सोमवार, 20 अप्रैल 2020

रामनाम गुरु सबेरवे ललकारे जा रहे थे,,,
महीनन से गोबर बिलबिलात हौ,,आज कबड़िया बो के बोल के आयल हई,, अत्त्वार के कुल पथवाईब।
तब ले सुदमवा चिल्लाया अरे अतवार के करफू ह हो रामनाम,,इतने में गुरु क पारा गरम।
सुन सुन तै चियवां के चेला हउवे न,,कह दे आपन परधानी अपने पल्ले रक्खे,,वहरे नकियाय औ वोहर चिचियाय,, आन के आटा आन क घी,भोग लगावे बाबा जी।। कहि दिहे जाइके रामनाम कहत रहले,, बजारी में सड़क साफ करावे इहवाँ त रामनाम क गोबर पथाई के रही।
तब ले सुदमवा गुरु के ऊपर छिक के भाग गया। रामनाम डंडा लेके दौड़ाए,,धत्त तेरे करफू के।।

अजीब समय है

यूं तो दुख में रिश्ते निखर और सुधर जाया करते हैं,,,,
हम गांव है।भारत गांव है,भारत बस इसलिए भारत है कि आज भी यहां गांव बसते हैं,यूं तो समूची कायनात का अस्तित्व देहाती है। रिश्तों की तासीर हमारे गांव की वो अमिट थाती है,जिसे देख कर आज भी कोई शहरी बाबू या विदेशी बाबू अपने छोटे पन पर लजा जाता है। गांव में लाख गिरावट आएगी शहर से वो हमेशा ऊंचा रहेगा ।
गांव सबकी छांव है। वहां सब जाति सब धर्म के लोग रिश्तों में बात करते हैं,इसीलिए यह धरती का सबसे प्रिय जनधन है। कई बार ऐसा देखने को मिला है कि दो परिवार अलग थलग हैं मार काट तक पर उतारू हैं,लेकिन अगर बीच में कोई दुख किसी को पड़ गया तो दूसरा इस कदर उसके लिए तन कर खड़ा होता था कि वो फफक पड़ता था ,रूह से मोहब्बत उमड़ पड़ती थी और कालांतर में ये इतनी मजबूत जोड़ साबित होती थी कि असल जोड़ भी पीछे छूट जाए।
लेकिन इस मानव रचित महामारी में ,जी हां,मानव रचित कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं, ये रिश्ते जुड़ने के बजाय बिखरते नजर आ रहे हैं। कहीं रहमान मंगरू काका को कंधा देकर राम नाम सत्य है के साथ घाट पहुचा रहा,तो कहीं गोविंद रसूलन चाची को दवाई पहुचा रहे, फिर भी वो मोहब्बत के तार आखिर क्यों बेतार बेधुन और बेसुर होते जा रहे।कोरोना वाकई जाहिल वायरस है,रिश्तों को भी नहीं थमने दे रहा।
हम बड़े संत फकीर मौलाना इत्यादि की सरजमीं के उत्तराधिकारी हैं। जिनमें से कोई इंसान नहीं था,या तो हिन्दू था या मुसलमान था। सबके पेट अपने तरीके की पीठ से सटे हुए थे।इस मामले में बस एक कबीर नजर आता है,जिसको हर कौम को एक जुबान से बोलता पाता हूँ।कबीर बदजुबां  हो सकता है दोजुबां नहीं।
शायद इसी सच की ताकत थी जिससे कबीर ललकार लगाया कि काशी में मरा तो स्वर्ग मिला तो क्या एहसान ,यहां तो नत्थू खैरा सबको मिलता है,कहा मग्गह में मरूँगा किसकी हैसियत जो स्वर्ग न दे। यह सच की ताकत थी,आज और प्रासंगिक हो जाता है जब बीमार पड़ते संत महंत मौलवी मौलाना एसी कमरे में बड़े खर्चीले चिकित्सकों और अस्पताल में इलाज कराते सुने जाते हैं।
बस इतना ही कहूंगा कि मानव ने जहर ही बोया है, आगे कोई ऊपर से मोहब्बत का वायरस ऐसे ही सारी दुनिया में तू फैलाना मेरे बीर कबीर,,ये नफरत अब झेली नहीं जाती।

