मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

ये साल बड़ा होनहार निकला ,,तुम ,,,,में अपनापन नजर आता था,,,,आज ,,,,आप ,,,अपना सा लगने लगा है। ठंढे बिस्तर में आंहे भरता कीचड पुत्र भी इस साल ऐसा ऐसा खिला ऐसा खिला ,,,मानो शेर जंगल में गीदड़ तलाश रहा हो। अरसों से घर कि मुखिया का बोझ ढो ,,थकी हारी अम्मा को भी उसके बेटे ने ,,खुद जिम्मेदारी ले,,उन्हें राहत बरपी ,,,इत्यादि,,,,,,तो इस क्रम में अगले बरस को और होनहार होने कि सोचना बेमानी नहीं होगी । इसी आस्था और विश्वास के साथ आप सबको नए साल के उगते सूरज कि शानदार चमक का स्वागत नए उमंग के साथ करने कि ढेरों शुभ मनोभावों संग,,,नव वर्ष की असीम शुभकामनाएं। 

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

युवाओं के नाम पाती ……
युवा सोंच अरोक होती है । युवा अपरिवर्तनशील में भी परिवर्तन कि क्षमता रखता है । अवसर बनाता है अवसर उसके लिए न तलाशने का विषय होता है न ही इन्तजार का ।युवा अतिसंवेदनशील एवं नितांत त्यागी  होता है । उससे बेहतर लोकसेवी की उम्मीद नहीं  की जा सकती है । देश कि सीमा पर  नौजवान होता है और देश के खेत और  खलिहानों में खून पसीने एक कर देश का पेट भी नौजवान ही भरता है । नौजवान विवेकानंद   होता है ,नौजवान सुभाषचंद्र और भगत होता है , कहीं गांधी तो  कहीं पटेल होता है और हर कुछ से पहले वो   बिगड़ों की नकेल होता है ।
आज देश में हर जगह युवाओं के लिए चिल्लहट लगाए जा रहे हैं ,युवा मौन है क्योंकि युवाओं के लिए ,, न फूलपुर होता है न गुजरात होता है उसके लिए  देश ही सबसे बड़ा सौगात होता है ,,। कहीं कहीं युवाओं   के स्वछन्द आकलन करने कि युवा क्षमता से भयग्रस्त उसे झंडाबरदार  और खूटे से बधने कि सलाह देते हैं । लेकिन आज समय आ गया है जब युवा अपनी सोच पर जिए । केंद्रीय और राजकीय राजनीती में अपनी सक्रियता का आभास कराये वो भी  बेझंडा होकर । लगभग एक दशक पहले एक बुजुर्ग मनीषी ने एक सवाल मुझसे किया कि ,,तुम किस धारा के हो ,,मेरा अगंभीर जवाब उन्हें बड़ा गम्भीर कर दिया ,,,मैं धारा में नहीं धरा में आस्था रखता हूँ ,,मैं  बेधार ही सही लेकिन जिस धारा में धरा हो उससे आप मुझे जोड़ सकते हैं ।
अतः आज समय है जब माँ भारती  को पुनः उसके छोटे बेटों की  तलाश है ,,,,युवाओं उठो ,,  क्या गुजरात ,क्या बंगाल ,,पूरा देश तुम्हारे बाँहों में समाने को आतुर है ,,,
हिन्द के नौजवानों उठो शान से ,,,

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

पंडितजी बद्बदाये  जा रहे थे ,,,केतनो रटावा ,,इ सब सूरत हराम हवे, खाली बढ़िया कपडा ,बढ़िया टाई ,बढ़िया फीस ,,पावरोटी वाली टिफिन ,,,,चटनी के पाकिट के साथ ,,,कायदे से गोड़ परत  रहलन ,वोकरे जगह गुड मार्निंग ,,,,इ कुल फुटानी बरदास हो जात अगर कुछ बनी जाते सब ,,,,लेकिन,,,त ,,,,,तब तक पंडिताइन का धैर्य जवाब दे दिया ,,,सबेरे सबेरे लईकन प पर गयला ,,,,कुल कमी हमराही बच्च्वान में दिखाल तोहके ,,,सोना जैसन लईकन क दिन खराब ,,,,पंडित पर्पराए ,,,इ अपने सोनवन के मढ़ा के रख ला ,,,जब सोना महंग होइहें त  कामे आयी ,,,,वैसहू हम खाली तोहरे लईकवन के ही ना कहत है ,,इ देशवे का हाल हौ ,,,,इ सीटी बजावे वाले ज्ञान दूकान प हमार गुस्सा हौ ,,,कुल स्कूल फटाहा कपडा वालन के पढ़वात रहलन ,,,लेकिन कौनो ऐसन न हौ जो एक आ ई एस  ना बनवले हौ ,,अ इ साला शुरुवे में टाई बध्वाय के वोसे ऐसन घिरना पैदा कराय देत हवे की ,,,पढ़ लिख के फटाहा पहिरे बदे परशान हो जान ,,,कौनो के पल्ले के अलावा एक अधिकारी बनावे क इतिहास न बा ,,,कुल खपड़ेल्वे सैक्ड़न क इतिहास बतोराले बाडन ,,,,तबले साइकिल क घंटी बजावले कुरता पहिने दूधवाला चिल्लाया ,,दूध लेल पंडित जी ,,पैसा खोदात हौ ,,देखे के हौ ,,,,,पैसा के नाम पर पंडितजी क गुस्सा फुर्र

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

जग जाहिर है जब जब प्रकृति के साथ अप्राकृतिक व्यवहार हुआ है तब तब विनाश गले का हार बनती है । अभी कुछ दिन पहले काशी हिन्दू विश्विविद्यालय में आपदा प्रबंधन पर चर्चा के दौरान कुछ पर्यावरण के विद्वानों ने नदियों को जोड़ने की कवायद की । मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कोई ऐसी नदी है जो किसी दूसरी नदी से जुडी न हो । हां नए विकास के माडल और नए पर्यावरण के विद्वानों ने अपने इन्ही कृत्रिम सोचों से प्राकृतिक आपदाओं को बखूबी न्योता दिया है । एकाक न्योतों की तादात और बढ़ जायेगी । हाँ एक फायदा जरूर होगा जैसा की होता रहा है ,,कुछ पर्यावरण का जबरन झोरा ढोने वालों के आलमारियों में कुछ गद्दियों की संख्या बढ़ जायेगी ,,या बैंक बचत में कई शून्य । प्रकृति जब जब छेड़ी जाती है धरासायी होता है सामान्य जन जीवन ,,जो तैयार रहे अगले के लिए,,,,,,,,
एक तरफ पंद्रह साल से पहले आप हाईस्कूल नहीं पास कर सकते ,,तो फिर मेरे समझ में नहीं आता की तेरह साल की बच्ची सुषमा को लखनऊ विश्वविद्यालय में एम्एससी में दाखिला कैसे मिल गया या इसके पहले की पढ़ाई उसको इतने कम उम्र में करने की छूट कहाँ से मिली ,,इस तरह की चर्चाएँ अक्सर अख़बारों में बखानी जाती हैं ,,उस बिटिया की तेजी से कोई ऐतराज नहीं है उसे कोटि शह प्रशंसा मिलनी चाहिए ,,,पर ये व्यवस्था कैसे मिलती है ,,कृपया शिक्षाविद महोदय लोग सुझाएँ ।

