मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

गंगा माँ है अजीर्ण है अविरल है। एक संस्कृति  है अध्यात्म है ,जीवनधार है  इसलिए परम धर्म है । यह  जीवन शैली है ,,आचार है विचार है ,सहयोग है  और  समृद्धि भी । इसमें नहाना मना हो जाय,इसके आँचल में  शव दाह बंद हो जाय ,,,पशु पक्षियों का कलरव बंद हो जाय ,,,कुछ दिन बाद इसके दर्शन भी बंद कर दिए जाय ,,तो उस बच्चे लिए माँ कैसी ,,,अरे क्यों  ढोंग करते हो ,,हैशियत हो तो  बंद करो आंध बाँध ,,छोडो इसके अविरल धारा को ,,,और हां इसके लिए आंदोलन रत वातानुकूल माहौल में रहने वाले  नाटककारों ,,खुली हवा में सास लेने  का माद्दा पैदा करो ,,,फिर गंगा तुम्हारी थी ,,तुम्हारी है  और तुम्हारी  रहेगी ,,,,,

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

ऐसा ताकतवर नेता भारत में अब तक पैदा नहीं हुआ,, इतना कर्मठ ,इतना जुझारू ,,  ईश्वर भी बड़े बेरहम हैं ,,काश ऐसे कद्दावर नेता स्वतंत्रता  संग्राम के समय ही पैदा हो गए होते  तो देश सौ बरस पहले ही आजाद हो गया होता । या कहे कि गुलाम ही नहीं होता तो ज्यादा सटीक रहेगा ।  अंग्रेजों की फौजों को तो  डांट के  भगा देता ,,क्या बाबर क्या अकबर और कैसा औरंगजेब ,,पानी भरवा देता सबसे ,,हाँ ,, कह देते हैं ,,,,,अब आया है  एशिया भर में शासन करेगा ,,पांच सौ बरस पहले  ही ये घोषणा हो चुकी थी ,,अब क्या, फिर काबुल,गंधार ,और कैकेय अपना  समझो । याद रहे ये सर सैयद भी रहे हैं ,,खाली हिन्दू ही इन्हे अपना समझने की भूल न करे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,सबका मालिक एक है । 

मंगलवार, 19 अगस्त 2014

हनी अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ने वाला लड़का अपने लैपटॉप पे फेसबुक साइन इन किया ही था कि एक ऑनलाइन दोस्त ने परीक्षा की तारीख बताकर उसका मूड खराब कर दिया । तब तक किसी तरह उसे एक पेज लाइक करने का  ऑफर  मिल जाता है ,,बिना सोचे समझे लाइक  कर तो दिया पर उसे क्या पता की ये उसके गले की हड्डी बन जाएगी ,,,अब परीक्षा का नाम सुन मूड खराब था ही, सोचा देखते है ,इसमें क्या है ,,शायद कुछ मनोरंजक और ध्यान बटाउँ मिल  जाय ,,पर निराशा थी ,,कही कही एकाक प्रेम कहानियां मिली   जो थोड़ा अच्छा लगने की उम्मीद जताती  लेकिन  इतने नैतिक और समर्पित मूल्यों का समावेश, उसे उबा देता । इतने में कोई दरवाजा पीट रहा था ,काल बेल बजाने की बजाय सायकिल की घंटी बजा रहा था ,,हाँ सायकिल की हैंडल में मिठाई का डब्बा जरूर लटक रहा था ,,हनी दरवाजा खोला ,,,अरे फूफा  जी ,,,आइये ,आइये ,,हनी को फूफाजी की लाई हुई मिठाइयां बहुत पसंद थी उसकी बूआ जो अपने भतीजे के लिए भेजती थी ,,,,तब तक हनी का एक दोस्त आ जाता है ,,अरे यार तेरे घर इतनी पुरानी  सायकिल किसकी है ,,,हनी की घिघ्घी बध  जाती है ,,,थोबड़ा लटक  जाता है । 