हम कितने जाहिल हो गए हैं

हम कितने जाहिल हो गए,,,
भीड़ की कोई आत्मा नहीं होती न ही बुद्धि,सद्बुद्धि तो कहना भी पाप है। वो दो थे तुम हजार थे पकड़ के बाध लिया होता ,जांच परख लिया होता,इतना बहसीयत और मवेशिपन होने के बाद भी मनुष्य कहलाने का जज्ब भरते हो।

तहखाने की बहसें भी जाहिलियत भरी ही हैं ,जानें गयीं नृशंस ,राक्षसी ढंग से पीट पीट कर मारा गया,जिसको देख के खुद को मनुष्य कहने पर दम घुटता है। और बहस जो जानें गयीं उन पर नहीं मारने वाले पर कि भीड़ हिन्दू थी या मुसलमान थी।
थू घिन्न आती है,,,

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

सुना है कि काशी का पक्का महाल क्षेत्र  भी नवीनीकरण का शिकार होने जा रहा है । उसके प्राचीनता की तलाश करके क्या करेंगे पता नहीं । हाँ धुल धुंए का प्रकोप अभी भी वहाँ  नहीं पहुंचा हुआ है शायद चैन में देखकर संतोष नहीं हो रहा है । पक्का महाल काशी की पहचान है ,,ये बहुमंजिली इमारतों का जखीरा इसकी पहचान  नहीं है ,,दुनिया के कोने कोने से लोग इसी गलियों को देखने समझने आते हैं । गलियां  काशी की असल राजधानी हैं । इसके प्रति जनास्था भी है । और आस्थाओं के लिए किसी प्राचीनता या नवीनता के प्रमाण पत्र की जरुरत नहीं है । नहीं तो कल दुर्गामंदिर की माता  की प्रतिमा की भी जाँच करने की  हिमाकत की जाने लगेगी ।
वैसे भी नक्कारे नगर निगम और घटिया प्राधिकरण से कत्तई किसी उम्मीद का खतरा मोल नहीं लिया जा सकता । पंद्रह बरस से पूरा शहर खुदा पड़ा है ,सारे अंतरी मंतरी संतरी हो हैसियत तो चले जनता की तरह एकाक हफ्ते मोटरसाइकिल से और पैदल ,उनके लिए तो एम्स और पीजीआई भी मुफ्त है ,,फिर जांच कराये,शायद फेफड़ा काम करना बंद कर चूका होगा ,,या अगले दिन से विकल्प नजर आएंगे । अतः इसके विरोध के लिए सबको आगे आना चाहिए ।

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

बीएचयू के कल के दीक्षांत समारोह में छात्रों को कुरता पायजामा और पगड़ी तथा छात्राओं को साड़ी के लिबास में देख कर काफी प्रसन्नता हो रही थी । याद आया की इसी लिबास की मांग करते हुए सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्रों को काफी मशक्कत करनी पडी थी । बीएचयू में भी यह शुरुआत प्रौद्योगिकी संस्थान से की गयी थी । बहरहाल सब कुछ शानदार रहा । लेकिन एक बात चाह के भी नहीं रोक पा रहा । दीक्षांत के दिन जितना शानदार अंदाज में इस पोशाक को हम प्रस्तुत कर रहे हैं ,,यह बाकि के जीवन के लिए पिछड़ेपन का द्योतक भला कैसे हो जाता है । यही छात्र उसी संस्थान में अपने दीक्षांत के पोशाक को आदर्श मानते हुए यदि नौकरी का साक्षात्कार देने चला जाता है ,तो साक्षात्कार लेने वाले के दिमाग में इस वस्त्र के प्रति वही सार्थक ऊर्जा क्यों नहीं आ पाती ।
इसे किसी तरह के विरोध के नजरिये से न  देखें । यह मनन का विषय है । हमें इन्तजार है ,कुरता पायजामा और पगड़ी में लिपटे डाक्टर और इंजीनियर देखने का ।

