बुधवार, 30 जनवरी 2013

हम  लोग अजब देश के गजब निवासी हैं ,जहाँ आये दिन कोई न कोई भावनाओं के कंधे पर चढ़ गोता लगाने को कतारबद्ध होता है।आज सुबह सुबह आँख खुलते ही अख़बार की सबसे बड़ी खबर दिखी की कमल हसन साहब देश छोड़ के चले जायेंगे ,बिना आँख मीजे की साफ़ दिखने लगा ,आगे कारण पढ़ा तो उनकी सिनेमा यदि  रिलीज नहीं होती है तो ,,,।पता नहीं उनकी सिनेमा में ऐसा क्या है की सेंसर बोर्ड ने रोक लगाई है ,एक से बढ़ कर एक सिनेमा आ रही है ,बड़े शान से बोल्ड सीन और आइटम सांग परोसे जा रहे हैं ,सेंसर बोर्ड स्वागत कर रहा है ,कभी कभी लगता है की सेंसर बोर्ड में जो अधिपत्य में हैं वे कपडे की सभ्यता में विश्वास नहीं रखते।  जनता की जुबान भी मसालेदार हुई है ,ऐसे में कमल हसन साहब की सिनेमा पर रोक हाजमा तो सही नहीं रख पा  रही है।अगर उसे  धर्म विशेष से जुड़े किसी तथ्य के वजह से रोका जा रहा है तो भी ऐसी बहुतायत सिनेमा आयी हैं जिसमे हमारे धर्मों और संस्कारों की धज्जियाँ उडाई गयी है,फिर ये रोक सिर्फ कमल साहब के सिनेमा के लिए ही क्यो ? लेकिन इस पर कमल साहब का ये बयां की अगर उनकी सिनेमा रिलीज नहीं हुई तो वह देश छोड़ देंगे ,,,की भी मैं तारीफ नहीं कर सकता।कला का सम्मान होना चाहिए ,लेकिन कलाकार के देश छोड़ने की धमकी पर कत्तई नहीं।ऐसे हर किसी शख्श को जिसको भरत की माटी से ज्यादा अपने व्यवसाय और पूँजी का ख़याल है ,उसके शर्तों पर देश चले ,ये कदापि देश सगत नहीं है।
वो बात अलग है की अब उनकी सिनेमा रिलीज भी होगी और उन्हें दर्शकों की भीड़ भी मिलेगी ,उनका सब सोना सोना होगा ,लेकिन देश का ,,,देश की भावनाओं का ,देश के उन  कला प्रेमियों का ,,,,,क्या कलाकार सिर्फ देश छोड़ने की धमकियों से जीवित रखेगा अपने को,,,,

सोमवार, 28 जनवरी 2013

का हो नारायण अरे तोहार लईकवा पवलस की नाही,,,नारायण गुरु पीछे देखे ,,,सबेरे सबेरे तोहके मजाक करे क सौख चर्रायल हउ ,,,,,साफ साफ बतावा न ,,,मुन्नू पंडित टाईट ,,,,अरे कलिहा बेरोजगारी भत्ता बटल ...तोहरो चेलवा त फरामावा भरले होई न।अब का नारायण गुरु फायर ,,,अरे इ साला खली नौटंकी किले हवे जैसे अपने बाप के घर से देत  होय ,,,हमर लैकावा सच्चों  में बेरोजगार हौ ओके काहे मिली भाय ,,,,इ साला  पैसवा क चेकवा जेके जेके मिलल का कुल बेरोजगारे हवे ,त अब तक घोटात का रहलन ,,,सकल अखबार में देखले से न लगत हा की इ सब खिले बिना टूटल हवे ,,,, आपन रोजी रोजगार क जुगार सब के हौ ,,,प्राइवेट नोकारियो वाले भरले हवे फ़रम खूब पैसा मिळत हाउ,,,इ देशवे ऐसे जेतना इ खैरतवा बाटे वाले क अधिकार हौ ,देशवा पर ,वोटने कैरात्वा लवे वालन क भी बा ,,,लेकिन ऐसे खुश होत हवे पैसा पाके जैसे,,,,,,,इ देशवे बिक जी ये बतौवल में ,,,,,मुन्नू पंडित चापे ,,,,बा रजा तोहरे बेतवा के ना मिलल त  बौद्धिक शुरू ,,,,,