रविवार, 1 जून 2014

अइसने बनैले से बढ़िया बिगरले बा ये कल्लू ,,,रामनाम गुरु चिचियाना शुरू किये थे ,,,अपने खाय त मलाई अ दूसर खाय त कोलेस्ट्रॉल ,,,बा राजा बनारस ,,,काल्हि ले दूसरे के दुकाने पे खटत  रहल मटरू क नन्हका लइकवा त चोर रहल ,,अब कइसन करेजे में समववले  हौवा जब से तोहरे दुकाने पर चाय बाटे लगल  ,,,,,हम कहे कि  इतना काहे परेशान  हैं भाई ,,अगर ऊ असल में चोर होइ ,,त  इन्हे इतने  करीने से भिड़ाई कि  नानी याद आ जाई ,,,नहीं त ,,,,,,,,,

बुधवार, 14 मई 2014

रामनाम  गुरु की ज़ुबानी ,उनके चच्चा की  कहानी ,,,,,,,,,आजी बतावे कि हमरे चच्चा कल्लु महराज क कइ बार बियाह होत होत कटि गयील ,,,जब अन्तिम बेर ओनकर बियाह तय भयल ,,,त उ बडा चौकन्ना  रहलै ,,कुल जिम्मा खुदि उठावे ,,,जहॉं दू  लोग बतियाये, कल्लू चच्चा पहुच जाये ,,,क भाई सब  ठिक बॉ न ,,हालत इ  भईल कि बारात पहुँचल ,द्वारपूजा के टाइम दु दू बेर कल्लु महराज पेशाब करे के बहाने उठी उथी जाय देखे ,,कवनों काटै मे त ना लागेल हवें बियहवा ,,,अबकी बार उनके ये हरकत से लइकिए वालेन के लागेल कि लइके मेन कुछ गडबडी बा ,,चढ़ल भड़ेहर  उतर गईल ,,,बियाह  फ़िर गइल ,,लौटत क  आपने हथवे कल्लु महराज मौउर नौच के सुग्गा सुग्गी सहित गंगाजी मे बहा देहलन ,,ऊनके उप्पर गईलें बहुत दिन हो गईल ,,लेकिन आज भी गॉंव मे इ जुम्ला दौरत रहला ,,तेशी तशा मेँ ,,,कि ,,,,कल्लु महराज मतीन चढ़ल भड़ेहर उतार देब ,,,बा रे रामनाम गुरु कहाँ कहाँ से खोज के निकालें ला मरदवा ,,,,,,,,,,,,