गुरुवार, 29 अगस्त 2013

दो  करोड़ खटाई में,,,,,,,,,,,
काशी  हिन्दू विश्वविद्यालय के रचयिता पंडित मदन मोहन मालवीय ने १९१६ में जिस जगह फावड़ा चलाकर विश्वविद्यालय की नीव रखी थी ,,,वह जगह  खाली छोड़ उससे हट कर बाद में विश्वविद्यालय का निर्माण शुरू किया । कारन की वह गंगा का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था ,और प्रयाग में नदियों के उफान में  बाकायदा उनकी समझ थी । अतः उस जगह को स्थापना स्थल के रूप में जाना और पूजा जाता था ,,महामना के फावड़े के निशानी के रूप में सजोया गया था । पर  कुलपति डॉ लालजी सिंह ने वहां दो सौ करोड़ की  लागत से ट्रामा सेंटर  बनवा डाला । जब बाढ़ की विभीषिका में बनारस जलमग्न होना शुरू हुआ तो उन्हें अपने ट्रामा सेंटर की याद आई और उसे देखने सदल पहुचे ,,पूरा प्रस्ताव मानों बाढ़ में आहें भर रहा हो ,,हो सकता है कोई रास्ता कुलपति महोदय को  मिल ही जाय और मोटी  रकम खर्च कर के पानी को अन्दर आने से कुछ  और रोक भी लें ,,लेकिन अदूरदर्शी होने के वजह से राष्ट्र का दो सौ करोड़ तो खटाई में ही दिख रहा है ,,ऊपर से महामना के प्रथम फावड़े की अनमोल निशानी भी निगल  ली इस ट्रामा सेंटर ने ।ये देश को फायदा कितना देगा भगवान् जाने पर तत्काल कुछ बिचौलियों की जेबों में तो हरियाली आयी ही होगी ।
सबसे बड़ा कारन की इस इतने बड़े विश्वविद्यालय को समझने में तीन बरस बीत जाते है यहाँ के कुलपतियों को ,,फलतः ये जिन चंद लोगों से घिरे होते हैं उन्ही को बीएचयू समझते हैं ,,और कितने लोगों की नौकरियां गणेश परिक्रमा में ही पूरी ही नहीं होती बल्कि पुष्पित और पल्लवित होती है ,,,महामना जैसे युग पुरुष ने विपन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण कराया देश को संपन्न बनाने के लिए ,,,और उनके मानस पुत्र सम्पन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण करा रहे हैं लेकिन देश को शायद विपन्न बनाने के लिए ।

बुधवार, 14 अगस्त 2013

देश में  ६७ वाँ आजादी का जश्न मनाने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं ,रंगाई पोताई चालू है ,कुछ टूटे फूटे ,भूले और छूटे भी लीप पोत  दिए जायेंगे ।  देश की तरक्कियां गिनाई जाएँगी ,फिर से कुछ कश्मे वायदे होंगे । संस्कारशाला सा माहौल रहेगा ,,महापुरुषों के सिद्धांतों पर चलने की सीख दी जाएँगी ,,,,दुकान डलिया बंद रहेगी ,छात्रों के लिए घुमक्कड़ी का दिन सा होगा ,,,,फिर साल भर के लिए इस भारी खुराक का अंत ,,,,,,कुछ इस तरह से फिर हम जुटेंगे गणतंत्र  की तैयारियों में कितना दिन ही बचा है मात्र पांच ही महीने न ,,,,,,फिर भी रश्मों रिवाज की फितरतों से ऊपर उठ कर ,,,,बन्दे मातरम् से लबरेज होना ,,,,,जय हिन्द जय भारत

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

अब नहीं रही महामना की बगिया गरीबों के लिए ,,

   महात्मा मालवीय जी महराज के सपने का बीएचयू अब शायद नहीं रहा ,,विश्वविद्यालय के निर्माण में निश्चित ही अमीरों के अमीरी का ज्यादा योगदान था लेकिन गरीबों की रेज्कारियां भी पंडित जी के कटोरे में छलकी थी . यही कारन था की उनका पूरा ध्यान गरीब भारत पर था और इसकी जरूरत भी शायद उनके दिमाग में इन्ही गरीबों को ध्यान में रखकर उभरी रही होंगी ,,अन्यथा जो हैसियत वाले थे  वो तो उन दिनों भी विदेश पढाई करने जाते ही थे ,,,लेकिन आज का विश्वविद्यालय गरीब भारत को देखना भी पसंद नहीं करता ,,,कल अख़बार में पढने को मिला की एक बच्चे को कुछ छात्र  में उठाकर अस्पताल में ले गए तो वह चिकित्सकों ने   बद्फी नाटक नौटंकी के बाद उसे इलाज मिला ,,,ऐसे न जाने दूर दराज से आये कितने रोगी रोज बेइज्जती ,और जलालत झेलते हैं ,,साथ ही साथ लूटे भी जाते हैं ,,,यह तो हाल है विश्विद्यालय के प्रवेशद्वार का ,,,अन्दर  घुसते ही इस तथाकथित शिक्षा की राजधानी में बहुरूपियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है ,,कुछ ऐसे लोग हैं जो सिर्फ चमचागिरी से फलफूल रहे हैं ,चाहे जो कुलपति आये वो सबके करीब होते हैं मोती तनख्वाहों के बेरंगी चश्मे से उन्हें गरीब भारत नहीं दीखता ,,,उन्हें किसान की हैसियत नहीं  पता एक बरस के लिए हल चलाना बंद कर देगा तो पूरी कायनात के होश ठिकाने हो जायेंगे ,,,लेकिन यहाँ आये दिन गरीबों को अनदेखा कर फीस वृद्धि इत्यादि जारी है ,,पहले यहाँ गरीब किसी तरह खीच कर प्रवेश पा लिया तो फिर जीवन सुधर जाता था ,,आज इतना खर्च हो जाता है की ,,,,,जब की इतनी अधिक राशी आती है इस संस्थान के नाम पर की खर्च कर पाना  सम्भव नहीं हो पाता,,और चैनलों पर बीएचयू का प्रचार करने का फर्जी प्रमाणपत्र सौप घोटाले बाजी होती है ,,,,,आखिर ये सारे लोग छात्रों के मंच छात्र संघ के विरोध में क्यों खड़े हो जाते है कारन की इन्हें पता है अगर ये अधिकार फिर से उन्हें हाशिल हुआ तो अतीत वर्तमान और भविष्य तीनों की काली खुल जायेगी ,,,,,लेकिन वर्तमान रहनुमाओं को एक सार्थक सलाह देने की गुस्ताखी करने की जरुरत समझता हु की बाढ़ पानी को जरुर रोक लेता है लेकि एक समय तक उसके बाद जब बाँध टूटता है तो तो तबाहियां देखे नहीं देख जातीं ,,,,गरीबों की अनदेखी बंद करे और छात्रों को उनका मंच दे सब निपटारा अपने आप हो जायेगा ,,,,