रविवार, 20 जनवरी 2013

काशी त्याग ,सहयोग ,समर्पण ,विचार ,अध्यात्म ,कला ,संस्कृति और सभ्यताओं के अप्रतिम सम्मिश्रण से बना एक एक अद्भुत जीवंत शहर है।तुलसी ,कबीर ,बुद्ध ,रविदास,कीनाराम  जैसे महान संतों की तपस्थली और कर्मस्थली रही है।वहीं महामना जैसा महान व्यक्तित्व तो लालबहादुर जैसा सादगी का साधक भी यहाँ उपजा।फक्कड़ों के इस निराले शहर का अंदाज  भी फक्काडाना  है।इन सबके क्रित्रित्व को आगे बढाते हुए आज की पीढी भी सेवा लकीरें खीचने में कत्तई पीछे नहीं है।
महाकालेश्वर के इस धाम रुपी  शहर में पिछले दिसंबर माह (9 दिसंबर 2012)से वहां दूर दराज से आ रहे शव यात्रिओं ,और घाट के खानाबदोस घुमक्कड़ों के लिए प्रसाद स्वरुप भोजन की अनवरत व्यवस्था चल रही है।महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का 150 वा जयंती वर्ष पूरे देश में मनाया जा रहा है ,उसी महामना के एक मानस पुत्र पंडित रमेश उपाध्याय ने महामना के जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में  इस महान कार्य का वीणा उठाया है।बड़ी मजे की बात की इस शहर में ऐसे बहुतायत भोज बहुतायत जगहों पर पूजीपतियों द्वारा चलते हैं ,लेकिन ये भोज किसी पूजीपति द्वारा नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ सेवाभाव की ताकत ,महाकालेश्वर के प्रति समर्पण और बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से चल रहा है।इस लिए इसका जिक्र करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।पेशे से वकील ,एक हाथ में छडी लिए सामान्य कद काठी के इस व्यक्तित्व के विषय में एक साथी ने इसी भोज के सन्दर्भ में बताया की आज जब मैं मर्न्कर्निका पर पंहुचा तो देखा की रमेश उपाध्याय जी खुद एक झोरे में पत्तल लेके दुसरे हाथ में छडी लिए सीढिय चढ़ रहे थे ,इसलिए और महत्वपूर्ण होजाता है ये जिक्र की लम्बी गाड़ियों के काफिले से नहीं आती इस भोज में बन्ने वाली तरकारियाँ।
ऐसे पुन्य काजी लोगों से ही सजा और बचा है ये शहर ,निश्चित रूप से सब कुछ बाबा का ,और बाबा  से,,,,

