गुरुवार, 29 अगस्त 2013

दो  करोड़ खटाई में,,,,,,,,,,,
काशी  हिन्दू विश्वविद्यालय के रचयिता पंडित मदन मोहन मालवीय ने १९१६ में जिस जगह फावड़ा चलाकर विश्वविद्यालय की नीव रखी थी ,,,वह जगह  खाली छोड़ उससे हट कर बाद में विश्वविद्यालय का निर्माण शुरू किया । कारन की वह गंगा का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था ,और प्रयाग में नदियों के उफान में  बाकायदा उनकी समझ थी । अतः उस जगह को स्थापना स्थल के रूप में जाना और पूजा जाता था ,,महामना के फावड़े के निशानी के रूप में सजोया गया था । पर  कुलपति डॉ लालजी सिंह ने वहां दो सौ करोड़ की  लागत से ट्रामा सेंटर  बनवा डाला । जब बाढ़ की विभीषिका में बनारस जलमग्न होना शुरू हुआ तो उन्हें अपने ट्रामा सेंटर की याद आई और उसे देखने सदल पहुचे ,,पूरा प्रस्ताव मानों बाढ़ में आहें भर रहा हो ,,हो सकता है कोई रास्ता कुलपति महोदय को  मिल ही जाय और मोटी  रकम खर्च कर के पानी को अन्दर आने से कुछ  और रोक भी लें ,,लेकिन अदूरदर्शी होने के वजह से राष्ट्र का दो सौ करोड़ तो खटाई में ही दिख रहा है ,,ऊपर से महामना के प्रथम फावड़े की अनमोल निशानी भी निगल  ली इस ट्रामा सेंटर ने ।ये देश को फायदा कितना देगा भगवान् जाने पर तत्काल कुछ बिचौलियों की जेबों में तो हरियाली आयी ही होगी ।
सबसे बड़ा कारन की इस इतने बड़े विश्वविद्यालय को समझने में तीन बरस बीत जाते है यहाँ के कुलपतियों को ,,फलतः ये जिन चंद लोगों से घिरे होते हैं उन्ही को बीएचयू समझते हैं ,,और कितने लोगों की नौकरियां गणेश परिक्रमा में ही पूरी ही नहीं होती बल्कि पुष्पित और पल्लवित होती है ,,,महामना जैसे युग पुरुष ने विपन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण कराया देश को संपन्न बनाने के लिए ,,,और उनके मानस पुत्र सम्पन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण करा रहे हैं लेकिन देश को शायद विपन्न बनाने के लिए ।

बुधवार, 14 अगस्त 2013

देश में  ६७ वाँ आजादी का जश्न मनाने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं ,रंगाई पोताई चालू है ,कुछ टूटे फूटे ,भूले और छूटे भी लीप पोत  दिए जायेंगे ।  देश की तरक्कियां गिनाई जाएँगी ,फिर से कुछ कश्मे वायदे होंगे । संस्कारशाला सा माहौल रहेगा ,,महापुरुषों के सिद्धांतों पर चलने की सीख दी जाएँगी ,,,,दुकान डलिया बंद रहेगी ,छात्रों के लिए घुमक्कड़ी का दिन सा होगा ,,,,फिर साल भर के लिए इस भारी खुराक का अंत ,,,,,,कुछ इस तरह से फिर हम जुटेंगे गणतंत्र  की तैयारियों में कितना दिन ही बचा है मात्र पांच ही महीने न ,,,,,,फिर भी रश्मों रिवाज की फितरतों से ऊपर उठ कर ,,,,बन्दे मातरम् से लबरेज होना ,,,,,जय हिन्द जय भारत