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मेरे महान  में जब तक अंगरेज रहे तब तक अंग्रेजी इतनी मजबूती नहीं बना पायी थी ,,, पर अंग्रेजों के जाते जितने दिन बीत रहे हैं अंगरेजी उतनी मजबूत होती जा रही है ,,,पाठशालाओं में मौलबी साहब और पंडित जी या मुंशीजी  हुआ करते थे ,,,,अंग्रेजी के गुरुओं का कही जिक्र नहीं सुनाई पड़ता था ,,,,,एक भाषा के तौर पर इसके ज्ञान को बढ़ाना कत्तई बुरा या गलत नहीं है लेकिन भाषाई चोचले बाजी अब अंगरेजी पर भी भरी पड़ने लगी है ,,,,अमेरिकन और ब्रिटिश के चक्कर में अंग्रेजी बेचने की दूकान चमकाए लोग छात्रों को छल रहे हैं ,,,छात्र सही गलत में फस कर दम तोड़ रहा है ,,,,उदहारण के लिए कुछ शब्दों की पेशकश जरुरी है ,,,हमारे किसी गुरु ने या हमारी पीढी के लोगों को शायद were को वर कभी भी नहीं बताया गया ये हमेशा वेयर था ,,,यहाँ तक की हिन्दू विश्वविद्यालय के अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थी होने के वजह से अपने समय के गुरुओं को भी याद करते हुए याद आता है की वो लोग भी वेयर ही कहते थे ,,,अब finananceकही फाइनेंस होता ही नहीं फिनांस हो गया ,,director डायरेक्टर ,,डिरेक्टर हो गया ,,,,सिखवाक इस बदलावों से बेहाल हैं ,,,,,हमारे यहाँ एक कहावत कही जाती थी की ,,,,कोस कोस पर पानी बदले ,,तीन कोस पर बानी ,,,,कहा सम्भव है भाइयों की पूरी दुनिया की भाषा एक बना देंगे ,,,ऐसा होना भी ,,खतरा है ,,,,,,,

शनिवार, 22 जून 2013

कहाँ  गए सारे धन कुबेर जो कभी किसी दुर्घटना या मौत पर दुःख भरे दो बूँद घडियाली आँसू ही सही बहाने के बजाय हर मौत की कीमते तय करते फिरते हैं ,दो लफ्ज शांत्वाना  के बोलने के बजाय मौत के मुआवजे बाँटते फिरते हैं । क्या अनगिनत मौतें उनके खजाने पर भारी  पड़ने लगी हैं ,या प्रकृति को नाश कर मिथ्या विकास की अपनी विचित्र अवधारणा पर मंथन कर रहे हैं  । एक और भी गिरोह है जो हर आपदा में सबसे पहले अपने हाथ सहयोग के रूप में प्रस्तुत करने का ढोंग रचता है और उसके मुखियों का शख्त आदेश होता है कि बिना वर्दी के दिखना नहीं है ,,,,,,,,,,सब के सब कहाँ हैं ?

गुरुवार, 20 जून 2013

उत्तराखण्ड में हुई भयानक प्राक्रितिक तबाही से सीख लेनी चाहिए आधुनिक भारत  के निर्माताओं को । बाढ़ और इस तरह की जल तबाही को रोकने में छोटी नदियों,नारों और तालाबों,तालों ,कुंडों और कुओं का अति महत्वपूर्ण योगदान होता थ। आज इन छोटे जल श्रोतों के प्रति हमारे देश की सरकारे इस कदर उदासीन है और अमेरिका बनाने में  पगलाए हुए हैं कि नदियों को पाटने और उन पर लम्बी चौड़ी इमारते बनाने की खुली छूट और लूट जारी है । मुठ्ठी भर सरकार के लोगो पर ही पूरा दोष नहीं मढ़ा जा सकता है ,हम लोग भी इस कदर अपने स्वार्थों में अंधे हो चले हैं कि क्या नदियाँ क्या तालाब हर चीज की कीमत लगाने और उस पर अपना नेम प्लेट झुल्वाने के पीछे झूलते जा रहे हैं । उन्हें भी एक नजर इस भयानक जल आपदा पर नजर डाल कर आँख मूद  सोचने की जरुरत है आखिर वो किस दुर्घटना की घड़ी की बाट  जोह रहे हैं । जब गंगा उफान पर होती है तो उसके बाढ़ को ये छोटी नदियाँ कूप तालाब इत्यादि आपदा नियंत्रण की भूमिका में होते हैं । लेकिन इनको पाइप में डाल कर साफ सुथरा सड़क बनाने के सरकार के फैसले पर हम लट्टू हो जाते हैं । याद रहे टेहरी भी एक बाँध है  उसकी भी अपनी एक धैर्य सीमा है गंगा का सत्तर प्रतिशत पानी उसे अकेले पिलाया जाता है ,जिस दिन उसका पेट भर जाएगा ,फिर  विकास के भूख को भी तत्काल शांत  करने में वो कोई कसर नहीं छोड़ेगा ,और हमारे पास  मलने को हाथ भी नहीं रह जाएगा ,केदारनाथ जी के बाद विश्वनाथजी को भी त्रस्त  करने का मानचित्र तैयार है ,,,,अब तो कम से कम नदियों को पाटने तालाबो को पीने की आदत से बाज आइये ।

