शनिवार, 9 अप्रैल 2016

सुना है कि काशी का पक्का महाल क्षेत्र  भी नवीनीकरण का शिकार होने जा रहा है । उसके प्राचीनता की तलाश करके क्या करेंगे पता नहीं । हाँ धुल धुंए का प्रकोप अभी भी वहाँ  नहीं पहुंचा हुआ है शायद चैन में देखकर संतोष नहीं हो रहा है । पक्का महाल काशी की पहचान है ,,ये बहुमंजिली इमारतों का जखीरा इसकी पहचान  नहीं है ,,दुनिया के कोने कोने से लोग इसी गलियों को देखने समझने आते हैं । गलियां  काशी की असल राजधानी हैं । इसके प्रति जनास्था भी है । और आस्थाओं के लिए किसी प्राचीनता या नवीनता के प्रमाण पत्र की जरुरत नहीं है । नहीं तो कल दुर्गामंदिर की माता  की प्रतिमा की भी जाँच करने की  हिमाकत की जाने लगेगी ।
वैसे भी नक्कारे नगर निगम और घटिया प्राधिकरण से कत्तई किसी उम्मीद का खतरा मोल नहीं लिया जा सकता । पंद्रह बरस से पूरा शहर खुदा पड़ा है ,सारे अंतरी मंतरी संतरी हो हैसियत तो चले जनता की तरह एकाक हफ्ते मोटरसाइकिल से और पैदल ,उनके लिए तो एम्स और पीजीआई भी मुफ्त है ,,फिर जांच कराये,शायद फेफड़ा काम करना बंद कर चूका होगा ,,या अगले दिन से विकल्प नजर आएंगे । अतः इसके विरोध के लिए सबको आगे आना चाहिए ।

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

बीएचयू के कल के दीक्षांत समारोह में छात्रों को कुरता पायजामा और पगड़ी तथा छात्राओं को साड़ी के लिबास में देख कर काफी प्रसन्नता हो रही थी । याद आया की इसी लिबास की मांग करते हुए सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्रों को काफी मशक्कत करनी पडी थी । बीएचयू में भी यह शुरुआत प्रौद्योगिकी संस्थान से की गयी थी । बहरहाल सब कुछ शानदार रहा । लेकिन एक बात चाह के भी नहीं रोक पा रहा । दीक्षांत के दिन जितना शानदार अंदाज में इस पोशाक को हम प्रस्तुत कर रहे हैं ,,यह बाकि के जीवन के लिए पिछड़ेपन का द्योतक भला कैसे हो जाता है । यही छात्र उसी संस्थान में अपने दीक्षांत के पोशाक को आदर्श मानते हुए यदि नौकरी का साक्षात्कार देने चला जाता है ,तो साक्षात्कार लेने वाले के दिमाग में इस वस्त्र के प्रति वही सार्थक ऊर्जा क्यों नहीं आ पाती ।
इसे किसी तरह के विरोध के नजरिये से न  देखें । यह मनन का विषय है । हमें इन्तजार है ,कुरता पायजामा और पगड़ी में लिपटे डाक्टर और इंजीनियर देखने का ।