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

अंगद रावण संवाद टाइप में रामनाम गुरु और मटरू गुरु  लड़ गए ,असल में ये लोग का जजमानी का पुस्तैनी झगड़ा जो है ,,,दोनों सायकिल से उतरते ही ,,का रामनाम आज केतना लहल ,,,रामनाम मटरू पे फायर ,,हम आज ले तोहसे कभहों पुछलि की तोहके केतना लहल ,त तू के होल पूछे वाला,,,,,,,,पीछे से झगड़ा छुड़ाने वाले मूड में ,बल्ली परधान अवतरित होते हैं ,,पहलवानन के पार्टी में उनके समधी मंत्री रहे हैं ,,आज भी उनका माहौल चोखा ही रहता है ,,चिल्लाये,,,
अरे कहे बाभन लोग आपसे में लड़त हौवा ,,,
इतने में रामनाम का संवाद ,शुरू ,,,
जा जा तू अपने प्रचार में के केतना समझदार हाउ हमके पता हाउ ,,परकटे लउकत हाउ देषवे लूटत ,,तब्बू वही के पीछे पग्लयाल बड़ा ,,ढेर परधानी मत बघारा हमारे आगे ,,,,हम त  केजरिये के नीक  जानी ल ,,कम से कम गोली बन्दूक वाला नहीं न हौ ,,
पता नहीं क्या जादू हुआ ,,मटरू भी सुर सुर में सुर मिलाये ,,पर मामला गंभीर ,,,
जा ओहिके पीछे जजमानियो के तोहार कमाई चंदा में माँगी लेई ,,,,,
रामनाम का गुस्सा सातवे आसमान पर ,,,,,देश बनावे खातिर केहू कुछ करे ओकरे लिए हमेशा तैयार है ,,तोहरे जइसन न हई ,,,की हम खाई और हमार बर्धा खाय ,,बस
मटरू खौआए फिर भी सँभालते हुए,,,देखा रामनाम ऐबों  संभल जा ,,,विकाश पे आवा ,,विकाश पे ,,,
रामनाम ,,,,कइसन तोहार विकाश हो ,,,,आपन विकास कहा त मान जाई,,,,चायेड़ी देश सेवा के नाम पे जो चमचमात कुरता पहिराला ,,वोकर कीमत और सिलाई औ धुलाई क कीमत जनबा त बेहोश हो जैबा ,,,ढेर मत बोला ,,,,केजरीवाल चाहत त कवन  आराम ओके न मिळत लेकिन मरियल नीयर एक ठे  सैट पैंट  पहिं के देषवे धांगत हौ ,,,,
मटरू अब क्यों चुप रहे ,,,,,तब्बे त सगरों पिटात फिरत हौ ,,,
अब रामनाम लगभग मुह तोड़ लेने वाली मुद्रा में,,,,सुना सुना ओकरे सज्जनता क फायदा उठावत हौवा लोग ,,एक से बढ़ के एक बारूद बोये वाले यही से लडलं ,,केकरे सौहड़  हौ ,,आँख देखाय देही,,,आँखिये  निकल जाए क डर हव ,,,,तो लोग के शर्म न आवत हौ ,सबके टोपी पहिरे सिखाय देहलस ,,,हाथ जोरे सिखाय देहलस ,,,,
मटरू ,,डरपोक बा न
रामनाम सुना सुना अब सूनी के जा,,,,झुकला वही जेकरे जान होल ,अकड़ल रहब मुर्दन क पहिचान होल,,
इस ब्रम्ह संवाद को तूल पकड़ता देख बल्ली  परधान खिसक लिए ,,,ई स केहूके न छोड़ीहे ये भाई

शनिवार, 8 मार्च 2014

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की  स्थापना त्याग के बलबूते हुई  है लोभ से दूर दूर तक इसका वास्ता नहीं था । यहाँ शिक्षक हो या चिकित्सक कही न कही सेवाभाव से ओत प्रोत होकर ही आता था । कालांतर में विश्वविद्यालय  को भी बाजार की  नजर लगना लाजिमी थी ,,और बखूबी लगी । अगर कुछ बढ़ा तो तनख्वाहों का मोटापा ,,सेवाभाव सर्वथा पतराती चली गयी । चिकित्सकों की लूट खसोट हो या शिक्षक इत्यादि बहालियों की  कितनी भी लोकगाथा बनायी जाए कम है ,,यहाँ का चिकित्सक प्रोफ़ेसर ,चिकित्सकीय भत्ता भी अलग से पाता है ,,फिर भी ऐसे लगता है जैसे जनता के इलाज करते वक्त ये उन पर एहसान कर रहे हो ,,दवाओ से पैथॉलोजियों से हर जगह से इनकी मोटी कमाई का खामियाजा समाज भुगत कर भी इन्हे भगवान् सरीखा कहता है ,,क्योंकि स्वास्थ्य एक अतिजरूरी आवश्यकता है ।
पिछले कई सालो से विश्विद्यालय परिसर को तोड़ने पे ही यहाँ के करता धर्ता आमादा हैं । अभी हाल में आईआईटी बना जिसे संघर्षों के बाद आईआईटी बीएचयू नाम मिला अन्यथा आईआईटी बनारस प्रायोजित था । अब आईएमएस के जगह पर एम्स चाहिए ,,सिर्फ और सिर्फ तनख्वाहों का मोटापा बढ़ाने के लिए ,,कोई एक एम्स की  मांग करने वाला अपने कलेजे पे हाथ रख कर कह दे कि मैं अच्छी स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के लिहाज से एम्स की  मांग कर रहा हूँ ,,तो शायद सम्भव नहीं है । राजनीती के रोटी खाने वाले भी  एम्स के नाम पर समर्थन कर रहे हैं । क्या एम्स को मिलने वाली सुविधाये आईएमएस को नहीं मिल सकती । गजब हाल है कल को तैयार रहिये एफएमएस भी लड़ने आ रहा आईआईएम का तमगा पहनने ,,,,फिर जिस कटोरे को हाथ में ले सजीव मालवीय चला था देश को संपन्न करने की ठान , उसके मूर्तियों को फिर से कटोरा पकड़ा देना ,,,जिसके पेट महामना की विशाल बगिया से नहीं भर रहे हों ,,उनके लिए देश दुनियां के दरवाजे खुले हैं ,,,,आंदोलनों की  कद्र होनी चाहिए ,,लोकतंत्र है लेकिन लोभ के सवाल पर कत्तई नहीं।