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

अब नहीं रही महामना की बगिया गरीबों के लिए ,,

   महात्मा मालवीय जी महराज के सपने का बीएचयू अब शायद नहीं रहा ,,विश्वविद्यालय के निर्माण में निश्चित ही अमीरों के अमीरी का ज्यादा योगदान था लेकिन गरीबों की रेज्कारियां भी पंडित जी के कटोरे में छलकी थी . यही कारन था की उनका पूरा ध्यान गरीब भारत पर था और इसकी जरूरत भी शायद उनके दिमाग में इन्ही गरीबों को ध्यान में रखकर उभरी रही होंगी ,,अन्यथा जो हैसियत वाले थे  वो तो उन दिनों भी विदेश पढाई करने जाते ही थे ,,,लेकिन आज का विश्वविद्यालय गरीब भारत को देखना भी पसंद नहीं करता ,,,कल अख़बार में पढने को मिला की एक बच्चे को कुछ छात्र  में उठाकर अस्पताल में ले गए तो वह चिकित्सकों ने   बद्फी नाटक नौटंकी के बाद उसे इलाज मिला ,,,ऐसे न जाने दूर दराज से आये कितने रोगी रोज बेइज्जती ,और जलालत झेलते हैं ,,साथ ही साथ लूटे भी जाते हैं ,,,यह तो हाल है विश्विद्यालय के प्रवेशद्वार का ,,,अन्दर  घुसते ही इस तथाकथित शिक्षा की राजधानी में बहुरूपियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है ,,कुछ ऐसे लोग हैं जो सिर्फ चमचागिरी से फलफूल रहे हैं ,चाहे जो कुलपति आये वो सबके करीब होते हैं मोती तनख्वाहों के बेरंगी चश्मे से उन्हें गरीब भारत नहीं दीखता ,,,उन्हें किसान की हैसियत नहीं  पता एक बरस के लिए हल चलाना बंद कर देगा तो पूरी कायनात के होश ठिकाने हो जायेंगे ,,,लेकिन यहाँ आये दिन गरीबों को अनदेखा कर फीस वृद्धि इत्यादि जारी है ,,पहले यहाँ गरीब किसी तरह खीच कर प्रवेश पा लिया तो फिर जीवन सुधर जाता था ,,आज इतना खर्च हो जाता है की ,,,,,जब की इतनी अधिक राशी आती है इस संस्थान के नाम पर की खर्च कर पाना  सम्भव नहीं हो पाता,,और चैनलों पर बीएचयू का प्रचार करने का फर्जी प्रमाणपत्र सौप घोटाले बाजी होती है ,,,,,आखिर ये सारे लोग छात्रों के मंच छात्र संघ के विरोध में क्यों खड़े हो जाते है कारन की इन्हें पता है अगर ये अधिकार फिर से उन्हें हाशिल हुआ तो अतीत वर्तमान और भविष्य तीनों की काली खुल जायेगी ,,,,,लेकिन वर्तमान रहनुमाओं को एक सार्थक सलाह देने की गुस्ताखी करने की जरुरत समझता हु की बाढ़ पानी को जरुर रोक लेता है लेकि एक समय तक उसके बाद जब बाँध टूटता है तो तो तबाहियां देखे नहीं देख जातीं ,,,,गरीबों की अनदेखी बंद करे और छात्रों को उनका मंच दे सब निपटारा अपने आप हो जायेगा ,,,,

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मेरे महान  में जब तक अंगरेज रहे तब तक अंग्रेजी इतनी मजबूती नहीं बना पायी थी ,,, पर अंग्रेजों के जाते जितने दिन बीत रहे हैं अंगरेजी उतनी मजबूत होती जा रही है ,,,पाठशालाओं में मौलबी साहब और पंडित जी या मुंशीजी  हुआ करते थे ,,,,अंग्रेजी के गुरुओं का कही जिक्र नहीं सुनाई पड़ता था ,,,,,एक भाषा के तौर पर इसके ज्ञान को बढ़ाना कत्तई बुरा या गलत नहीं है लेकिन भाषाई चोचले बाजी अब अंगरेजी पर भी भरी पड़ने लगी है ,,,,अमेरिकन और ब्रिटिश के चक्कर में अंग्रेजी बेचने की दूकान चमकाए लोग छात्रों को छल रहे हैं ,,,छात्र सही गलत में फस कर दम तोड़ रहा है ,,,,उदहारण के लिए कुछ शब्दों की पेशकश जरुरी है ,,,हमारे किसी गुरु ने या हमारी पीढी के लोगों को शायद were को वर कभी भी नहीं बताया गया ये हमेशा वेयर था ,,,यहाँ तक की हिन्दू विश्वविद्यालय के अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थी होने के वजह से अपने समय के गुरुओं को भी याद करते हुए याद आता है की वो लोग भी वेयर ही कहते थे ,,,अब finananceकही फाइनेंस होता ही नहीं फिनांस हो गया ,,director डायरेक्टर ,,डिरेक्टर हो गया ,,,,सिखवाक इस बदलावों से बेहाल हैं ,,,,,हमारे यहाँ एक कहावत कही जाती थी की ,,,,कोस कोस पर पानी बदले ,,तीन कोस पर बानी ,,,,कहा सम्भव है भाइयों की पूरी दुनिया की भाषा एक बना देंगे ,,,ऐसा होना भी ,,खतरा है ,,,,,,,

शनिवार, 22 जून 2013

कहाँ  गए सारे धन कुबेर जो कभी किसी दुर्घटना या मौत पर दुःख भरे दो बूँद घडियाली आँसू ही सही बहाने के बजाय हर मौत की कीमते तय करते फिरते हैं ,दो लफ्ज शांत्वाना  के बोलने के बजाय मौत के मुआवजे बाँटते फिरते हैं । क्या अनगिनत मौतें उनके खजाने पर भारी  पड़ने लगी हैं ,या प्रकृति को नाश कर मिथ्या विकास की अपनी विचित्र अवधारणा पर मंथन कर रहे हैं  । एक और भी गिरोह है जो हर आपदा में सबसे पहले अपने हाथ सहयोग के रूप में प्रस्तुत करने का ढोंग रचता है और उसके मुखियों का शख्त आदेश होता है कि बिना वर्दी के दिखना नहीं है ,,,,,,,,,,सब के सब कहाँ हैं ?

