गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

लम्बा है सफ़र फिर भी कहीं रत तो होगी

उत्तर प्रदेश का ही नहीं वरन देश का ह्रदय कहे जाने वाले बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस में जहरीली शराब से बीसों की मौत से सरकार सिर्फ एक लाख रूपये का चेक देकर इतिश्री कर लेने को ही अपना राजधर्म समझती है,जिससे जाने -अनजाने में दूसरे नक्कारे शराबियों के परिवारों के भी मुह में पानी आने लगे की काश उन्हें भी एक लाख रूपये एक साथ देखने का मौका मिल जाता/कुछ लोगो को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेजी भी उनको देखने से नहीं लगता की इतनी बड़ी मुहिम को ये कमजोर लोग हवा दे पा रहे होंगे/ तो आखी किस राजनितिक या गैर राजनैतिक स्वार्थ के तहत इन बड़े हाथों तक सरकार अपने में पहुचने को असफल पा रही है/विधानसभा अध्यक्ष श्री सुखदेव जी आगमन हुआ वही रटी-रटाई भाशंबाजी, वही नोट दिखा कर जुबान बंद करने की चालाकी और सब कुछ फिर सर्द की कोख में नाम पद जायेगा/
आखिर कहाँ होते ऐसे जहरीले शराब का व्यवस्थापन ,क्यों नहीं पकडे जा रहे है ऐसे देशी आतकवादी तो जनता को जनता को शराब की थैली में मौत बताते है औए खुद संसद -विधायक बन बड़ी गाड़ियों में सुशोभित होते है./

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

आखिर आ ही गया प्रेम का महापर्व वेलेंटाइन डे

पोथी पढ़ -पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय ,ढाई आखर प्रेम का पढ़े जो पंडित होय .जी हाँ ,ये उतना ही सच है जितना आज का युग/सर्द हवा ,सरसों की महक और और बिंदास मौसम का झूमना भला किस जाहिल हृदय को कवि न बना दे./उसमे गीत ,संगीत का साहित्य और समाज का बड़ा ही विचित्र योगदान है.फिल्म कटी पतंग का सदा बहार नगमा जिस गली में तेरा घर न हो बालमा,भला किस मुर्दे की हाड़ में हलचल नहीं ला देगा/
आज गली ,मोहल्ले,शहर बाजार, स्कूल-कालेज हर जगह लोग नजरे बिछाए इसका स्वागत करने में लगे हुए हैं/ऐसे में चाँद राजनितिक और गैर राजनितिक संगठनो के लोग अखबारों में छपने के लिए तोड़ फोड़ और बिद्रोह मचाते हैं/इतिहास गवाह है जिस चीज को जितना रोका जाता है उसे उतना ही परोक्ष बढ़ावा मिलता है/हा इससे कत्तई नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि कुछ लोग इसका गलत तरीके से सेलेब्रेशन करते है.जो शायद गलत है/
उसके पीछे कारण है कि संत वेलेंटाइन के सन्देश को हम गलत वे में लेते हैं/सच तो यह है कि बूढा -जवान,स्त्री -पुरुष ,नर -बानर कोई भी हो सकता है आपका वेलेंटाइन -इसको सिर्फ नौजवान युवक और युवती तक सीमित कर इसके वजूद को खतरे में न डाले/रही बात विरोधिओं कि तो बिना विरोध के भी कोई जीना है/अरे पहले वेलेंटाइन डे मना करते थे ,अब वेलेंटाइन वीक मनाये जा रहे है और कल वो दिन दूर नहीं जब २०१४ यानि चार साल बाद वेलेंटाइन इयर मनाएंगे जायेंगे/तो किसको बना रहे हैं आप इस बार अपना वेलेंटाइन /