बुधवार, 29 जनवरी 2014

काशी हिन्दू विश्व्विद्यालय में पिछले पंद्रह सालों में पंद्रह गुना फीस बढ़ी है । यह फीस वृद्धि अभी भी  हुक्मरानों को संतुष्ट नहीं कर पायी है । यह अभी और बढ़ेगी । जब तक यहाँ गरीब तपके के बच्चों का दिखना नहीं बंद हो जाता तब तक यह बढ़त  प्रक्रिया अनवरत चलती रहेगी । छात्र जीवन से सुनते आये है कि जितना कई छोटे देशों का राष्ट्रीय बजट होता है उससे कही अधिक इस विश्विविद्यालय का बजट है ,,फिर भी यहाँ के कर्ता धर्ताओं को संतोष में कभी नहीं देखा जा सकता है । यहाँ पत्थर की अदालत है और शीशे की गवाही है ,,, अधिक धन यहाँ  के लिए इस कदर समस्या बन जाता है कि कभी कभी  खर्चे का ब्यौरा  विश्व्विद्यालय का प्रचार रेडियो मंत्रा आदि पर करने के झूठे एवं पापगामी हरकत की बोध कराते हैं । छात्रों का पुख्ता मंच इन्हे वापस लौटाने में इनकी रूह कापती  है । कुछ छात्र भी इन कुलपतियों के चट्टे बट्टों  के चट्टे बट्टे बनने में अपने को भगयवान समझते हैं । अगर यह पूर्वनियोजित  एवं प्रोफेसरान संचालित भीड़ होगी तो फिर कुछ नहीं मिलने वाला अन्यथा ये वापस लौटेंगे ,,मैं क्या गूंगा बहरा भी छात्रों के साथ होता है । वहीं दूसरी तरफ इस कुल के हर तीन साल पर बदल रहे पतियों एवं देवरों के जमाकोषों में बढ़ते शून्य पर भी निगाहें होनी चाहिए ,,,उनके खाते भी सीज होने चाहिए ,,घोटाला डिटेक्टिव भी यहाँ लगना चाहिए ,इसके पहले ये नहीं सुधरेंगे और छात्र लाठी खाते रहेंगे और वे काजू । 