गुरुवार, 20 जून 2013

उत्तराखण्ड में हुई भयानक प्राक्रितिक तबाही से सीख लेनी चाहिए आधुनिक भारत  के निर्माताओं को । बाढ़ और इस तरह की जल तबाही को रोकने में छोटी नदियों,नारों और तालाबों,तालों ,कुंडों और कुओं का अति महत्वपूर्ण योगदान होता थ। आज इन छोटे जल श्रोतों के प्रति हमारे देश की सरकारे इस कदर उदासीन है और अमेरिका बनाने में  पगलाए हुए हैं कि नदियों को पाटने और उन पर लम्बी चौड़ी इमारते बनाने की खुली छूट और लूट जारी है । मुठ्ठी भर सरकार के लोगो पर ही पूरा दोष नहीं मढ़ा जा सकता है ,हम लोग भी इस कदर अपने स्वार्थों में अंधे हो चले हैं कि क्या नदियाँ क्या तालाब हर चीज की कीमत लगाने और उस पर अपना नेम प्लेट झुल्वाने के पीछे झूलते जा रहे हैं । उन्हें भी एक नजर इस भयानक जल आपदा पर नजर डाल कर आँख मूद  सोचने की जरुरत है आखिर वो किस दुर्घटना की घड़ी की बाट  जोह रहे हैं । जब गंगा उफान पर होती है तो उसके बाढ़ को ये छोटी नदियाँ कूप तालाब इत्यादि आपदा नियंत्रण की भूमिका में होते हैं । लेकिन इनको पाइप में डाल कर साफ सुथरा सड़क बनाने के सरकार के फैसले पर हम लट्टू हो जाते हैं । याद रहे टेहरी भी एक बाँध है  उसकी भी अपनी एक धैर्य सीमा है गंगा का सत्तर प्रतिशत पानी उसे अकेले पिलाया जाता है ,जिस दिन उसका पेट भर जाएगा ,फिर  विकास के भूख को भी तत्काल शांत  करने में वो कोई कसर नहीं छोड़ेगा ,और हमारे पास  मलने को हाथ भी नहीं रह जाएगा ,केदारनाथ जी के बाद विश्वनाथजी को भी त्रस्त  करने का मानचित्र तैयार है ,,,,अब तो कम से कम नदियों को पाटने तालाबो को पीने की आदत से बाज आइये ।

गुरुवार, 30 मई 2013

 जायका एक जापानी कंपनी ने भारत को पांच सौ करोड़ दिए हैं क्या नदियाँ पाटने के लिए वो भी वो कर्ज के पैसे हैं खैरात के नहीं ।   असि नदी को पाटने और उसे सीवर लाइन से प्रवाहित करने के लिए जायका से ये ठेका गंगा प्रदूषण इकाई ने ले रखा था और उसके वही जी एम् साहब जिसे डीएम ने हैसियत में ला दिया   मुखिया रहे । नदी को सीवर में डालने का विरोध जब असि बचाओ संघर्ष समिति के लोगों ने किया तो आनन् फानन में नगर आयुक्त ने कार्य रोकने का आदेश दिया पर अब भी चोरी छुपे पाइप डाली जा रही है ।  उन्हें  पुनः ये चेतावनी  है की होश में रहे ।  मुझे समझ में नही आता इस देश के नुमाइंदों  को हो क्या गया है ये देश को पाटने पर क्यों तुले हैं । इस देश में हर समस्या के लिए आँख मूद करोड़ों अरबों के पैसे दे दिए जा रहे हैं  पर उसे देखने वाला कोई नहीं की काम हो भी रहा है की नहीं ,सड़क बदहाल पानी बदहाल ,जन जीवन बदहाल ,और हर परेशानी पर अरबों के बजट लिए रस्ते के बाबू से ले लेकर ठेके दार तक की कोठियां तनती जा रही हैं । ४९६ करोड़ का जायका का प्रजेक्ट आगे देखिये क्या क्या रंग लाता है किसकी कोठी कितनी तनती है ।