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

महामना फिर आ जाओ........
महामना आपने इतनी समृद्ध सर्व विद्या की  राजधानी दी ,,,,आपने समाज के अंतिम व्यक्ति की पीड़ा को जिया,,,,इसके कारणों को समझा और गुलाम भारत को एक आजाद शिक्षा मंदिर दिया ,,,,,,,अविरल ,अनोखा ,,अद्धितीय ,इस तरह का दूजा कोई नहीं ,,एक मात्र दुनिया का ऐसा दुर्लभ संस्थान जहाँ क्या राजा क्या फ़कीर सबके बराबर योगदान ,,और बराबर अधिकार । इस पर आंच आती है ,वो आदर्श डिगता हुआ दिखता है तो बनारस ही नहीं पूरे देश का नौजवान आज भी आंदोलित हो जाता है ,,फर्क बस इतना है कि आप अपने लाडलों की तकलीफों को सुनते थे लेकिन आज यहाँ के नुमाइंदों के कान महज दूकान बन कर रह गए हैं ।
महामना आप फिर से आ जाइए । आपकी छड़ी की सख्त जरुरत है । विश्वास कीजिये कुछ भी वैसा नहीं रहा जैसा अपने सोंचा था या करने को मार्ग प्रशस्त किया था । हर तरफ अनाचार व्यभिचार और भ्रष्टाचार के पुष्पित पल्लवित बरगद लहलहा रहे है । हर कोई उसकी छाँव पाने को कतारबद्ध है । समाज के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा और सहज स्वास्थ्य उपलब्ध कराने का महान सपना धरासाई हो चूका है । अस्पताल में चिकित्सक मरीजों से ऐसे बर्ताव करते है मानों उनको  देखने में वो एहसान कर रहे हो । सेवाभाव की तो बात ही छोड़ दीजिये । लूट पात का वो भयंकर अड्डा बना हुआ है ,वो भयंकर अड्डा बना हुआ है कि आप के चक्रमण की सख्त जरुरत है । यहाँ कभी नवजात को बिल्ली चबा जाती है तो कही किडनी निकालने और डालने में डोनर और रिसीवर दोनों को सुरधाम पंहुचा दिया जा रहा है । अँधा बनाने की तो मानों फैक्ट्री खुल गयी है । नकली दवाओं को बेचने के लिए यहाँ से बेहतर कोई मंडी ही नहीं है । खून के जगह पर रंग तक बेच देते हैं । आप अब तो आ जाओ ।
यहाँ अब आपके इतिहास में भी कम ही आस्था रह गया है । रोज नए भूगोल लिखे जा रहे हैं । रिश्वतखोरी अट्टहास कर रही है । छात्र छात्राओं  के शारीरिक मानसिक उत्पीड़न की एक लम्बी फेहरिस्त है ,,मैं  जानता हूँ ये आपको रुला देगी ,,लेकिन आप ऐसे नहीं छोड़ सकते आपको आना होगा । आपका सर्वधर्म आदर्श औधेमुंह घिघिया रहा है । आपका हिन्दू जितना  व्यापक और समृद्ध था ,,इनका हिन्दू उतना ही  छुद्र और दरिद्र है ।
आपकी छड़ी ने गोरे अंग्रेजों का हाड़ कपा दिया ,,तो इन कालों में क्या रखा है ।
याद तो आपको रोज करते हैं ,,आज याचना और आराधना कर रहे हैं । आपके छड़ी की सख्त जरुरत आ गयी है ।

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

आप भी बड़े भुलक्कड़ हो साहब ---इतना लोहा इतना लोहा जुटाया ,इतना लोहा जुटाया कि लोहटिया फेल ,,,पता चलिए  गया कि पटेल जी थे लौह पुरुष ,,,,वैसे भी माल जुटाने की कला में निपुणता तो आप सरजू तीरवें से सीख लिए थे । जनता फेफिया के करियवा पैसवा तलाश रही है अबहूँ न आये बालम टाइप में अब तब निहारे जा  रही है ,,,फेक्कन गुरु त अपने आजी के तेरही के लिए डीजे भी तय कर लिए थे ,,जो देश के एक एक आदमी को मोटी रकमवा आप देने को कहे थे ,,बड़े बुरे फसे है ,,न अजिये मर रही हैं ,न मोटका पइसवे मिल रहा है ,,,,सच में बड़े भुलक्कड़ हैं जी ,,अभी कल तक ऐसे घिघिया  रहे थे जैसे नेताजी को  कुश्ती में जीते कोई पहलवान की तरह अबहिहे हाथ पकडे लेके आ जाएंगे ,,,खैर आपसे कोई गिला शिकवा नहीं ,,,,,,,,,मेरा एक मित्र है जो नींद में भी दौड़ लेता है ।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

