गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

ये पैसे वाले भी न, क्या गजब हैं ,,सरे राह अपने  हिस्से की गर्मी दूसरे को झेलने को मजबूर ही नहीं करते  बल्कि झेलवाते हैं वो भी डंके की चोट पर । बनारस बहुमंजिली इमारतों का गढ़ बनता जा रहा है ।  जहाँ पर भी खाली जमीन मिली ये तथाकथित अत्याधुनिक धनकुबेर वहां सर से टोपी गिरा देने वाली  ईमारत बनाने को बेताब से हैं से हैं। अब  इन बहुमंजिली इमारतों में प्राकृतिक हवा पानी तो  मिलने से रहा।  बनारस जमीन के दलालों की तो लगभग विश्वस्तरीय मंडी बन चुका  है। सबसे आसान  काम है न हर्रे लगे न फिटकरी रंग चोखा। 
दादी माँ के  नुस्खे भी अब क्योटो वाले होंगे । 

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

गरीबों की झुग्गी झोपड़ियों में सौ पचास रुपये की कलम किताब बाँट कर अपने ईटों को टाइल्स में तफदील करने के सपने सहेज  समाज कल्याण विभाग के दफ्तरों  में चक्कर लगाने और अधिकारियों  की चापलूसी करने वाले कालनेमी सरीखे तथाकथित आज के समाज सेवियों की  बुद्धि- शुद्धि लिए श्रद्धेय नारायण देसाई पर  यह लेख सुन्दरकाण्ड ही नहीं समूचा मानस पाठ है ।