रविवार, 27 नवंबर 2011

किशनजी की मौत के घडियाली आँसू

तथाकथित नक्सलवादी नेता किशनजी का मारा जाना ,और भारतीय राजनीती का बाजार गरम हो जाना ,ये बात कुछ हाजमा ख़राब कर रही है,ये कैसी विचाधारा जो खून की प्यासी हो। परदे के पीछे लचर बुद्धजीवी और नेता सरे लोग घडियाली आँसू बहाने में लगे है,खासकर वो लोग जो कभी सीमा पर लड़कर मरने वाले किसी सैनिक की मौत पर कभी आख भी नम नहीं कर पाते वो सबसे ज्यादा चिल्ला रहे हैं। एक बात समझ से परे है की ये श्रृष्टि का नियम बन चूका है की गोली तो उसी को मारी जाती है जो गोली मारता है,जिसने किसी को एक कप चाय न पिलाई हो भला उस बिचारे पर कोई अपने सौ रूपये की गोली क्यों बर्बाद करने जायेगा।

ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिला रहा वालमार्ट

आज देश के करता धर्ता फिर गुलामी का रोब धारण करने को आतुर हुए हैं। सरकार वालमार्ट नामक संस्था की पहल कर रही है,वैसे उसका पुरजोर विरोध भी जारी है । शायद देश को आजाद हुए साथ साल से ऊपर हो चले है इसलिए फिर गुलामी की चादर हमें लिभा रही है,ऐसे बाजार धीरे -धीरे भारतीय बाजार को नष्ट कर डालेंगे ,वैसे भे देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भरमार है,देशी व्यवसाय औधे मुह पड़े है,अब फिर से सबको अपना दिल विदेशियों पर लुटाने को सरकारी तौर पर प्रेरित किया जा रहा है जो की हर तरह से नाजायज है। विरोध हो रहे है लेकिन दर है विरोध तो निश्चय रूप से ईस्ट इंडिया कंपनी का भी हुआ रहा होगा लेकिन नामचीनों ने उसे अपना बन कर ही दम लिया। किसी को रायबहादुर बनना था तो किसी को जनरल। वैसी ही नासदी तलब फिर दिख रही है ,भोले बाबा सबको सद्बुध्ही दे ।

ईस्ट इंडिया कंपनी की यद् दिला रहा वालमार्ट

बुधवार, 23 नवंबर 2011

सिमटते बचपन - बिखरती नौजवानी

भारत गाँव में बसता है ये सभी कहते और जानते हैं लेकिन क्या गाँव में रहने से अभिप्राय यह लगाया जाय कि पिछड़ापन और भूखमरी ,तन्हाई और बेईज्जती इनका जन्मसिद्ध अधिकार है। अभी कुछ विकसित कहे जाने वाले क्षेत्रों के ग्रामीण भारत की टकराहट कुछ समय पहले मुझसे हुई,जहा मुझे एक शादी में शरीक होना था। बारात विदा हुई उसके बाद एक दम सबेरे ही आस-पास के कुछ मलिन बस्तियों के बच्चे बूढ़े महिलाये हाथ में कटोरे लिए दरवाजे पर हाजिर। घर के मुखिया ने बड़े धिक्कारते हुए अंदाज में उन सबको कहा अभी आ गए तुम लोग दूर हटो,वो सब गिरगिराए डांट खाए जा रहे थे क्योकि उन्हें भोजन खाने की ललक थी। यह वाकया अपने बचपन यानि लगभग तीसो साल से देखता चला आ रहा हूँ,लेकिन अबकी बार काफी अंतराल के बाद पहुंचा था तो सोंचा कि निश्चय ही कुछ बदलाव देखने को मिलेंगे,या तो वो भिखारी सरीखे लोग नहीं होंगे या उन्हें डांट नहीं बल्कि प्रेम से खिलाया जायेगा,लेकिन यहाँ तो कुछ भी नहीं बदला ,सब अपने जगह पर वैसे ही डटे थे। मेरे जेहन में एक बात उभरी कि क्या यही नए भारत की तस्बीर है,यही मनरेगा का विकास है। तब तक पास बैठे मेरे एक मित्र ने कहा की क्या सोचने लगे , मैं समझ रहा हूँ कि आपको ये चीजे पच नहीं रही होंगी लेकिन इनके साथ ऐसा ही जरूरी है,आखिर इनको हम अपना रिश्तेदार तो नहीं बना सकते न। उनकी भी बात दमदार थी। अब मुझे महाश्वेता देवी की एक घटना याद आयी कि एक बार वो जंगलों में आदिवासियों के लिए काम करते हुए रात को रुकी ,जहाँ उनको सिर्फ भात खाने को पत्तल पर मिला ,बड़ा देर तक इंतजार के बाद वो पूछ पडी की इसे खाना किसके साथ है,अन्दर से जवाब आया कि इसे भूख से खाईये बहन जी,शायद आज भी इनके पास सिर्फ भात है भूख से खाने के लिए। जहाँ बचपन सिमटा है और नौजवानी बिखरी।

