शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

स्कूल -कॉलेजों में अल्लुम्नी मीट का बढ़ता फैशन

सुबह -सुबह आँख मीजते हुए चाय का प्याला हाथ में लिए अखबार पढ़ने का अपना आनंद ही कुछ और है./उसमे अगर कही किसी स्कूल - कोलेज की अल्लुम्नी मीट का जिक्र हो तो बात थोड़ी और मजेदार हो जाती है/ओ पुराने लोगो का एक साथ होना भला किसका मन नहीं लुभा देता है/
परन्तु अगर हम अपनी निःस्वार्थ आखों से इन पुरातन छात्र सम्मेलनों पर दृष्टि डालें तो पाएंगे की इनमे शरीक होने वाले कुछ खास लोग ही होते हैं,जो किसी क्षेत्र विशेष में चमत्कारी स्थिति रखते हैं ,और जिन्हें अपना पुराना छात्र बता कर ये स्कूल कॉलेज उनका नाम अपने व्यवसाय में भजते हैं/अन्यथा क्या किसी संस्था विशेष के सारे छात्र अच्छी स्थिति में ही होते है,अगर नहीं तो ,समुचित पहचान न बना पाने वाले किसी गरीब प्राचीन छात्र को क्यों आमंत्रित कर एक नई मिशल क्यों नहीं कड़ी की जाती है,/शायद अपने पुराने मित्रों के माध्यम से किसी गुमनाम साथी जिंदगी जाये/
अतः अनुरोध ही नहीं सलाह भी है अपने शान शौकत का डंका बजानेवाले इन आधुनिक भारत के तत्कालीन नुमैन्दों से की इस अल्लुम्नी मीट को अर्थपूर्ण बनाये उनके खान्दहारो को सहेज कर न की छतों को उजार कर या नई बहुमंजिली ईमारत खरीद कर/ सबका भला होगा,तभी राष्ट्र का भला होगा और राष्ट्र का भला होगा तभी हम अपना गर्दन शान से ऊचा कर सकते हैं/

रविवार, 24 जनवरी 2010

घुरहू उवाच

देश की बदलती शक्ल

आज हम जाने अनजाने में एक ऐसे भारत की नीव स्थापित कर रहे है जहाँ रहने वालों के पास देश तो है पर परदेश की बात किया करते हैं/कभी तेलंगाना तो कभी पूर्वांचल तो कभी बुंदेलखंड जैसे जलाते मुद्दे की जलाके जलाने का काम इनकी फितरत में है आज इस पर एक बौध्हिक बहस छेड़ने की जरूरत है न की राजनैतिक स्वार्थ में इसको हवा देने की/
अगर हम बीते दिनों को देखे तो इतिहास साक्षी है की बटवारा हमारे विनाश का का कारन रहा है/बिहार बता झारखण्ड बना .मध्यप्रदेश बना छत्तीसगढ़ बना ,क्या लोग वहां भूखों मरना छोढ़ दिए /जी नहीं समस्या जहाँ की तहां है/ बंटवारा साड़ों से हमारी कम जोरी रही है /
मांग हमेशा मांग होती है ये न कभी पूरी होती है न ही कभी अधूरी होती है /आज देश बेकारी ,भूखमरी।, गरीबी जैसी जन समस्याओं से जोझता हुआ तड़प रहा है/क्या नया राज्य बना देना आम जनता चाहती है टी नहीं/चाहते कौन है जो आज के रानीतिक गलियारे में खुद को फिट नहीं कर प् रहे है और नै आवाज को हवा देकर अपने को सत्तासीन करना चाहते है/घुरहू जिसकी बेटी ब्याहनी हो मटरू जिसको बच्चे का इलाज करना हो,मंगरू जिसकोबप की तेरही करनी हो उसको क्या लेना देना देश और परदेश से,उसे तो चीनी की कीमत सताए जा रही है/
अतः मंगनेवाल्व सच मानिये विचित्र मती के बने होते हैं जो कभी संतुस्ट नहीं होते हैं अंतर इतना ही है की आज नया प्रदेश मांग रहे है कल यह दलील देते हुए की बंगलादेश की जनसंख तो उत्तरप्रदेश से भी कम है अतः हमे नया देश के रूप में स्थापित कर दीजिये की मांग का जुलूस लेकर सड़को पे दौड़ निकलेंगे /


ganesh shankar chaturvedi

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

बाहुबलियो का भारत

अभी- अभी विधानपरिषद चुनाव सम्पन्न हुआ है। पता नहीं राष्ट्र उसे किस निगाह से देख रहा है.सरे राष्ट्र वादी कहे जाने वाले लोग शायद थक चुके है या थम से गए है चुनाव परिणाम को देख कर.विचारणीय तथ्य यह है की छत्तीस विधान परिषद् केचुने हुए सदस्यों मेकिटने जमीन के है.क्या यह जनता के साथ राजनितिक छलावा नहीं है की इनाम से एक भिकिसी किसान का बेटा नहीं है.हम आरक्षण की बात करते है और आज समाज में जो धन बल का अनारक्षित आरक्षण फल- फूल रहा है .इससे लड़ने में क्या हम खुद को अक्षम नहीं परहे है.पूजीपतियों के लाडले जब संसद विधायक होंगे तो क्या खाक हम उनसे लाल बहादुर शास्त्री जैसे विचारो की उम्मीद रखते है/
क्या नीद सो रहे है हिन्दोस्तान वाले
खंदक में गिर पड़े है ऊचे निशंवाले

रजा तेरे कहा है योद्धा तेरे कहा है
दशरथ के राम लुक्ष्मन बके कमान wale