मंगलवार, 3 सितंबर 2013

जग जाहिर है जब जब प्रकृति के साथ अप्राकृतिक व्यवहार हुआ है तब तब विनाश गले का हार बनती है । अभी कुछ दिन पहले काशी हिन्दू विश्विविद्यालय में आपदा प्रबंधन पर चर्चा के दौरान कुछ पर्यावरण के विद्वानों ने नदियों को जोड़ने की कवायद की । मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कोई ऐसी नदी है जो किसी दूसरी नदी से जुडी न हो । हां नए विकास के माडल और नए पर्यावरण के विद्वानों ने अपने इन्ही कृत्रिम सोचों से प्राकृतिक आपदाओं को बखूबी न्योता दिया है । एकाक न्योतों की तादात और बढ़ जायेगी । हाँ एक फायदा जरूर होगा जैसा की होता रहा है ,,कुछ पर्यावरण का जबरन झोरा ढोने वालों के आलमारियों में कुछ गद्दियों की संख्या बढ़ जायेगी ,,या बैंक बचत में कई शून्य । प्रकृति जब जब छेड़ी जाती है धरासायी होता है सामान्य जन जीवन ,,जो तैयार रहे अगले के लिए,,,,,,,,
एक तरफ पंद्रह साल से पहले आप हाईस्कूल नहीं पास कर सकते ,,तो फिर मेरे समझ में नहीं आता की तेरह साल की बच्ची सुषमा को लखनऊ विश्वविद्यालय में एम्एससी में दाखिला कैसे मिल गया या इसके पहले की पढ़ाई उसको इतने कम उम्र में करने की छूट कहाँ से मिली ,,इस तरह की चर्चाएँ अक्सर अख़बारों में बखानी जाती हैं ,,उस बिटिया की तेजी से कोई ऐतराज नहीं है उसे कोटि शह प्रशंसा मिलनी चाहिए ,,,पर ये व्यवस्था कैसे मिलती है ,,कृपया शिक्षाविद महोदय लोग सुझाएँ ।