पांच साल पहले आज के ही दिन एक राहगीर को संकटमोचन असि नदी पुलिया के पास उसको यह समझाने में कि यह नदी है ,,यह  अंकुरित हुआ कि क्यों न इसके उद्धार की लड़ाई लड़ी जाय । जिसके निमित्त काशी के युवाओं और बुद्धिजीवियों की एक टोली  "असि बचाओ संघर्ष समिति "ने संघर्ष का ऐलान किया । लम्बी लड़ाई चली । इस आंदोलन ने देश के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर आला अधिकारियों तक को बखूबी से झकझोरा । जगजाहिर है की कोई भी आंदोलन जब गति पकड़ता है तो उसमे अपना कोई स्वार्थ और भविष्य तलाश रहे ताक  लगाये बैठे लोगों  की जमात भी हाजिर होती है । ये आंदोलन भी इससे अछूता नहीं रह पाया । बंद कमरे में एक बोतल पानी रख कर नदियों के सुधर और उद्धार की बात करने वाले कालनेमी प्रकृति के तथाकथित जल वैज्ञानिकों की फ़ौज खड़ी हो गयी ,,तालाब और झील पाट कर ही मॉल नुमा विद्यालय चलाने वाले नवोदित शिक्षाविद भी इसमें नाम लिखने की कोशिश से वंचित नहीं रहे । असि बचाओ संघर्ष समिति के अथक प्रयास और संघर्षों का ही रंग लाना था कि प्रदेश सरकार ने असि के उद्धार के लिए ८. ८ आठ करोड़ अस्सी लाख रूपये जारी किये । इस धन राशि के निर्गत होने की खबर अखबारों आई नहीं कि असि के बचाने वालों की बाढ़ आ गयी । ऐसे गिरोह जो सरकारी पैसों के लिए और उनके बल पर आंदोलन करने का भ्रम फैलाते नजर आते हैं ,,उन गिरोहों की सक्रियता बढ़ गयी । ये शायद प्रशासनिक मोहरे थे जो  भोथरा करने के लिए साजिशन भेजे गए थे ।

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

युवाओं को फिर मिलेगा लॉलीपॉप । देश युवाओं के कंधे  पर है। युवाओं को सशक्त बनाना और राजनीति  की मुख्य धारा से जोड़ना हमारा मुख्य ध्येय है । जिस राष्ट्र का युवा उदासीन हो जाता है उसकी विकास  धीमी पड  जाती है । युवा क्रांति ही बदलाव ला  सकती है , जैसे हजारो हजार नीतिवचनानि और सुभाषितानि के श्लोक टाइप के वाक्यांशों की बारिश का समय फिर आ रहा है । युवाओं तैयार रहो झंडा ढोने के लिए ,,गला फाड़ चिल्लाने के लिए ,,अंततः यही तुम्हारे हिस्से में था ,रहा है और रहेगा । करते रहो क्रन्तिकारी भाषण ,,हम जब वो थे ,,तो उनकी राजनैतिक हैसियत मेरे सामने शून्य थी,,वो पैसा कमाए मैं झण्डाबरदारी किया ,,आज वो मंचासीन हो भाषण भिडाते हैं ,हमें उनके लिए मंच तैयार करने का जिम्मा सौपा जाता है ,,कोसो जितना कोस सकते हो । अधिक दिमाग लगाओगे तो चुनाव के वक्त खोजना भी बंद  कर देंगे ,, लोग तुमसे सस्ते में उपलब्ध है,फिर गली चौराहे पर झूठ बोल के अघाना कि फला भैया ने कैंट से फोन किया था ,तो फला ने बलिया और ग़ाज़ीपुर से,दक्षिणी से गुरु तो घरवे आ जा रहे हैं सुबहे सुबह । गाहे बगाहे उनके यहाँ के कार्यक्रमों में कोशिश करके किसी तरह से निमंत्रण हाशिल करते रहो ,और सीना फुलाओ कि उनके यहाँ जाना बहुत जरुरी है कई दिन फोन किये ,,भले उस दिन छोटी मौसी जो आपको पाली पोषी  है के बिटिया की शादी में लाख कहने के बाद भी न पहुँचो । अरे अब वो दिन लद गया जब तेज तर्रार की तलाश करके नेता उन्हें आगे बढ़ाता था । छात्र संघों से प्लेसमेंट की तर्ज पर युवाओं को आगे ले जाता था । पर आज भले ही लोकतंत्र की इन पौधशालाओं के उर्वर पौधे कहीं संसद और विधानसभा में अपनी राजनैतिक फुलवारी चकाचक सजाये हो ,,लेकिन तुम इनके बड़े खतरे हो ,,ये वो है जो जिन सीढ़ियों को लगा कर छत पर चढ़ते है उन्हें वापस खीच छत पर ही रख लेते है ,ताकि कोई और अब न चढ़ पाये । पांच साल फेफियाओगे ,,इस बार नहीं उस बार का वायदा मिलता रहेगा ,,फिर कोई दू बार हारा  तो कोइ चार बार हारा ,,लेकिन अपने मक्खन मलाई में तगड़ा है तो समझो वही अगड़ा है । अब भी समय है चेतो ,,,जिन्दा कौमे पांच साल इन्तजार नहीं करती ।