बुधवार, 16 नवंबर 2011

आज प्रदेश बाटने वाले कल देश बाटेंगे

बाटनेवाले गजब मिटटी के बने होते हैं ये बाटने के लिए ही अवतार लेते है,अरे कही किसी को जोड़ने का भी काम करो भी नेता खाली तोड़ता ही नहीं है। अब यूपी को चार भागों में बाटने का राग अलापने वाली माननीया मायावती जी काभी जोड़ने की भी पहल करने की गलती कर लिया कीजिये,इश्वर आपका भला करेगा। एक घर को चार भागो में बाट घर फोड़वा मंथरा बाजी से बाज आइये।
वैसे भी जनता को इस सबसे गफलत में एकदम आने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये बाटने वाले लोग किसी के नहीं होते आज प्रदेश बाट रहे है कल देश बाटेंगे औए घिघियाएँगे की हम सही हैं। बिहार बटा ,यूपी पहले से बटा है मध्यप्रदेश बटा क्या इन जगहों पर लोग भूखों मरना छोड़ दिए तो शायद नहीं हा मधु कोड़ा जैसे लोगों की नई फसले आयी। इसलिए बटवारे का पुरजोर विरोध राष्ट्रहित में जरूरी।

रविवार, 13 नवंबर 2011

गाँधी का भारत बनाम नेहरू का भारत

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु का एक सौ बाईसवां जन्मदिन देश मनाने को आतुर है। आधुनिक विकास के जनक के रूप में अगर नेहरु जी को परिभाषित किया जाय तो कत्तई गलत नही होगा। देश में जीवन जीने के दो तरीके के रूप में गाँधी और नेहरु की दो धाराएँ लोगों के सामने थी। जाहिर सी बात है की नेहरु नहीं होते आज विज्ञान की दौड़ में हम आगे की तो छोड़ पीछे भी नहीं होते। लेकिन इसी के साथ इसका भी जिक्र गलत नहीं होगा कि विज्ञान के अति कि परिणति विनाश के रूप में होती है। आज गाड़ी,घोडा,कल कारखाना ,फोन ,इंटरनेट इत्यादि,या खेती में रासायनिक उपयोग के तहत अकूत फसलों का आगम,यह सब के पीछे नेहरु जी का सपना काम कर रहा है। तो वही टूटते गाव ,बिखरते पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते गाँधी के न पूरे हो पाने वाले सपनों की आह बनकर पल्लवित पुष्पों को बिखेरने के समान है।
गाँधी की नीतियों को भुलाना निश्चय रूप से खलता हुआ नजर आरहा है,कारन हर विकास को आज हम सरकारी चश्मे से देखना शुरू कर दिए है,एक अरब पच्चीस करोड़ की आबादी को मुठी भर सरकारी लोग उनकी सारी आवश्यकताओं पर भला कैसे खरा उतर सकती हैं। पहले सवा निर्भर समाज था,आज गाँधी गाँव तक मनरेगा के तहत पहुचाये तो जा रहे है लेकिन अपने विचारों के खिलाफ ,परिणाम स्वरुप गाव दिन -प्रतिदिन पिछड़ते जा रहे हैं। हम चाहे जितना विकास का डंका पीट लें। पहले सड़क ख़राब है तो हर घर से निकल लोग श्रम दान कर दो चार दिन में सही कर देते थे। कोई अमीर या गरीब नहीं था किसी के पास घर नहीं है तो पूरे गाव के लोग एक साल उसके नाम थोड़ी मेहनत करते थे और उसके पास घर बन जाता था,वो काम आज हम सोच रहे है की मनरेगा कर लेगा,या किसी योजना के तहत सबको घर मुहैया करा दिया जायेगा तो असंभव है.उदाहरण के लिए आये दिन कांशीराम आवास योजना में धांधली को खुले आम पढ़ा जा सकता है।
अतः नेहरु के सपने गाँधी के रास्ते अगर हम पाने का पहल करे तो सामाजिक खतरे में कमीं आ सकती है और गाँधी का सम्मान और इस रास्ते से विकास नेहरु जी को सच्ची श्रध्हांजलि होगी ।