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

उत्सव का उत्सव है विचारणीय

अभी -अभी बड़े पुलिस अफसर राठौर पर उत्सव जैसे निर्दोष प्रवित्ति और पृष्ठभूमि जैसे लड़के का कातिल अंदाज सोचने पर विवश कर देता है.यह सच है कि अगर उसने ऐसा भावनाओं में बह कर किया तो क्यों ?बड़ा अधिकारी होने के नाते राठौर को मेहमान नवाजी देना तो कत्तई उचित नहीं पर इस तरह किसी शिक्षित परिवार के लड़के का कानून को हाथ में लेना भी तो उचित नहीं ठहराया जा सकता.राठोर ने जघन्य अपराध किया है इसमें कोई संदेह नहीं ,लेकिन उसके खून के छीटे अपने ऊपर पोतने कि बाई को भी तो सराहा नहीं जा सकता.उसको तो उसको किये कि सजा मिल ही रही है और ऐसे मामले तो हजारों पड़े है जहाँ सामूहिक नरसंहार के दोषी भी जेल कि काल कोठरी में पंचसितारा होटलों का लुत्फ़ उठा रहे है/तो आखिर उत्सव का खून सिर्फ उसी पर क्यों खौला/और जैसा अक्सर होता आया है,बड़ी गलतियों से बच पाने का सबसे रटा -रटाया राग है मानसिक असंतुलन /वह लांच कर ही दिया गया है/
तो कहीं ये शोहरत लूटने का नायब तरीका तो नहीं?कड़वा है पर विचारणीय है/

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

शुरुआत

कुछ इस तरह साल की शुरुआत मनाइए,
की गर्दिश में भी व्हशल की रात पाइए /
आसमान के तारे गिनने से मिलेगा क्या ,
तारे लाने जमी पर एक रात जाइये /
खुद खुश रहने से ज़माने को क्या लेना,
हर शख्स खुश रहे दिन रात गाइए/
मयखाने में मयस्सर शराब नहीं ऐसी ;
जो गम को भुला दे ओ सौगात लाइए/
गलिओं का वासी हूँ आसमा ही छत है ,
फुटपाथ के परिंदों की कली रात धाईये/
फूल और काँटों की ये अबूझ पहेली है,
मिलकर किसी बच्चे का बचपन बचाइये /
कागजी पुलिंदों से चलती नहीं ये दुनियां ,
दुःख दर्द सब मिटा दें इस साल आइये /



जब पड़ी मार शमशेरण की त महाराज मै नाई हूँ

खूब मजा आया ठाकरे परिवार को अपनी शेखी बघारने में की मुंबई अकेले उनके वालिद की संपत्ति है जहाँ हर कोई मुह नहीं मार सकता /राहुल गाँधी का खुलेआम लोकल ट्रेन में विचरण करना,ऊपर से शरद पवार का उनके घर पहुच जाना ,अब दिखाओ न भाई अपने दरवाजे को काले झंडे /कहाँ चली गयी सब हेकड़ी/
लेकिन हाँ एक बात तो विचारणीय है कि देश में और भी बड़े और अनुभवी कहे जाने वाले नेता है जो हमेशा बयां जरी कर कर कान पका देते है ,उन्होंने कभी इस हिम्मत भरे काम का लुत्फ़ उठाने का प्रयास क्यों नहीं किया ?क्या ये सारे लोग केवल जबानी घोड़े छोड़ने और जनता को अपनी मीठी झूठी बातों में बाधने के लिए ही धरती पर अवतरित हुए हैं/इससे एक बात तो साफ जाहिर है कि देश युवा पीढ़ी चला सकती है,और राष्ट्र विरोधी ताकतों का वे जवाब भी दे सकते हैं/फिर कब्र में पैर लटकाए ये ब्रिध्हाश्रम कि धरोहरें हसते-हसते अपनी राजनितिक विरासत अपने युवाओं को सौंप कर एक कुशल सेना नायक का काम क्यों नहीं करते?
राष्ट्र त्याग और बलिदान के जोश के संघर्ष से गतिशील होता है न कि स्वार्थ कि लुट -पुट विचारधारा से/अतः कुछ हो या न हो ठाकरे बंधुओं का मिथ्या अभिमान तो टूट ही गया,और नेप से गए अपने कुनबों के रसोई ने/हा हा हा पड़ी मार शमशेरण की तो महाराज मै नाई हूँ हूँ और हूँ /

