निश्चय ही ये कहना गलत नहीं होगा की हमारे देश में भ्रष्टाचार और आतंकवाद दोनों ही सुरसा की तरह मुंह बाये देश को निगलने के लिए खड़े हैं। लेकिन एक बात तो तय है की आतंकवाद से बड़ा खतरा देश के लिए भ्रष्टाचार है कारण कि आतंकवादी तो सौ-पचास जानें मारता है जबकि ये देशी भ्रष्टाचारी समूची जनता को मारते हैं। अगर कसाब कि फांसी टलती है तो कोई बात नहीं लेकिन इन देशी लुटेरों को कई बार फासियाँ चढाने कि जरूरत है क्योंकि यदि उनका एक कतरा भी बचा रहा तो वो राष्ट्र का यूं ही खून चूसता रहेगा।
लेकिन दुर्भाग्य कि हम ऐसे संविधान में जीते हयाई जहाँ दोषी को बचने के लिए डेढ़ सौ नियम -क़ानून हैं जबकि ये कानून किसी निर्दोष को कितना बचा पते है ये बहस का विषय बन जाता है। अगर हम वास्तव में देश कि गरीबी दूर करना चाहते हैं या देश को भ्रष्टाचारियों से मुक्त कराना चाहते हैं तो एक रूपये कि काला बाजारी करने वाले को मौत की सजा से कम पर सोचना भी नहीं है यदि ऐसा संभव हो पाया तो भ्रष्टाचार निश्चित दूर होगा।
दूसरा सबसे बड़ा अहम् पहलू की जनता भी नेताओं के साथ कषम खाए साथ ही उस पर अमल करे यहाँ तो हम अपने बहन -बेटियों को शादी तक करते है तो एक ऐसे सरकारी क्लर्क को वर स्वरुप ढूढना ज्यादा पसंद करते है जो हजार-दो हजार ऊपरी कमाई करता हो,तो अपने भी गिरेबान में देखना होगा की जब हम अपने बहन -बेटी तक को एक राष्ट्रीय चोर के साथ बाँध देने में ज्यादे गर्व महसूस करते हैंतो ,हम क्या हैं और कहाँ हैं? सच तो यह है की इन सब की जड़ में हम सभी हैं ,अगर कोई बच्चा किसी की जेब से पचास रूपये चुरा ले तो हर बाप हरिश्चंद्र बन जाता है की कौन सी कमी पड़ी जो तुमने चोरी की,इतना कदा हो जाता है मानों बच्चे की जान लेलेगा,लेकिन अगर वही बच्चा कही से पचास लाख चुरा के ले जाय तो दिन दुपहरिया में लालटेन लेकर एक ऐसा हरिश्चंद्र बाप खोज पाना मुश्किल होगा जो बच्चे से ये भी पूछ ले की कहाँ से लाये,सब छुपाने में लग जायेंगे।
अतः यह कहना तो गलत होगा की सब गलत ही हैं लेकिन सुरेश कलामानियों की कमी भी नहीं हैं। इस लिए एक पहल ही सही इन घोटालेबाजों पर बिना किसी इंतजार के फासी मढ़ द्देनी चाहिए फिर जाके ये मंगल ग्रह पर नया राष्ट्रमंडल रचाएं ।
शुक्रवार, 29 जुलाई 2011
शनिवार, 18 जून 2011
सत्ता की लोलुपता जनसेवा को निगलने के कगार पर
खेतिहरों के देश भारत में सबसे ज्यादा लूटा जाता है खेतिहर ,विचारवानों के देश में सबसे ज्यादा मारा जाता है विचारवान इसी तर्ज पर कुछ चल रही है भारत की पहचान। आज देश में आन्दिलनों की बाढ़ आ गयी है,जिसको देखो वही अनशन पर बैठने को तैयार है यदि इसी तरह गैर राजनैतिक लोगों का बर्चस्व बढ़ता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब नेता से उठा विश्वास उसके अंतिम स्वास तक चलेगा,बाबा रामदेव ने तो सोने पर सुहागा का काम किया ,पेट फुलाने पचकाने का पेशेवर इस्तेमाल करने वाले लोग जब अनशन पर मंचासीन होंगे तो उनसे विरोध का दंश झेलने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती,नतीजा पेटीकोट पहन कर महिलाओं के बीच शरण लेंगे। ताज्जुब है आज तक के इतिहास में जब-जब सरकार का दमन यंत्र भरी पड़ा है तब - तब पहले यानि अनशन का मुखिया मारा जाता रहा है यह इतिहास का पहला अनशन होगा जब मुखिया भाग खड़ा हुआ और सखिया लात खाए, तथाकथित रूप से पुलिस की मर पड़ी एक महिला आज भी कोमा में है लेकिन बाबा रामदेव के लोगों के पास फुर्सत नहीं की उसकी पूछ भी करें। अपना व्यवसाय भी तो देखना है,कहीं समय पर आंवला का बागन नहीं खरीदा पाया तो बाबा जी करोड़ों के घाटे में चले जायेंगे।