सोमवार, 20 जनवरी 2014

काशी  हिन्दू विश्व्विद्यालय  को महज एक शिक्षण संस्थान नहीं अपितु एक चिंतन स्थल के रूप में देखा जाता है ,चिंतनशीलता एवं लोकतान्त्रिक तथा राजनैतिक भारत को सुसंगठित एवं मजबूत करने कि दृष्टि से ही यहाँ राधाकृष्णन से लेकर आचार्य नरेंद्रदेव ,जैसे लोग स्वयं महामना के उसूलों के नजदीक थे ,,कारण राष्ट्र निर्माण सबके केंद्रीय भूमिका में था । लेकिन आज का विश्व्विद्यालय लगता है लोकतान्त्रिक ढांचे को अपना दुश्मन मानता है ,चिंतनशीलता एवं समजवादिता का अपने को अंग नहीं समझता है ,,कितना हास्यास्पद है कि एक खुद में बड़ा समाज समाज से या समाजशीलता से ही मुह मोड़ने में अपनी तटस्थता का मिथ्या सबूत देने को आतुर है । कुछ दिन पहले अखबारो के माध्यम से जान पड़ा कि प्रो आनंद कुमार जो खुद एक जाने माने समाजशास्त्री हैं ,चिंतक हैं ,प्रोफेसर शब्द से तो विश्व्विद्यालय के नीतिको  को खासा प्रेम  है वो इस तमगे से भी जड़ित हैं उन्हें भाषण के लिए प्रवेश नहीं दिया गया ,,उन्हें आम आदमी पार्टी से बनारस लोकसभा लड़ने की सम्भावना के तहत । मैं नहीं जानता आनन्द कुमार जी यहाँ से चुनाव लड़ेंगे या नहीं पर यह जरूर जानता हूँ कि कितने लोग यहाँ से भाषण करने के बाद विभिन्न जगहों से चुनाव लड़े हैं या लड़ते हैं ,,,आजादी के संग्राम में भी यहाँ एक तरफ गांधीवादियों की तो दुसरे तरफ क्रांतिकारियों के ठिकानो और वैचारिक विभिन्नताओं के बाद भी एकता की अनेकानेक कहानियां मिलती हैं । फिर किस संविधान को आड़े आते देख किसी विद्वान ,किसी राजनेता को या किसी समाजशास्त्री को विश्व्विद्यालय प्रशासन बेईज्जत करता है । और फिर किस मुह से पुनः आमंत्रण देता है और खातिरदारी करता है जब वो कही सत्तासीन हो जाता है । क्या यहाँ लोकतान्त्रिक चर्चा ,,राजनैतिक चर्चा अपराध घोषित किया जा चूका है ।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

 सेवा में
              श्री श्यामदेव राय चौधरी 
                 माननीय विधायक
                 शहर दक्षिणी 
                  वाराणसी 

महोदय 
           विश्व की प्रचीनतम  धार्मिक एवं पौराणिक  नगरी एवं शिक्षा की निर्विवादित राजधानी काशी को वाराणसी नाम देने वाली नदी असि बरसों से नाले की  गाली सुन शहर का गन्दा पानी ढोने  को विवश है  । इस के उद्धार हेतु कटिबद्ध शहर के युवाओं और बुद्धजीवियों का एक समूह असि बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले  सालों से संघर्ष कर रहा है । लेकिन क्षोभ कि दिन प्रतिदिन नदी में इमारतें तनती जा रही हैं । प्रशासनिक उदासीनता इस कदर जारी है मानो नदी की जमीन के कब्जे के लिए उनकी मौन स्वीकृति हो । एक तरफ पूरे विश्व में जल संरक्षण को बढ़ावा देने की बात होती है वही दूसरी तरफ नदियां ही पाटी जाती हैं । जिक्र करना लाजमी होगा कि इस नदी का अति धार्मिक और पौराणिक महत्व रहा है ,जिसका जिक्र महाभारत ,जवालोपनिषद ,वामन पुराण सरीखे तमाम धर्म ग्रंथों में है । धार्मिक महत्व से इतर यह एक तरफ बाढ़ काल में जहा शहर को जलभार से उबारती थी वही दूसरी तरफ जल स्तर को नियंत्रित करने में महत्व्पूर्ण भूमिका अदा करती है । इसे आज कही चुपचाप प्रशासन पाइप से प्रवाहित करने की जुगत में है तो कही ,,इसके किनारे पचास मीटर के दायरे को हरित पट्टी घोषित कर निर्माण प्रतिबंधित करने की बात कर पल्ला झाड़ लेती है । 
                  अतः आप महानुभाव से निवेदन है कि काशी की स्मिता और धार्मिक पहचान बरकरार रखने के हमारे इस पहल को नैतिक समर्थन व आशीर्वाद दें । जिससे नदी को उसकी धार और बहाव मिल सके ,,काशी सुरक्षित और संरक्षित हो सके । 

सधन्यवाद 


                                                                                                                          गणेश शंकर चतुर्वेदी 
                                                                                                                               (संयोजक )