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

सब गोलमाल है ,,,,,,,

पिछले महीने से ही सरकार की महगाई में काफी रूचि बढी है ,कारन की देश की जनता कही और की ख़बरों में व्यस्त है ।आये दिन घटनाओं दुर्घटनाओं के काफिले देश का स्वागत करने के लिए तैयार हैं ,सरकार चाह  कर भी शायद उसे रोकने की पहल  नहीं करनी चाह रही है ,चाहे वो केंद्र की सरकार हो या प्रदेश की सरकारें।जनता का दिमाग कहीं और व्यस्त है और इसी का लाभ उठाते हुए आये दिन रसोई गैस तो डीजल की कीमत में मनमाने ढंग से उछल किये जा रहे हैं।वैसे जब जनता व्यस्त नहीं थी तब ही उनका क्या बिगाड़ लेती थी ।
पहले ऐसा सुनाई पड़ता था की घर के लोग बाहर मनोरन्जन से सम्बंधित नाच गान देखने गए और घर लुट गया ,लेकिन आज घर में दुबक कर मातम मनाते हुए सरेआम ये लूट जारी है।
इससे बढिया मौका नहीं मिलेगा ,,,,,,,,सच में सब गोलमाल है ,,,,,,,,,
चुप्पी तोडनी होगी
 महिला सदैव से सम्मानित थी ,है और रहेगी।यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ,,,न कल गलत था न आज गलत है और न कभी गलत होगा ।समय के साथ हुए हर तरह के बदलावों के बाद भी नारी समाज के केन्द्रीय भूमिका में रही है ,आज भी है और कल भी तयशुदा रहेगी।अगर मुह न नोचा जाय तो यह कहना कत्तई गलत नहीं होगा कि अगर उसे परदे में रखने की व्यस्था भी थी तो वो शोषण नहीं था बल्कि वो समाज के लिए परिवार के लिए और देश दुनिया के लिए इतनी महत्वपूर्ण थी कि उसे हिफाजत ,सुरक्षा ,सम्मान ,पूजा ,आस्था की दृष्टि से परदे में रखा गया कारण हम आज भी बेशकीमती सजीव और निर्जीव दोनों को छुपा कर रखते हैं जिससे दुनिया की बद हवाओं से उसका पाला न पड़े।कोई भी आकृति जब सटीक रूप नहीं ले पाती तो उसमे विकृति आती ,फलतः पर्दा प्रथा के दोष भी सामने आये।
आज हर जगह नारी समाज ,नारी समुदाय संबोधन देकर इसे छल कर दूसरा समाज देने का मिथ्या प्रयास चल रहा है ,क्या हमारी नारियां (माँ ,बहन ,बेटी )आज मेरे समाज की भी नहीं रही।ये कहना कत्तई गलत नहीं होगा की वेद काल के विषय में एक श्लोक पढ़ा था ,पुर्काल्पेशु नारीनाम मन्दिरा  वंदना निश्चिताः ,उपनयनानाम संस्कारानाम ,,,,,,,जब महिला जनेऊ भी धारण करती थी ,मई इसे धर्म और जाती विशेष से जोड़ कर नहीं देख और कह रहा बल्कि ऐसे विकास उस समय के हर धर्म और समाज में रहे होंगे ,,,,के बाद सर्वाधिक अग्रणी भूमिका में महिला आज है ,कदम से कदम मिला कर मात दे रही है ।ऐसे में उसे एक अलग समाज के नजरिये से प्रस्तुत करना महापाप सरीखा वैचारिक टूट पैदा करना है।माँ अगर अपने बच्चों के लिए धुंए में आँख फोड़ खाना पकाती है ,खली पेट सो जाती है ,तो ये सिर्फ और सिर्फ उसका त्याग और बच्चों के प्रति प्रेम है ,इसे कलुषित मानसिकता के लोग अगर शोषण नाम दे ,माँ खुद मुंह नोच लेगी।
दिल्ली की दुर्दांत घटना के बाद मानों ऐसी घटनाओं की जाल बिछ गयी पूरे देश में ,मिडिया के लोग भी कैमरे लिए घूम रहे हैं खाली उसी के तलाश में ,कोई भी मुह खोलने से कतरा रहां हैं ।मैं स्पष्ट कर दूं की किसी बाबा की न किसी खादी की बचाव कर रहा हूँ बल्कि आप सबसे हाथ जोड़  रहा हूँ कि अब बस , कितना भावुक करोगे  उस कष्टमय परिवार को ।धैर्य का बाँध तब और भी टूट जाता है जब जिन लोगों ने महिलाओं को हमेशा उपयोग की विषयवस्तु समझने की भूल की है वो ही आज उनके साथ फिर धूर्तता कर उनकी सहानूभूति हाशिल करना चाह  रहे हैं। अतः कर बध्ध निवेदन है की अब बस ,तोडना  बंद ,जोडीये ,गयी हुई सामाजिक संवेदना को जीवित कीजिये ,नैतिक मूल्यों को आवाज दीजिये ,नारी के नाम पर लग से नहीं उसे खुद से जोड़ कर अपने को अपने आस पास को अपने समाज को सुधरने के प्रयास में आगे आइये ,,,,नारी उलझी तो ब्रह्माण्ड उलाझ जाएगा ,सृष्टि उलझ जायेगी ,,,।

सोमवार, 7 जनवरी 2013

प्रशासनिक नाटक ,,,,,,
एक दिन पहले वाराणसी के  वरुना नदी के पास से गुजर रहा था, नदी की तरफ किसी का भी ध्यान खिंच जायेगा कारन शायद इतनी दुर्गन्धयुक्त और गन्दगी से पटी वरुणा कभी भी नहीं रही होगी यहाँ तक की एक साल पहले भी ।अभी कुछ दिन पहले वरुना के लिए कुछ लोग संघर्षरत थे प्रशासन झुका भी ,उच्च न्यायलय का आदेश आया ,लगा मानो रातोरात प्रशसन वरुणा के पानी को पेयजल सरीखा बना देगा ।लोग खुश।और शासन प्रशासन पहले से भी ज्यादा लचर हो गया मानो  मुंह चिढ़ा  रहा हो की करो आन्दोलन धरना प्रदर्शन देखता हु क्या उखाड़ ,बिगाड़ लेते हो।
अभी कुछ दिन पहले असि नदी के सवाल पर हम लोग एक पत्रकार वार्ता कर रहे थे तो एक पत्रकार महोदय ने शहर के एक बड़े नेता का खुल्लमखुल्ला नाम लेते हुए कहा की चाहे जब ही वो आ जाते हैं कहते है अब फिर वरुणा पर कुछ छापा लोग ,हम कुछ कयल चाहत हई ।हो सकता है पत्रकार महोदय यही साबित करना चाह रहे हो कि  उनके उनसे बड़े दोस्ताना सम्बन्ध हैं। कहीं न कहीं इन लोगों के नाटक प्रशासनिक लोगों को नाटकीय तो  बना  ही दे रहे हैं।
अभी असि नदी के उद्धार के लिए शासन ने 8.8 करोड़ रुपया पास किया बकौल अखबार ।कुछ दिन नौटंकी भी चली नाप नापी भी हुआ ,अब सब ठंढा हो चले हैं।हां एक विकास हुआ है जो असि नदी के किनारे नीव पडी थी नाजायज नीवें  दीवार का स्वरुप ले रही है ।प्रशासन हर तरफ मुह चिढ़ा तमाशा देखने का काम कर रहा है।लेकिन ये इनका भ्रम और सिर्फ भ्रम है इनका जनता की भावनाओं की बरगलाने का मिथ्या प्रयास सफल कत्तई नहीं होने दिया जाएगा,इन्तजार है इनके अगले कदम का,,,,,,