गुरुवार, 30 मई 2013

 जायका एक जापानी कंपनी ने भारत को पांच सौ करोड़ दिए हैं क्या नदियाँ पाटने के लिए वो भी वो कर्ज के पैसे हैं खैरात के नहीं ।   असि नदी को पाटने और उसे सीवर लाइन से प्रवाहित करने के लिए जायका से ये ठेका गंगा प्रदूषण इकाई ने ले रखा था और उसके वही जी एम् साहब जिसे डीएम ने हैसियत में ला दिया   मुखिया रहे । नदी को सीवर में डालने का विरोध जब असि बचाओ संघर्ष समिति के लोगों ने किया तो आनन् फानन में नगर आयुक्त ने कार्य रोकने का आदेश दिया पर अब भी चोरी छुपे पाइप डाली जा रही है ।  उन्हें  पुनः ये चेतावनी  है की होश में रहे ।  मुझे समझ में नही आता इस देश के नुमाइंदों  को हो क्या गया है ये देश को पाटने पर क्यों तुले हैं । इस देश में हर समस्या के लिए आँख मूद करोड़ों अरबों के पैसे दे दिए जा रहे हैं  पर उसे देखने वाला कोई नहीं की काम हो भी रहा है की नहीं ,सड़क बदहाल पानी बदहाल ,जन जीवन बदहाल ,और हर परेशानी पर अरबों के बजट लिए रस्ते के बाबू से ले लेकर ठेके दार तक की कोठियां तनती जा रही हैं । ४९६ करोड़ का जायका का प्रजेक्ट आगे देखिये क्या क्या रंग लाता है किसकी कोठी कितनी तनती है ।

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

अरे भाई बाँध नहीं रहेगा तो बिजली कैसे बनेगी और बिजली नहीं मिलेगी तो मिसिर जी का वातानुकूलक यंत्र कैसे चलेगा ,,,,मिसिर जी तपाक से बोले ,,तोके सेती क मिसिरे जी मिलल हुवे हर जगह घसीटे खातीं ,,,चलल हौवा बोले बीस तीस परसेंट पनिया छोड़ी जाई त  ओसे का होई ,,,,इ जग जाहिर हाउ की नदी क अस्तित्व बहले से हाउ ,,पानी रुकी त सडबे करी अ जब उ सडलाका पानी क कुछ हिस्सा छोडल जाई त और चौपट होई,,,,शुकुल जी टपाक से बोले माने तूं एसी क मोह तियागे बड़े तैयार न हौवा ,,,सही जगह बाते नहीं होत  हव ,,,सब गोल गोल घुमावत हौ खली ,,,,देखा जब जब कौनो व्यवस्था क एके एके जगह गोलियावल जाई त इ समस्या आई ,,,अरे हर शहरिये में त बिजली बनत रहल ,,सब अपने काम भर के बिजली बनाय्ले और जरुरत परले पर आस पास के भी सप्लाई हो जाय ,बढ़र इनवर्सिटी अपने काम भरके बिजिलिया खुदे बनावे ,,,कौनो आध बाध  क जरुरत न हाउ ,,,हर शहर फिर से बिजली बनावे शुरू करे शहर के सीवर के पानी क उम्मे उपयोग करे ,नदियों साफ रही औ कौनो दिक्कत न आई ,,,,हाँ लुटाई न हो पायी ,,,मिसिर जी क्यों चुप रहे ,,अरे यार इ कुल पखंदिया मिलके नाश कर दिहे ,,,,पर इ जान ल ,,,की नाद नद्दी क पैसा जे खाई ,,उ गौ मॉस खाई ,,,अ फिर ऐसन ओक्काई  की शहर भर बस्साई ,,,,,,,,,,

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

महोदय
क्रिश्नायातन कोलोनी ,सामने घाट ,(परमहंस आश्रम  के पास )लंका ,वाराणसी  निवासिनी ज्योति देवी पत्नी चितरंजन सिंह (९ ९ ३ ६ ४ ९ ७० ८ ५ )   एवं उर्मिला देवी पत्नी विजय सिंह  (७ ३ ७ ६ १ ६ १ १ ५ ३ )ने रामनगर  थाना क्षेत्र अंतर्गत  कोदोपुर में  स्थानीय वकील   मुरारी लाल यादव के मार्फ़त जमीन ले रखी थी ,  इन लोगों ने अपनी जमीन को घेर रखी थी ,कुछ दिन पहले कुछ लोगों ने उसे अपनी जमीन बताते हुए जमीन को घेरने  हेतु लगे  पिलर को  भूपेन्द् वगैरह  ने क्षतिग्रस्त किया  था तो प्रार्थिनी द्वय ने रामनगर थाने को सूचित कर गुहार लगाई थी ,उस पर थाने  से एक दीवान मौके  पर पहुच  कर तत्काल काम रोकने को कह गए थे । सब  कुछ  शांत चल रहा था की अचानक गत रात्रि को ( २२ -३ -२०१ ३ )को जमीन की ईंटे से चाहर दीवारी रातोरात खडी कर दी  गयी है । पूरा मामला इन महिलाओं के विरूध्ह  है ।
 अतः इसे संज्ञान में लेते हुए मौके का मुआयना  करा इन्हें न्याय दिलाने की   । 

बुधवार, 20 मार्च 2013

यह कहना शायद कत्तई गलत नहीं होगा की वर्दी की निगाहें जब भी टेढ़ी होती हैं तो किसी गरीब की ठेले खोमचे  की गाढ़ी कमाई से बनी कोठरी ही घायल होती है हताहत होती है ,देखना है की क्या किसी अट्टालिका पर भी फेसबुक वर्दी की भौहें टेढ़ी कर पाता है ,,,पूरा बनारस ही अतिक्रमण से भरा पटा  है ,और उसमें नगर निगम और विकास प्राधिकरण के लोग भी शामिल हैं ,इतना ही नहीं बाकायदा नेम प्लेट लगाये हुए हैं ,नदियों की सुरक्षा के लिए सरकारे नाटक कर रही हैं ,दो सौ मीटर गंगा ,सौ मीटर वरुना और पचास मीटर असि के दोनों तरफ निर्माण प्रतिबंधित है ,वाराणसी विकास प्राधिकरण का लिखित जवाब में जैसा बताया है ,,,,,वही सरकार असि नदी ही पटवा रही है ,,,,,,,,ऐसे बहुतायत सवालों से भी दो चार होना है ,,,,,,
ईश्वर धैर्य प्रदान करे विभाग को सबको सुन पढ़ सके ,,,,,,,,,बधाई

मंगलवार, 19 मार्च 2013

प्रदेश में सत्तासीन राजनैतिक संगठन के पूर्व सांसद पर भी मदमस्त होकर  चलती बोगी में ,,,,आज कल अख़बारों में छाये सतकर्म करने का आरोप लगा ,,,सांसद महोदय सरेराह गिरफ्तार कर लिए गए ,,,,उनके सीने में दर्द तो उठानी ही थी ,जो नियति समय पर उठी ,फलतः उन्हें नजदीक के अस्पताल का मुह देखना पड़ा ,,,,,,तब तक आरोप लगाने वाली देवी आरोप वॉपस ले लीं ,,,,उधर सांसद महोदय चंगा हो गए और अस्पताल से छुट्टी पा लिए ,,,,,,न जाने कौन छला गया देवी जी या संविधान ,,,,,,,,