मेरी बाबा से कोई दोस्ती का तो सवाल नहीं उठता लेकिन दुश्मनी भी नहीं है ,बस इतना ही है कहना की हर व्यक्ति को हर क्षेत्र में जबरन टांग अदा स्वयंभू नहीं बनना चाहिए,न ही मैं कांग्रेस का सिपाही हूँ न ही किसी क्गेरुआ का समर्थक,अच्छा होता बाबा कोई अनाथालय खोल कुछ अनाथ बच्चों की परवरिश में लग जाते उनको एक नेक सलाह है,अब तो पैसे की भी कोई कमी नहीं है संयोग से उनके पास। देश चलता रहेगा इसकी चिंता कम से कम उन्हें नहीं करनी चाहिए जब गेरुआ के लिए परिवार छोड़ दिए तो अब बड़े परिवार रुपी देश के पचड़े में पद अपनी शोर क्यों धो रहे हैं ।
मेरी बाबा से कोई दोस्ती का तो सवाल नहीं उठता लेकिन दुश्मनी भी नहीं है ,बस इतना ही है कहना की हर व्यक्ति को हर क्षेत्र में जबरन टांग अदा स्वयंभू नहीं बनना चाहिए,न ही मैं कांग्रेस का सिपाही हूँ न ही किसी क्गेरुआ का समर्थक,अच्छा होता बाबा कोई अनाथालय खोल कुछ अनाथ बच्चों की परवरिश में लग जाते उनको एक नेक सलाह है,अब तो पैसे की भी कोई कमी नहीं है संयोग से उनके पास। देश चलता रहेगा इसकी चिंता कम से कम उन्हें नहीं करनी चाहिए जब गेरुआ के लिए परिवार छोड़ दिए तो अब बड़े परिवार रुपी देश के पचड़े में पद अपनी शोर क्यों धो रहे हैं ।
शुक्रवार, 10 जून 2011
महान कलाकार का अंत
जीव नाशवान है और कला अमर । मकबूल फ़िदा हुसैन कलाकारी का एक जाबाज पहलवान चिर निद्रा में सो गया। लेकिन उनकी कलाकृतियाँ और बेबाकी निश्चय ही युगों तक याद करना लोगों की मजबूरी होगी। हुसैन साहब की यूं तो ढलती उम्र के बाद हम लोगों का जन्म हुआ लेकिन उनकी वैचारिक नौजवानी और अक्खडपन का कायल होना लाजिमी है। वो बात अलग है की सदैव विवादों में रहने वाले इस कलाकार को बहादुर शाह जफ़र की तरह अपने मुल्क में दो गज जमीन भी न मिल सकी। लेकिन उसकी कला अमर रहेगी उसको लोगों के दिल से अलग कर पाना सरकारों के की बात नहीं। इस हर पल जवान कलाकार को आखिरी सलाम ...........
शनिवार, 21 मई 2011
अधिवेशन में नेता और रैली में जनता
अभी दो दिन पहले बनारस में पैर रखना असिर्धा हो गया था कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन और रैली। अधिवेशन स्थल दूसरा और रैली का स्थल दूसरा। कारण कि अधिवेशन में सिर्फ नेता थे और रैली में नेता को भी जनता कि औकात में आना पड़ता। वैसे भी अब पहले जैसे रैलियों में नेता को लोग सुनने तो जाते नहीं देखने जाते हैं,उसमें भी बिकाऊ भीड़ नाश्ते और भोजन के साथ कुछ फिक्स रकम पर धूप-छांव झेलने को तैयार हो जाती है। अगर कोई भी राजनैतिक पार्टी अपने साफगोई का इतना ही डंका पीटना चाहती है तो अधिवेशन भी जनता के बीच क्यों नहीं कराती सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा ,लेकिन बात यह है कि तब भाई भतीजावाद नहीं चल पायेगा ,नेता का भोजन kar waha tak pahuchne वाली जनता ही uska wirodh karne lagegi,वैसे भी kaangres कि nautanki se देश हमेशा दो चार hota रहा है यह कोई नया वाक्य नहीं है। ये सब राजनैतिक लुटेरों कि जमात बन कररह gayee है अन्यथा kendr अगर pradesh कि neetiyon se asahmat है
शुक्रवार, 6 मई 2011
आधुनिक भारत में रिश्तों का अस्तित्व
