शनिवार, 8 मार्च 2014

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की  स्थापना त्याग के बलबूते हुई  है लोभ से दूर दूर तक इसका वास्ता नहीं था । यहाँ शिक्षक हो या चिकित्सक कही न कही सेवाभाव से ओत प्रोत होकर ही आता था । कालांतर में विश्वविद्यालय  को भी बाजार की  नजर लगना लाजिमी थी ,,और बखूबी लगी । अगर कुछ बढ़ा तो तनख्वाहों का मोटापा ,,सेवाभाव सर्वथा पतराती चली गयी । चिकित्सकों की लूट खसोट हो या शिक्षक इत्यादि बहालियों की  कितनी भी लोकगाथा बनायी जाए कम है ,,यहाँ का चिकित्सक प्रोफ़ेसर ,चिकित्सकीय भत्ता भी अलग से पाता है ,,फिर भी ऐसे लगता है जैसे जनता के इलाज करते वक्त ये उन पर एहसान कर रहे हो ,,दवाओ से पैथॉलोजियों से हर जगह से इनकी मोटी कमाई का खामियाजा समाज भुगत कर भी इन्हे भगवान् सरीखा कहता है ,,क्योंकि स्वास्थ्य एक अतिजरूरी आवश्यकता है ।
पिछले कई सालो से विश्विद्यालय परिसर को तोड़ने पे ही यहाँ के करता धर्ता आमादा हैं । अभी हाल में आईआईटी बना जिसे संघर्षों के बाद आईआईटी बीएचयू नाम मिला अन्यथा आईआईटी बनारस प्रायोजित था । अब आईएमएस के जगह पर एम्स चाहिए ,,सिर्फ और सिर्फ तनख्वाहों का मोटापा बढ़ाने के लिए ,,कोई एक एम्स की  मांग करने वाला अपने कलेजे पे हाथ रख कर कह दे कि मैं अच्छी स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के लिहाज से एम्स की  मांग कर रहा हूँ ,,तो शायद सम्भव नहीं है । राजनीती के रोटी खाने वाले भी  एम्स के नाम पर समर्थन कर रहे हैं । क्या एम्स को मिलने वाली सुविधाये आईएमएस को नहीं मिल सकती । गजब हाल है कल को तैयार रहिये एफएमएस भी लड़ने आ रहा आईआईएम का तमगा पहनने ,,,,फिर जिस कटोरे को हाथ में ले सजीव मालवीय चला था देश को संपन्न करने की ठान , उसके मूर्तियों को फिर से कटोरा पकड़ा देना ,,,जिसके पेट महामना की विशाल बगिया से नहीं भर रहे हों ,,उनके लिए देश दुनियां के दरवाजे खुले हैं ,,,,आंदोलनों की  कद्र होनी चाहिए ,,लोकतंत्र है लेकिन लोभ के सवाल पर कत्तई नहीं।