कोई ऐसी नदी है जो किसी दूसरी नदी से जुडी न हो । हां नए विकास के माडल और नए पर्यावरण के विद्वानों ने अपने इन्ही कृत्रिम सोचों से प्राकृतिक आपदाओं को बखूबी न्योता दिया है । एकाक न्योतों की तादात और बढ़ जायेगी । हाँ एक फायदा जरूर होगा जैसा की होता रहा है ,,कुछ पर्यावरण का जबरन झोरा ढोने वालों के आलमारियों में कुछ गद्दियों की संख्या बढ़ जायेगी ,,या बैंक बचत में कई शून्य । प्रकृति जब जब छेड़ी जाती है धरासायी होता है सामान्य जन जीवन ,,जो तैयार रहे अगले के लिए,,,,,,,,
एक तरफ पंद्रह साल से पहले आप हाईस्कूल नहीं पास कर सकते ,,तो फिर मेरे समझ में नहीं आता की तेरह साल की बच्ची सुषमा को लखनऊ विश्वविद्यालय में एम्एससी में दाखिला कैसे मिल गया या इसके पहले की पढ़ाई उसको इतने कम उम्र में करने की छूट कहाँ से मिली ,,इस तरह की चर्चाएँ अक्सर अख़बारों में बखानी जाती हैं ,,उस बिटिया की तेजी से कोई ऐतराज नहीं है उसे कोटि शह प्रशंसा मिलनी चाहिए ,,,पर ये व्यवस्था कैसे मिलती है ,,कृपया शिक्षाविद महोदय लोग सुझाएँ ।