निश्चय ही जब आधुनिक भारत की कल्पना पंडित नेहरु जैसे तथाकथित भ्रष्ट योगी के दिमाग में आई होगी तो उनके सपने में परिवार सजाने का उद्देश्य रहा होगा लेकिन इसका इतना बुरा असर परिवार और पारिवारिक रिश्तों पर ही पड़ेगा शायद वो सपने में भी नहीं सोचे होंगे। आधुनिकता के अंधेपन और स्वार्थ के चरमोत्कर्ष ने परिवार की शक्ल ही बदल डाली है। बिखरते परिवार में खुशियों की जगह अवसाद लेता जा रह है। चाहे वो नोएडा के दो बहनों की कहानी हो या फिर बनारस की सुनंदा की ,ये सर्फ पारिवारिक विघटन की परिणति है अन्यथा अगर संयुक्त परिवार रहता तो आज ये स्थिति कत्तई नहीं आती। इस समस्या की जड़ अगर तलाशा जाय तो मिलेगा कि हर आदमी इसके जड़ में सरे आम पानी दे रहा है। हर बाप ये तो चाह रहा है कि उसके बच्चे एक साथ रहे लेकिन बेटी की शादी के लिए उसे अकेले रह रहे लड़के की तलाश होती है जिससे उसके बिटिया की कम मेहनत करना पड़े साथ ही उसे कोई बंधन न झेलना पड़े और इस तरह से पूरा समाज जाने -अनजाने में सुनंदा और नोएडा की कहानी की पृष्ठभूमि तैयार करने में अपनी शानदार भूमिका दर्ज करा रहा है। जब तक रिश्तों के अस्तित्व पर संकट के छाये बादल काटने का सफल प्रयास नहीं किया जायेगा यही हश्र होगा।
चिन्हित लादेन तो मारा गया लेकिन गैर चिन्हित लादेनों का क्या होगा
अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन मारा क्या गया अमेरिका अपने कारनामों की गाथा गाते नहीं थक रहा है। वहीँ भारत के भी सेना के अधिकारी अपनी हेकड़ी दिखाना शुरू कर दिए हैं। आतंकवाद के प्रति साहसी होना और उसके खात्मे भरे विचार का निश्चय ही स्वागत होना चाहिए,लेकिन ओसामा के साथ एक चीज तो स्पस्ट था वो उसका चरित्र और कार्य,जो उसकी जानलेवा परिणति में साबित हुआ लेकिन साद की तरह छुट्टा घूम रहे और लूट-खसोट सरेआम मचा रहे उन ओसामाओं के लिए हम क्या कर रहे है जो बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में वातानुकूलित व्यवस्था का न सिर्फ आनंद ले रहे हैं बल्कि जनता में बहरूपिया भूमिका में लूट पाट मचा रहे होते हैं। इस पर विचार होना चाहिए क्योंकि ओसामा से तो हम हमेशा सावधान रहते रहे हैं लेकिन इन ओसामाओं को जिनको हम ओबामा समझते हैं या समझने की भूल करते हैं ,और रोज खुद के एक नई त्रासदी की कहानी गढ़े जाने का आमंत्रण देते हैं ,इन पर जब तक लगाम नहीं लगेगा दुनियां से आतंकवाद ख़त्म होने उम्मीद भी एक बड़ी भूल होगी। न मैं ओसामा की तारीफ कर रहा हूँ न ही किसी जाति विशेष पर आक्षेप पर ये बात विचारणीय तो है ही ।
मंगलवार, 19 अप्रैल 2011
राजनैतिक कार्यक्रम और रैलियां अब विचार नहीं महासंग्राम का सन्देश देते हैं
पहले भी राजनैतिक रेलयान होती थी कार्यक्रम होते थे लेकिन उसे महासंग्राम के आगाज के रूप में नहीं प्रस्तुत किया जाता था .एक तरफ अन्ना इत्यादि सामाजिक कार्यकर्ताओं की सराहना और दूसरी तरफ लड़ाई का महा आमंत्रण ये कैसा राजनीती है भाई। क्या अभी तक देश कम टूटा है जो और लड़ने-लड़ाने का जश्न जारी है,इतने पैसे लगा कर ये रैलियां हो रही है जब की कोई भी इन रैलियों में किसी राजा-महराजा या जमीदार का बेटा नहीं है तो गाहे-बगाहे देश को ही न खोखला बना रहे हो भाई। ऊपर से ईमानदारी का घटिया ढोंग। अगर जोड़ नहीं सकते तो तोड़ने का ठेकेदार तो मत बनो। देश कभी भी किसी के कंधे पर नहीं चला है जो अब चलेगा। जनता को अब तो मंदिर मुद्दा भी आपके हाथ से चला गया अब कौन सा मंदिर बनवा के इन लोगों के भावनाओं के साथ खिलवाड़ की नई शुरुआत करना चाह रहे हैं।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)