रविवार, 17 मार्च 2013

मटरू बड़बडाये जा रहे थे ,,,इ साला चाहे जेकर सरकार आवे ले हजारो लाखों में भर्ती निकाले न सब के सब ,लेकिन इम्मे बहाली केकर होल इ समझना बड़ा कठिन हौ ,,,स्थिति जस क तस ,,,अपने रामनाम गुरु काहे माने ,,कुल सवाल क जवाब  हम देब तोहके मटरू ,तू हवा बक,,, ऐसही चिल्लाला,,,,देखा हमरे देश में पैसा क आगम त रही न ई गयल ,,उप्पर से लेपटोप बातेके होउ ,बेरोजगारी भत्ता देवे के हाउ ,बृद्धा पेंशन देवे के हाउ ,विधवा पेंशन देवे के हाउ ,कन्या विद्याधन देवे के हाउ ,,केहू एसपी डी एसपी लडल ,भिडल टी ओके अशर्फी बाते के हाउ ,,टी आई कहा से ,,अब निकल दा झौवा भर के बहाली ,,इ कशम खा के की कुछ होए ना देवे के हाउ ,,सबके देदा छूट की एक आदमी कई जगह से फरमवा भर सकला ,,,बस अब का इ भारत हाउ ,एक एक जाने कर्ज ले ले के बीस बीस हजार रुपया तक क फारम भरिहे ,,सरकार केतना के खैरात बाटी ,,,सब चंगा ,,,,हां अपने ही एक आदमी के लगाय के इलाहाबाद के न्याय घरवा में एक थे केश थोक्वा देवे के हाउ ,सब बहाली रुक जाई ,,,,,,रे लगे न फिटकिरी माल चोखा ,,,,,,,,,मटरू उलट गए ,,,तूत ज्ञाने खोल देहला ये रामनाम पंडित,,,,,,

मंगलवार, 5 मार्च 2013

एक नदी की हत्या का जुर्म सरकार पर
असि एक नदी है इसको मनवाने में डेढ़ बरस लग गये। पता नहीं किसने माना किसने नही । शुक्र है की वाराणसी शहर के नाम से असि जुडी हुई है अथवा ,,,। सरकार भी मान गयी की यह नदी रही और इसके साथ अत्याचार हुआ है फलतः इसके उद्धार के लिए निश्चित कदम उठाए जायेंगे । सरकारे हर सामाजिक कार्य हेतु पैसा जारी करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है ,अतः इसके उद्धार के लिए भी ८ करोड़ ९ लाख रूपये पास कर चुप्पी साध ली गयि। अख़बारों में बड़ी खबर आयी की असि फिर से होगी जीवित । तीन चार दिन पैमाइस भी हुआ ,लगा सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है अब इस नदी को इसकी अस्मिता मिल ही जाएगी । अचानक पता नहीं क्या बिगडा ,पैमाइस कार्य बंद हुआ ,किसके आदेश से शुरू हुआ था ,और किसके आदेश से बंद हुआ भगवान् ही जाने । अचानक कुछ दिन बाद बड़ी बड़ी पाइप दाल इसे पाटने का काम शुरू हो गया । अधिकारीयों ने ये जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा की जनता को क्या जवाब देंगे जब वो पूछेगी की अभी तो आप इसे पुनर्जीवित कर रहे थे आज अचानक इसे मुर्दा करने पर क्यों तुले हुए हैं । गंगा प्रदूषण की इकाई को ये काम मिला हुआ है ,अब तक तो नदी पट चुकी होती लेकिन अपनी हैसियत पर ला दी है पाटने वालों को आये दिन एक नयी मुसीबत झेल आज तक एक भी पाइप पड़  नहीं पायी है । कारन सारे पापों का नाश करने  वाली  इस नदी  को ही लोगों ने नाश करने की  ली है । क्षमा कीजियेगा कभी कभी तो अफ़सोस होता है की मैं इस नदी को बचा तो नहीं पाया लेकिन हाँ इसके अस्तित्व तक का नाश कराने में मेरी भूमिका जरूर है । लेकिन एक बात स्पष्ट रूप से कह देना जरुरी है की एक पौराणिक नदी की हत्या के जूर्म से सरकार अपने को कभी उबार नहीं पाएगी ,इसका बुरा करने वालों का नाश होना तय है । मामला उच्च न्यायलय में है देखिये क्या होता है ,,,,सर्कार ३० २ झेलती है या ३०७ ,,,,,झेलना तो है ,,,,,,

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

  मुँहे  लगल  लोमड़िया त गावे ताल -बेताल ,,,,,,,,,
रामनाम गुरु चोकरे जा रहे थे ,अब  सरवा इ देश में रहे जोग नहीं हौ ,कुल सारे पंडितन के चूतिया समझे लन ,देखिला अब माई बचल हइन सरऊ क के जाला उनकर पिंडा  परावे ,,,जे के देखा वू हे आजकल विद्वान क पूछ भायल हवे ,अब करावे सार लोग अपने हाथे इंडा -पिंडा । तब तक पीछे से कुदाल लिए उंकार महराज ,,,का ये रामनाम सबेर्वे सबेर्वे का सनकल  हवा मरदवा ,,कहाँ से आवत हुआ ,,,,रामनाम फायर ,,चाहे जहाँ से आवत होई तोहसे मतलब ,,,कुल बात तोहर जानल जरुरी हौ । ,,उनकर गुरु थोड़े गंभीर मलेटरी से रिटायर आदमी ,चुप हुए फिर बोले ,,,,इ झोरा लेके कहा से आवत हवा पाहिले इ बतावा रामनाम ,,,,,रामनाम थोडा शांत हुए ,,,,बाहिरी अहिराने में गयल रहली मकनू क कुल लैकावा बहरे का रहे लगलन सब राष्ट्रपति बूझेने अपने के,,,भायल का,,,होई का सबेरे सबेरे सुनली कि उनकर माई मर गइलीं त सोचली पुराण जजमान हवे बिना बोलवले चल गईली ,,,उहा कुल दिल्ली से फटहवा जींस पहिर के आयल हवे कहत हवे इ सब लोकाधंधन न होई,,,ओन्हन के समझावे लागली त  कुल अंग्रेजी झारे  लगलन ,,फिर का तुम तुम ,,कह के बोले लगलन ,,,हमहू दतली जोर से ,,,मुहे लागल लोमड़िया त गावे ताल-बेताल ,,अ चली ईली घरे ,,तबले तू टपक परल,,,,,,,,,,

