शुक्रवार, 8 जून 2012

नगर चुनाव की बढती सरगर्मी

नगर चुनावों की सरगर्मी गर्मी को बढ़ा दिया है,हर तरफ गहमा गहमी बढ़ रही है। कुरता धारी फास्ट हैं किसको हनुमान बन अपना कलेजा फाड़ दिखा दे कि एक दम राम की तरह वो उन्ही को मन में बसाये हुई हैं । सामान्य जनता शांत है समझ नहीं पा रही है इस कदर इन लोकतान्त्रिक उत्सवों कि मरजाद बिगड़ी है कि जनता मौन सी हो गयी है। लेकिन विकल्प का अभाव कभी भी नहीं होता है वो बात दीगर है कि हम समय रहते पहचानते नहीं हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि बरसों सिद्धांत बघारने वाले लोग चंद मिनटों में कही शराब का तो कही अपराध का तो कही अर्थ का कोना पकड़ बस उसी को अपनी राष्ट्रीय राजनीती का द्योतक समझना शुरू कर देते हैं। खुद जब ये लोग काभी कोई चुनाव लड़ते है तो अर्थ हीन और अपराध हीन होने के वजह से सरे स्वस्थ समाज से उम्मीद करते हैं कि लोग उनके साथ हो ,लेकिन खुद कहा रहे हैं या रहते हैं यह भूल जाते हैं....ईश्वर उन सबको सद्बुधी दे,,,,और स्वच्छ को काशी की कमान ।

गुरुवार, 7 जून 2012

जीवन दायिनी नदी असी

विश्व विख्यात वाराणसी शहर जिन दो नदियों के नाम से जाना जाता है-वाह हैं वरुणा और असी। इन दोनों नदियों का पौराणिक महात्म्य है । जैसा कि वामन पुराण में भगवान विष्णु ने भोलेनाथ को बताया है कि ,प्रयाग में योगशायी जोकि विष्णु के ही अंशावतार थे उनके बाये पैर से वरुणा और दाहिने से असी नदी निकली हुई है । इतना ही नहीं भगवान् विष्णु भोलेनाथ को असी और वरुणा में स्नान कर दशास्व्मेध पर निवास कि सलाह भी देते हैं ,और बताते हैं कि ये दोनों ही नदियाँ अति पुण्यदायी और पापनाशक हैं। उस क्षेत्र को जहा से असी और वरुणा निकली हैं इसे योगशायी का क्षेत्र कहा जाता था ,लेकिन क्षोभ कि आज इन दोनों नदियों में असी को तो नदी बताने पर लोग हस्ते हैं,नाला ही उसकी पहचान हो चली है,और वरुणा भी उसी रह पर है। देश विदेश से अरबो खरबों रूपये गंगा के नाम पर आये लेकिन गंगा सेवकों द्वारा इसको बोझ समझ इस कदर बहाया गया कि पैसा नहीं बस रेट दीखता है। हालाँकि असी जैसी हालत गंगा कि कभी भी नहीं होगी ये तय है लेकिन अगर ये सरे कृत्य सिर्फ भविष्य में किसी पूर्व अनुदानित को हटाकर खुद के खाते को खजाना बनाने कि तयारी साबित हुई तो निश्चित असी हो जाएगी,और उसके जिम्मेदार हम सब होंगे।
हमें अपनी जिम्मेदारिओं से मुह नहीं मोदनी चाहिए,मुट्ठी भर सरकारी लोग हर चीज को सही सात जनम में नहीं कर पाएंगे ,वो दाल में घी बन सकते हैं दाल नहीं ,वो बात दीगर है कि घी कौन सा डालेंगे भगवान ही जाने। अतः निवेदन है वाराणसी कि जनता से घबराइये नहीं हम आगे आइये पीछे आइये कि बात नहीं करेंगे बल्कि ये कहेंगे कि लोभ से ऊपर उठे जहाँ भी इसके साथ छल हो रहा है ,अतिक्रमण हो रहा है,वो आदमी ही कर रहा है,संतोष करे सीमित संसाधनों में जीने कि आदत डालें ,नदी क्या पूरा देश फिर से चमक उठेगा।