शनिवार, 12 नवंबर 2011

वाह नेता जी

नाचो गाओ जश्न मनाओ नेता जी
तुम पानी में आग लगाओ नेता जी।
बहुए जलती हैं तो तेरा जले प्रशासन क्यों,
तुम देते हो दहेज़ विरोधी लम्बे भाषण क्यों,
अरे चार है लड़के चुप हो जाओ नेता जी
तुम पानी में आग लगाओ नेता जी।

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

ये कैसी ख़ुशी

अचानक दो दिन पहले सड़कों पर पगुरी करते सैकड़ों भैसे नजर आते ही एक बात स्पस्ट हो गयी की इनकी जिंदगी का अंत होने वाला है। यूं तो किसी धर्म के ऊपर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता.क्योंकि धर्म विश्वास पर चलता है और विश्वास से श्वास चलता है। लेकिन ये ख़ुशी मानाने का कैसा तरीका है की सैकड़ों किलो वजन वाले विधाता के एक बड़ी संरचना को इस कदर चंद खुशियों के लिए मरघट पर पंहुचा दिया जाय। कही ऊँट कट रहे है,किसी धर्म में कुछ त्रुटियाँ भी हो सकती है.इसे समझने की जरूरत है,जब तक इसके विरोध में नहीं बल्कि इन अबोध जानवरों के बचाव में मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग ही आगे नहीं आयेंगे तब तक ये ख़त्म नहीं होने वाला है। अगर उनको इतना ही मरने से प्रेम है सिर्फ सीधे साधे जानवरों की ही बलि चढ़ाएंगे ,बाघ क्यों नहीं मारते तो इस कृत्य को बहादुरी से भी जोड़ा जा सकता है ,लेकिन ऊँट सरीखे को मरना शायद ठीक नहीं। इसमें मेरा कोई धार्मिक विरोध नहीं है ऐसा किसी धर्म में है तो गलत है,हिन्दुओं में भी पहले नरबली तक की विधान का जिक्र सुनाई पड़ता है जो अब थमता नजर आ रहा है।
ऐसे वाकयों की शुरुआत निश्चय ही अभाव से प्रारंभ हुई। अशिक्षा से शुरू हुई लेकिन सभी समाज होने के बाद भी इसका इस बड़े पैमाने पर जारी रखना शायद गलत है। इसलिए ये दुहाई है इस सम्प्रदाय विशेष के लोगों से की इस पशु बलि को रोकने में आगे आये, दर है की कही मुझे साम्प्रदायिक करार दे चुप न करा दिया जाय .........

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

निरंकुश भ्रष्टाचार की पोषक मायावती सरकार

यूं तो भ्रष्टाचार के सवाल पर बोलना महापाप हो गया है क्योंकि इस सवाल पर बोलने वाले मुह तो अनेकानेक है पर कान शायद बंद हो चुके हैं। पूरे देश में इस महातत्व का बोलबाला है। लेकिन उत्तरप्रदेश में तो स्थितियां कुछ अलग ही हैं। मुख्यमंत्री मोहतरमा मायावती मानो कुशल रक्षिका की भूमिका निभा रही हों।
गजब हाल है एक पुलिस का आला अधिकारी चिल्ला -चिल्ला कर कह रहा है की सरकार सरेआम भ्रष्टाचार कर रही है ,इतना ही नहीं वो इस कदर रुष्ट हुआ की अपनी बलि तक चढ़वाने को तैयार है,और सरकार कहे नहीं अघा रही है किवो पगला गए हैं। एक आला अधिकारी डिप्रेसन में चल रहा था तो क्यों,क्या कारण था क्या इसका जवाब सरकार ने बटोरे है,नहीं भी बटोरे होंगे तो कल तक बटोर लेंगे। अब देखना है की अब तक जो भी इस सरकार के खिलाफ मुह खोलने की हिम्मत जुटी है किसी न किसी बहाने जान गवाई है,अब देखने है क्या हश्र होता है डी डी मिश्र जी का। कही उनको भी रास्ते से हटा कर अपना तिलिस्म साफ न करे साहिबा। यूं तो अपराध पर उनकी पकड़ को नाकारा नहीं जा सकता लेकिन अगर यह कहा जाय की उसका कारण यह है की या तो माफिया लोग उनके बन कर रहेंगे या नहीं रहेंगे के रिश्तों पर ही प्रदेश चल रहा है तो बहुत गलत नहीं होगा। वैसे सब कुछ भविष्य के हाथ में है भला हो बिचारे डी डी मिश्र जी का..............