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

हम अन्ना टीम के आदमी हैं ,,,,,,
एक शिक्षक मित्र जो एक अंगरेजी स्कूल में अध्यापक हैं। एक छात्र को उनके स्कूल के एक अध्यापक ने किसी विषय में फेल कर दिया ,लड़का कम लिखा था या कमजोर था जो भी । शाम को उस अध्यापक के घर एक फोन काल आता है मैं अन्ना टीम का आदमी हु उस लड़के को पास कर दो नहीं कल स्कूल में हुजूम के साथ आऊंगा सब चौपट कर दुगा । डरे अध्यापक बिचारे सुबह प्रधानाचार्य महोदय को ये बात तो बताये पर इसके पहले वे बच्चे को पास कर चुके थे । प्रधानाचार्य जी ने जब बच्चे के पिता को वह बुलाया की ऐसा कौन कर रहा है तो वह प्रधानाचार्य पर ही दाना पानी लेकर चढ़ गया ,,मैं क्या जानू कौन फोन किया था ,,,बहरहाल फोन जो भी किया हो लड़का भी पास हो गया तलाश भी नहीं हो पायी की वो अन्ना कौन था ,,,,,,,लेकिन अन्ना तो,,,,,,,,,,

बुधवार, 30 जनवरी 2013

हम  लोग अजब देश के गजब निवासी हैं ,जहाँ आये दिन कोई न कोई भावनाओं के कंधे पर चढ़ गोता लगाने को कतारबद्ध होता है।आज सुबह सुबह आँख खुलते ही अख़बार की सबसे बड़ी खबर दिखी की कमल हसन साहब देश छोड़ के चले जायेंगे ,बिना आँख मीजे की साफ़ दिखने लगा ,आगे कारण पढ़ा तो उनकी सिनेमा यदि  रिलीज नहीं होती है तो ,,,।पता नहीं उनकी सिनेमा में ऐसा क्या है की सेंसर बोर्ड ने रोक लगाई है ,एक से बढ़ कर एक सिनेमा आ रही है ,बड़े शान से बोल्ड सीन और आइटम सांग परोसे जा रहे हैं ,सेंसर बोर्ड स्वागत कर रहा है ,कभी कभी लगता है की सेंसर बोर्ड में जो अधिपत्य में हैं वे कपडे की सभ्यता में विश्वास नहीं रखते।  जनता की जुबान भी मसालेदार हुई है ,ऐसे में कमल हसन साहब की सिनेमा पर रोक हाजमा तो सही नहीं रख पा  रही है।अगर उसे  धर्म विशेष से जुड़े किसी तथ्य के वजह से रोका जा रहा है तो भी ऐसी बहुतायत सिनेमा आयी हैं जिसमे हमारे धर्मों और संस्कारों की धज्जियाँ उडाई गयी है,फिर ये रोक सिर्फ कमल साहब के सिनेमा के लिए ही क्यो ? लेकिन इस पर कमल साहब का ये बयां की अगर उनकी सिनेमा रिलीज नहीं हुई तो वह देश छोड़ देंगे ,,,की भी मैं तारीफ नहीं कर सकता।कला का सम्मान होना चाहिए ,लेकिन कलाकार के देश छोड़ने की धमकी पर कत्तई नहीं।ऐसे हर किसी शख्श को जिसको भरत की माटी से ज्यादा अपने व्यवसाय और पूँजी का ख़याल है ,उसके शर्तों पर देश चले ,ये कदापि देश सगत नहीं है।
वो बात अलग है की अब उनकी सिनेमा रिलीज भी होगी और उन्हें दर्शकों की भीड़ भी मिलेगी ,उनका सब सोना सोना होगा ,लेकिन देश का ,,,देश की भावनाओं का ,देश के उन  कला प्रेमियों का ,,,,,क्या कलाकार सिर्फ देश छोड़ने की धमकियों से जीवित रखेगा अपने को,,,,

सोमवार, 28 जनवरी 2013

का हो नारायण अरे तोहार लईकवा पवलस की नाही,,,नारायण गुरु पीछे देखे ,,,सबेरे सबेरे तोहके मजाक करे क सौख चर्रायल हउ ,,,,,साफ साफ बतावा न ,,,मुन्नू पंडित टाईट ,,,,अरे कलिहा बेरोजगारी भत्ता बटल ...तोहरो चेलवा त फरामावा भरले होई न।अब का नारायण गुरु फायर ,,,अरे इ साला खली नौटंकी किले हवे जैसे अपने बाप के घर से देत  होय ,,,हमर लैकावा सच्चों  में बेरोजगार हौ ओके काहे मिली भाय ,,,,इ साला  पैसवा क चेकवा जेके जेके मिलल का कुल बेरोजगारे हवे ,त अब तक घोटात का रहलन ,,,सकल अखबार में देखले से न लगत हा की इ सब खिले बिना टूटल हवे ,,,, आपन रोजी रोजगार क जुगार सब के हौ ,,,प्राइवेट नोकारियो वाले भरले हवे फ़रम खूब पैसा मिळत हाउ,,,इ देशवे ऐसे जेतना इ खैरतवा बाटे वाले क अधिकार हौ ,देशवा पर ,वोटने कैरात्वा लवे वालन क भी बा ,,,लेकिन ऐसे खुश होत हवे पैसा पाके जैसे,,,,,,,इ देशवे बिक जी ये बतौवल में ,,,,,मुन्नू पंडित चापे ,,,,बा रजा तोहरे बेतवा के ना मिलल त  बौद्धिक शुरू ,,,,,