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

गाँधी के सिद्धांतों की अनदेखी कर रहे गाँधी के नाम पर राजनीती करने वाले लोग

आइन्स्टीन ने सच ही कहा था की आने वाली पीढ़ी विश्वास नहीं कर पायेगी कि गाँधी कोई हांड-मांस से बना व्यक्ति था /राष्ट्र के इस महँ साधक ने एक नई दिशा दी ,एक नई जीवन पद्धति दी, लेकिन आज उनके नाम पर राजनीती करने वाले लोग ही उनके सिद्धांतों कि धज्जियाँ उड़ा रहे हैं /
गाँधी गरीबों के लिए लड़े,कमजोरों के लिए मरे लेकिन आज के लोग उनकी नाम और दर्शन का खुलेआम पोस्त्मर्तम करने पर लगे हुए हैं/किसी भी सामान्य व्यक्ति कि तिन मूलभूत आवश्यकता भोजन ,वस्त्र और मकाँ उनसे दूर हो रही हैं या तो कर दी जा रही हैं/चंपारण क़ी लड़ाई को ही लें तो गाँधी ने सामान्य किसानों के लिए वहां वर्षों बिता दिया /आज उन्ही के कुनबे के कहे जाने वाले गरीबों का गला कट रहे हैं /चीनी क़ी कीमत,चावल ,दल तेल अन्य सरे खाद्य पहुच से बहार हो रहे हैं./पहले कीमतें एक रूपया बढती थी आज इतनी बढती है क़ी दुकानदार शर्मा जाता है इसको बताने में/गैस क़ी ही चर्चा करे तो रसोई गैस क़ी कीमत सौ रूपया बधाई जाएगी/ ये कैसा मजाक है गरीबों क़ी गरीबी के साथ ,अब मन जाओ अरे अब तो रिश्तों में भी बात लेन लगी है तेरी ये महगाई /अपने पुरखों क़ी लाज बचालो,प्यारे नहीं तो कंडे भी नहीं मिलेंगे आंसू पोछने को/और मिशन २०१२ का अंत हमेशा हमेशा के लिए हो जायेगा २०१० में ही /
हो सकता है गरीबों क़ी दुआएं फिर आपको संसद में सत्तासीन कर ही दें /

बच्चे तो बच्चे बाप रे बाप

इस समय समाचार पत्रों का कालम मराठी हिंदी विवादों से भरा पड़ा है /अभी तक तो सब कुछ ठीक था क़ि बात अनुभवहीन राजनीतिज्ञों क़ि थी ,पर अब तो अति हो गयी जब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे भी वही राग अलाप रहे है क़ि मुंबई देश क़ि धर्मशाला नहीं है /उनके जैसे बुजुर्ग राजनेता से जब ऐसे विध्वंस क़ि शुरुआत होगी तो अब बुद्धि शुध्हि यज्ञ करना होगा जिससे इनकी मानसिक इस्थितियाँ सुधरें / इन लोगो ने कभी अमिताभ बच्चन तो कभी शाहरुख़ खान तो कभी मनोज तिवारी को बहार का रास्ता दिखने क़ि धमकियां दे डाली तो कभी भाषाई विवाद फैलाया/जब क़ि कड़वा सच यह है क़ि अगर वास्तव में अन्य प्रदेशों के लोग वहां से अपने गाँव को वापस आना शुरू कर देंगे तो मुंबई का अस्तित्वा खतरे में पड जायेगा /और फिर ये ठाकरे परिवार प्रदेश क़ि बदहाली के लिए जिम्मेदार हो अपने को माफ़ नहीं कर पायेगा /
अब तो कम से कम बुध्हि खुल जानी चाहिए क़ि उनके अपने कहे जाने वाले पार्टी के लोग भी उनके खिलाफ कमर कसने लगे हैं /इतना ही नहीं उनके गुडगान करनेवाले कुछ तथाकथित उत्तर भारतीय नेताओं ने तो यहाँ तक कह डाला क़ि अगर ये लोग नहीं अपनी गलतियों क़ि माफ़ी पुरे देश से मांगते हैं तो हम मुंबई जाकर उन्हें उनकी भाषा में समझाने का कम करेंगे/अतः अब स्थितियां बिगड़ चुकी है अब तो सुधर जाओ प्यारे नहीं तो आपका हाथ भी मलने के लिए आपके पास नहीं होगा