रविवार, 6 जनवरी 2013

थॉमस हार्डी का चर्चित उपन्यास मेयर ऑफ़ कैस्टरब्रिज का ख्याल आया।वहां जिसे हम पाश्चात्य संस्कृति कह हमेशा अपने को सांस्कृतिक और सभ्यता के पैमाने पर बेहतर मानते हैं,उपन्यास का प्रमुख पात्र हेन्चार्ड भयानक दारूबाज रहता है इतना बड़ा कि  एक बार अपनी पत्नी और बेटी को भी शराब के नशे में बेच देता है ,और बाद में जब उसे होश आता है तो पुनः वह उस बूढ़ी औरत  के दारू की भठ्थी पर अपने पत्नी सुसान  और बच्ची एलिजाबेथ जेन को खोजते हुए जाता है जहा उसे पता चलता है की जिस नाविक को उसने उन सबों को बेच वह उन्हें लेकर चला  गया ।उस घोर पश्चाताप और तकलीफ से ग्रसित हेन्चार्ड शराब न पीने की कशम खा लेता है।उसका घास बेचने का व्यवसाय और समाज के प्रति बदली सोंच उसे उस शहर का मेयर बना देती है ।कहानी आगे भी बहुतायत मोड़ लेती है पर यही रुकने की जगह है ।आज हमारे तथाकथित सभ्यता और संस्कृति के नाम पर अपनी विश्वपटल पर पहचान जमाये इस देश में आज सत्ता की बागडोर उसी के हाथ में होती जा रही है,जो दारू का व्यवसाय करते हैं ,पीने की बात करना उनके लिए  तुच्छ प्राय होगा।जो गोली और बम के सांस्कृतिक पोषक है ,या जिनकी पहचान किसी राष्ट्रीय या अन्तराष्ट्रीय माफिया से सम्बंधित होने या किसी बड़े गिरोह के ठिकाने बाज के रूप में होती है ।इतना ही नहीं वह सत्तासीन  भी होता है उसकी हनक भी होती है।जब तक हेन्चार्ड की पहचान शराब से जुडी रही तब तक उसे वह जनता जनता भी नहीं मानती थी ,जैसे ही वह इससे इतिश्री लिया उसे नेतृत्व तक मिला।और यहाँ हम नेतृत्व सौपने की योग्यता इसी को मानते जा रहे हैं।
क्या हम  छायाप्रति बनाने में भी गलती नहीं करते,,,,,,,,,,,,,

शनिवार, 5 जनवरी 2013

क्या नहीं बदला
समय के साथ क्या क्या नहीं बदला।कभी कभी राजनैतिक मतभेदों से ऊपर होकर सच का स्वागत करना चाहिए।लेकिन यहाँ तो सही बात को भी इतना तोड़ेंगे की कहने वाला अन्दर से टूट दिग्भ्रमित हो जायेगा ,और बेवजह बारूदों की खेती शुरू हो जाती है ।

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

चरित्र बनावे वाले के चरित्र क के गारंटी लेई 
 मटरूवा झोरा में तरकारी लेहले भुनभुनात भय जात रहल की साला अख़बार पढ़ल दुसुआर हो गयल हौ जेहर देखा ओहर हर पन्नवे पर खाली दुष्कर्मै दुष्कर्म दिखत हौ ।अब इ नया तरीका खोज्लन कुल की जे इमे धराई वोकर चरित्र परमान पत्तर रद्द हो जाई ।एक बात नाही समझ में आवत हाउ की जेकर जेकर जब जब चरित्तर बनल ओकरे चरित्तरा क खोजो भयल का ? त  जेके दे भयल हवे ओकर का होई अ दूसर बात इ की जे चरित्तारवा बनाई वोकरे चरित्तरा क के गारंटी लेई।तब ले मटरू क झोरा गिरा ,कुल छिम्मी नीचे गिर गईल ,मटरू भड़के ल इहो आपन चरित्तर देखी देहलस।