रविवार, 20 जनवरी 2013

काशी त्याग ,सहयोग ,समर्पण ,विचार ,अध्यात्म ,कला ,संस्कृति और सभ्यताओं के अप्रतिम सम्मिश्रण से बना एक एक अद्भुत जीवंत शहर है।तुलसी ,कबीर ,बुद्ध ,रविदास,कीनाराम  जैसे महान संतों की तपस्थली और कर्मस्थली रही है।वहीं महामना जैसा महान व्यक्तित्व तो लालबहादुर जैसा सादगी का साधक भी यहाँ उपजा।फक्कड़ों के इस निराले शहर का अंदाज  भी फक्काडाना  है।इन सबके क्रित्रित्व को आगे बढाते हुए आज की पीढी भी सेवा लकीरें खीचने में कत्तई पीछे नहीं है।
महाकालेश्वर के इस धाम रुपी  शहर में पिछले दिसंबर माह (9 दिसंबर 2012)से वहां दूर दराज से आ रहे शव यात्रिओं ,और घाट के खानाबदोस घुमक्कड़ों के लिए प्रसाद स्वरुप भोजन की अनवरत व्यवस्था चल रही है।महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का 150 वा जयंती वर्ष पूरे देश में मनाया जा रहा है ,उसी महामना के एक मानस पुत्र पंडित रमेश उपाध्याय ने महामना के जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में  इस महान कार्य का वीणा उठाया है।बड़ी मजे की बात की इस शहर में ऐसे बहुतायत भोज बहुतायत जगहों पर पूजीपतियों द्वारा चलते हैं ,लेकिन ये भोज किसी पूजीपति द्वारा नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ सेवाभाव की ताकत ,महाकालेश्वर के प्रति समर्पण और बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से चल रहा है।इस लिए इसका जिक्र करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।पेशे से वकील ,एक हाथ में छडी लिए सामान्य कद काठी के इस व्यक्तित्व के विषय में एक साथी ने इसी भोज के सन्दर्भ में बताया की आज जब मैं मर्न्कर्निका पर पंहुचा तो देखा की रमेश उपाध्याय जी खुद एक झोरे में पत्तल लेके दुसरे हाथ में छडी लिए सीढिय चढ़ रहे थे ,इसलिए और महत्वपूर्ण होजाता है ये जिक्र की लम्बी गाड़ियों के काफिले से नहीं आती इस भोज में बन्ने वाली तरकारियाँ।
ऐसे पुन्य काजी लोगों से ही सजा और बचा है ये शहर ,निश्चित रूप से सब कुछ बाबा का ,और बाबा  से,,,,

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

सब गोलमाल है ,,,,,,,

पिछले महीने से ही सरकार की महगाई में काफी रूचि बढी है ,कारन की देश की जनता कही और की ख़बरों में व्यस्त है ।आये दिन घटनाओं दुर्घटनाओं के काफिले देश का स्वागत करने के लिए तैयार हैं ,सरकार चाह  कर भी शायद उसे रोकने की पहल  नहीं करनी चाह रही है ,चाहे वो केंद्र की सरकार हो या प्रदेश की सरकारें।जनता का दिमाग कहीं और व्यस्त है और इसी का लाभ उठाते हुए आये दिन रसोई गैस तो डीजल की कीमत में मनमाने ढंग से उछल किये जा रहे हैं।वैसे जब जनता व्यस्त नहीं थी तब ही उनका क्या बिगाड़ लेती थी ।
पहले ऐसा सुनाई पड़ता था की घर के लोग बाहर मनोरन्जन से सम्बंधित नाच गान देखने गए और घर लुट गया ,लेकिन आज घर में दुबक कर मातम मनाते हुए सरेआम ये लूट जारी है।
इससे बढिया मौका नहीं मिलेगा ,,,,,,,,सच में सब गोलमाल है ,,,,,,,,,
चुप्पी तोडनी होगी
 महिला सदैव से सम्मानित थी ,है और रहेगी।यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ,,,न कल गलत था न आज गलत है और न कभी गलत होगा ।समय के साथ हुए हर तरह के बदलावों के बाद भी नारी समाज के केन्द्रीय भूमिका में रही है ,आज भी है और कल भी तयशुदा रहेगी।अगर मुह न नोचा जाय तो यह कहना कत्तई गलत नहीं होगा कि अगर उसे परदे में रखने की व्यस्था भी थी तो वो शोषण नहीं था बल्कि वो समाज के लिए परिवार के लिए और देश दुनिया के लिए इतनी महत्वपूर्ण थी कि उसे हिफाजत ,सुरक्षा ,सम्मान ,पूजा ,आस्था की दृष्टि से परदे में रखा गया कारण हम आज भी बेशकीमती सजीव और निर्जीव दोनों को छुपा कर रखते हैं जिससे दुनिया की बद हवाओं से उसका पाला न पड़े।कोई भी आकृति जब सटीक रूप नहीं ले पाती तो उसमे विकृति आती ,फलतः पर्दा प्रथा के दोष भी सामने आये।
आज हर जगह नारी समाज ,नारी समुदाय संबोधन देकर इसे छल कर दूसरा समाज देने का मिथ्या प्रयास चल रहा है ,क्या हमारी नारियां (माँ ,बहन ,बेटी )आज मेरे समाज की भी नहीं रही।ये कहना कत्तई गलत नहीं होगा की वेद काल के विषय में एक श्लोक पढ़ा था ,पुर्काल्पेशु नारीनाम मन्दिरा  वंदना निश्चिताः ,उपनयनानाम संस्कारानाम ,,,,,,,जब महिला जनेऊ भी धारण करती थी ,मई इसे धर्म और जाती विशेष से जोड़ कर नहीं देख और कह रहा बल्कि ऐसे विकास उस समय के हर धर्म और समाज में रहे होंगे ,,,,के बाद सर्वाधिक अग्रणी भूमिका में महिला आज है ,कदम से कदम मिला कर मात दे रही है ।ऐसे में उसे एक अलग समाज के नजरिये से प्रस्तुत करना महापाप सरीखा वैचारिक टूट पैदा करना है।माँ अगर अपने बच्चों के लिए धुंए में आँख फोड़ खाना पकाती है ,खली पेट सो जाती है ,तो ये सिर्फ और सिर्फ उसका त्याग और बच्चों के प्रति प्रेम है ,इसे कलुषित मानसिकता के लोग अगर शोषण नाम दे ,माँ खुद मुंह नोच लेगी।
दिल्ली की दुर्दांत घटना के बाद मानों ऐसी घटनाओं की जाल बिछ गयी पूरे देश में ,मिडिया के लोग भी कैमरे लिए घूम रहे हैं खाली उसी के तलाश में ,कोई भी मुह खोलने से कतरा रहां हैं ।मैं स्पष्ट कर दूं की किसी बाबा की न किसी खादी की बचाव कर रहा हूँ बल्कि आप सबसे हाथ जोड़  रहा हूँ कि अब बस , कितना भावुक करोगे  उस कष्टमय परिवार को ।धैर्य का बाँध तब और भी टूट जाता है जब जिन लोगों ने महिलाओं को हमेशा उपयोग की विषयवस्तु समझने की भूल की है वो ही आज उनके साथ फिर धूर्तता कर उनकी सहानूभूति हाशिल करना चाह  रहे हैं। अतः कर बध्ध निवेदन है की अब बस ,तोडना  बंद ,जोडीये ,गयी हुई सामाजिक संवेदना को जीवित कीजिये ,नैतिक मूल्यों को आवाज दीजिये ,नारी के नाम पर लग से नहीं उसे खुद से जोड़ कर अपने को अपने आस पास को अपने समाज को सुधरने के प्रयास में आगे आइये ,,,,नारी उलझी तो ब्रह्माण्ड उलाझ जाएगा ,सृष्टि उलझ जायेगी ,,,।