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

बाप मरे अन्हारे घरे ,बेटवा क नांव पावर हॉउस ,,,, रामनाम गुरु क पारा कुछ खासे गरम रहा,,,,,शुरुआते क बरसात देखकर नया छाता जो खरीद लिए थे ,,अ ई मौसम बेईमान हो गया ,,,,छाता  कंधे पे रख ,,बड़बड़ाये जा  रहे थे ,,ई ससुरा हमके पता रहल कि  अगर हम अब्बे छाता कीन  लेब त इनकर कुल पानी जरि  जाई ,,,केसे ,केसे लड़े अकेले रामनाम ,,,तब तक उनसे कभी न पटने  वाले लंगोटिया यार चियां परधान टकराइये गए ,,,चियां आपन गाय भैस किसी के खेत में घुसा के खेत क सूपड़ा साफ कर देने के लिए विख्यात थे ,,,एक बार गाॉव में अधिक विद्वान लोग चुनाव लड़ गए आपसे में ,तो गांव वाले चिंया को ही जमकर वोट देके परधान बना दिए कि  कम से कम खेतवा त बख्शे रहेगा ,,,,,चिंया काहे माने ,उवाची दिए ,,,,,का मर्दवा रामनाम सबरवे सबेरे का बरबरात हौआ ,,,,,देखत हौवा दिल्लीया में देवर भौजाई के तरह सब लड़त हउए ,,अ तू इहा छतवे  पे कुर्बान  बाड्या ,,,,रामनाम ऐसे खिसिआए जैसे किसी दारूबाज का पहिला पैग मुह लगाते ही छीन लिया जाय ,,,सुना ये चिंया ,,एक बेर परधान का हो गइला की समझदार क पोछे बूझे लागला का ,,रातभर सूते के नहीं मिळत हाउ ,,,रोड़े पे चले में डरे  लगत हौ ससुरा कि कही किडनी सरक के ये कोना से वो कोना न चली जाये ,,अ तोहके खाली दिल्लीए देखात हव ,,,,,,चिंया बोले ,,,तू बुड़बके रही जैबा का मर्दे ,,,,देशवा दील्लीए से न चली ,,,,रामनाम को कोई बुड़बक कह दे इतनी मजाल कहाँ ,,,,फायर ,,,,सुना ,,,मरे एक त छाता क पैसा बेजाए गईल ,,अब तू मत सुलगावा ,,,बाप मरे अन्हारे घरे बेटवा क नांव पावर हॉउस ,,,चिंया समझ गए ,,कई पुस्त नेवति देयी गुरुआ भागो ,,,रामनाम दौरा लिए ,,,सुना ,सुना,,,ले चली कथा स्वयम्बर क,,कहि डालि हाल जनकपुर क ,,,,,,भला अब कहाँ  चिंया  टिकने वाले ,,,,