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

महामना फिर आ जाओ........
महामना आपने इतनी समृद्ध सर्व विद्या की  राजधानी दी ,,,,आपने समाज के अंतिम व्यक्ति की पीड़ा को जिया,,,,इसके कारणों को समझा और गुलाम भारत को एक आजाद शिक्षा मंदिर दिया ,,,,,,,अविरल ,अनोखा ,,अद्धितीय ,इस तरह का दूजा कोई नहीं ,,एक मात्र दुनिया का ऐसा दुर्लभ संस्थान जहाँ क्या राजा क्या फ़कीर सबके बराबर योगदान ,,और बराबर अधिकार । इस पर आंच आती है ,वो आदर्श डिगता हुआ दिखता है तो बनारस ही नहीं पूरे देश का नौजवान आज भी आंदोलित हो जाता है ,,फर्क बस इतना है कि आप अपने लाडलों की तकलीफों को सुनते थे लेकिन आज यहाँ के नुमाइंदों के कान महज दूकान बन कर रह गए हैं ।
महामना आप फिर से आ जाइए । आपकी छड़ी की सख्त जरुरत है । विश्वास कीजिये कुछ भी वैसा नहीं रहा जैसा अपने सोंचा था या करने को मार्ग प्रशस्त किया था । हर तरफ अनाचार व्यभिचार और भ्रष्टाचार के पुष्पित पल्लवित बरगद लहलहा रहे है । हर कोई उसकी छाँव पाने को कतारबद्ध है । समाज के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा और सहज स्वास्थ्य उपलब्ध कराने का महान सपना धरासाई हो चूका है । अस्पताल में चिकित्सक मरीजों से ऐसे बर्ताव करते है मानों उनको  देखने में वो एहसान कर रहे हो । सेवाभाव की तो बात ही छोड़ दीजिये । लूट पात का वो भयंकर अड्डा बना हुआ है ,वो भयंकर अड्डा बना हुआ है कि आप के चक्रमण की सख्त जरुरत है । यहाँ कभी नवजात को बिल्ली चबा जाती है तो कही किडनी निकालने और डालने में डोनर और रिसीवर दोनों को सुरधाम पंहुचा दिया जा रहा है । अँधा बनाने की तो मानों फैक्ट्री खुल गयी है । नकली दवाओं को बेचने के लिए यहाँ से बेहतर कोई मंडी ही नहीं है । खून के जगह पर रंग तक बेच देते हैं । आप अब तो आ जाओ ।
यहाँ अब आपके इतिहास में भी कम ही आस्था रह गया है । रोज नए भूगोल लिखे जा रहे हैं । रिश्वतखोरी अट्टहास कर रही है । छात्र छात्राओं  के शारीरिक मानसिक उत्पीड़न की एक लम्बी फेहरिस्त है ,,मैं  जानता हूँ ये आपको रुला देगी ,,लेकिन आप ऐसे नहीं छोड़ सकते आपको आना होगा । आपका सर्वधर्म आदर्श औधेमुंह घिघिया रहा है । आपका हिन्दू जितना  व्यापक और समृद्ध था ,,इनका हिन्दू उतना ही  छुद्र और दरिद्र है ।
आपकी छड़ी ने गोरे अंग्रेजों का हाड़ कपा दिया ,,तो इन कालों में क्या रखा है ।
याद तो आपको रोज करते हैं ,,आज याचना और आराधना कर रहे हैं । आपके छड़ी की सख्त जरुरत आ गयी है ।

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

आप भी बड़े भुलक्कड़ हो साहब ---इतना लोहा इतना लोहा जुटाया ,इतना लोहा जुटाया कि लोहटिया फेल ,,,पता चलिए  गया कि पटेल जी थे लौह पुरुष ,,,,वैसे भी माल जुटाने की कला में निपुणता तो आप सरजू तीरवें से सीख लिए थे । जनता फेफिया के करियवा पैसवा तलाश रही है अबहूँ न आये बालम टाइप में अब तब निहारे जा  रही है ,,,फेक्कन गुरु त अपने आजी के तेरही के लिए डीजे भी तय कर लिए थे ,,जो देश के एक एक आदमी को मोटी रकमवा आप देने को कहे थे ,,बड़े बुरे फसे है ,,न अजिये मर रही हैं ,न मोटका पइसवे मिल रहा है ,,,,सच में बड़े भुलक्कड़ हैं जी ,,अभी कल तक ऐसे घिघिया  रहे थे जैसे नेताजी को  कुश्ती में जीते कोई पहलवान की तरह अबहिहे हाथ पकडे लेके आ जाएंगे ,,,खैर आपसे कोई गिला शिकवा नहीं ,,,,,,,,,मेरा एक मित्र है जो नींद में भी दौड़ लेता है ।