सोमवार, 7 जनवरी 2013

प्रशासनिक नाटक ,,,,,,
एक दिन पहले वाराणसी के  वरुना नदी के पास से गुजर रहा था, नदी की तरफ किसी का भी ध्यान खिंच जायेगा कारन शायद इतनी दुर्गन्धयुक्त और गन्दगी से पटी वरुणा कभी भी नहीं रही होगी यहाँ तक की एक साल पहले भी ।अभी कुछ दिन पहले वरुना के लिए कुछ लोग संघर्षरत थे प्रशासन झुका भी ,उच्च न्यायलय का आदेश आया ,लगा मानो रातोरात प्रशसन वरुणा के पानी को पेयजल सरीखा बना देगा ।लोग खुश।और शासन प्रशासन पहले से भी ज्यादा लचर हो गया मानो  मुंह चिढ़ा  रहा हो की करो आन्दोलन धरना प्रदर्शन देखता हु क्या उखाड़ ,बिगाड़ लेते हो।
अभी कुछ दिन पहले असि नदी के सवाल पर हम लोग एक पत्रकार वार्ता कर रहे थे तो एक पत्रकार महोदय ने शहर के एक बड़े नेता का खुल्लमखुल्ला नाम लेते हुए कहा की चाहे जब ही वो आ जाते हैं कहते है अब फिर वरुणा पर कुछ छापा लोग ,हम कुछ कयल चाहत हई ।हो सकता है पत्रकार महोदय यही साबित करना चाह रहे हो कि  उनके उनसे बड़े दोस्ताना सम्बन्ध हैं। कहीं न कहीं इन लोगों के नाटक प्रशासनिक लोगों को नाटकीय तो  बना  ही दे रहे हैं।
अभी असि नदी के उद्धार के लिए शासन ने 8.8 करोड़ रुपया पास किया बकौल अखबार ।कुछ दिन नौटंकी भी चली नाप नापी भी हुआ ,अब सब ठंढा हो चले हैं।हां एक विकास हुआ है जो असि नदी के किनारे नीव पडी थी नाजायज नीवें  दीवार का स्वरुप ले रही है ।प्रशासन हर तरफ मुह चिढ़ा तमाशा देखने का काम कर रहा है।लेकिन ये इनका भ्रम और सिर्फ भ्रम है इनका जनता की भावनाओं की बरगलाने का मिथ्या प्रयास सफल कत्तई नहीं होने दिया जाएगा,इन्तजार है इनके अगले कदम का,,,,,,

रविवार, 6 जनवरी 2013

थॉमस हार्डी का चर्चित उपन्यास मेयर ऑफ़ कैस्टरब्रिज का ख्याल आया।वहां जिसे हम पाश्चात्य संस्कृति कह हमेशा अपने को सांस्कृतिक और सभ्यता के पैमाने पर बेहतर मानते हैं,उपन्यास का प्रमुख पात्र हेन्चार्ड भयानक दारूबाज रहता है इतना बड़ा कि  एक बार अपनी पत्नी और बेटी को भी शराब के नशे में बेच देता है ,और बाद में जब उसे होश आता है तो पुनः वह उस बूढ़ी औरत  के दारू की भठ्थी पर अपने पत्नी सुसान  और बच्ची एलिजाबेथ जेन को खोजते हुए जाता है जहा उसे पता चलता है की जिस नाविक को उसने उन सबों को बेच वह उन्हें लेकर चला  गया ।उस घोर पश्चाताप और तकलीफ से ग्रसित हेन्चार्ड शराब न पीने की कशम खा लेता है।उसका घास बेचने का व्यवसाय और समाज के प्रति बदली सोंच उसे उस शहर का मेयर बना देती है ।कहानी आगे भी बहुतायत मोड़ लेती है पर यही रुकने की जगह है ।आज हमारे तथाकथित सभ्यता और संस्कृति के नाम पर अपनी विश्वपटल पर पहचान जमाये इस देश में आज सत्ता की बागडोर उसी के हाथ में होती जा रही है,जो दारू का व्यवसाय करते हैं ,पीने की बात करना उनके लिए  तुच्छ प्राय होगा।जो गोली और बम के सांस्कृतिक पोषक है ,या जिनकी पहचान किसी राष्ट्रीय या अन्तराष्ट्रीय माफिया से सम्बंधित होने या किसी बड़े गिरोह के ठिकाने बाज के रूप में होती है ।इतना ही नहीं वह सत्तासीन  भी होता है उसकी हनक भी होती है।जब तक हेन्चार्ड की पहचान शराब से जुडी रही तब तक उसे वह जनता जनता भी नहीं मानती थी ,जैसे ही वह इससे इतिश्री लिया उसे नेतृत्व तक मिला।और यहाँ हम नेतृत्व सौपने की योग्यता इसी को मानते जा रहे हैं।
क्या हम  छायाप्रति बनाने में भी गलती नहीं करते,,,,,,,,,,,,,

शनिवार, 5 जनवरी 2013

क्या नहीं बदला
समय के साथ क्या क्या नहीं बदला।कभी कभी राजनैतिक मतभेदों से ऊपर होकर सच का स्वागत करना चाहिए।लेकिन यहाँ तो सही बात को भी इतना तोड़ेंगे की कहने वाला अन्दर से टूट दिग्भ्रमित हो जायेगा ,और बेवजह बारूदों की खेती शुरू हो जाती है ।

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

चरित्र बनावे वाले के चरित्र क के गारंटी लेई 
 मटरूवा झोरा में तरकारी लेहले भुनभुनात भय जात रहल की साला अख़बार पढ़ल दुसुआर हो गयल हौ जेहर देखा ओहर हर पन्नवे पर खाली दुष्कर्मै दुष्कर्म दिखत हौ ।अब इ नया तरीका खोज्लन कुल की जे इमे धराई वोकर चरित्र परमान पत्तर रद्द हो जाई ।एक बात नाही समझ में आवत हाउ की जेकर जेकर जब जब चरित्तर बनल ओकरे चरित्तरा क खोजो भयल का ? त  जेके दे भयल हवे ओकर का होई अ दूसर बात इ की जे चरित्तारवा बनाई वोकरे चरित्तरा क के गारंटी लेई।तब ले मटरू क झोरा गिरा ,कुल छिम्मी नीचे गिर गईल ,मटरू भड़के ल इहो आपन चरित्तर देखी देहलस।