शनिवार, 22 जून 2013

कहाँ  गए सारे धन कुबेर जो कभी किसी दुर्घटना या मौत पर दुःख भरे दो बूँद घडियाली आँसू ही सही बहाने के बजाय हर मौत की कीमते तय करते फिरते हैं ,दो लफ्ज शांत्वाना  के बोलने के बजाय मौत के मुआवजे बाँटते फिरते हैं । क्या अनगिनत मौतें उनके खजाने पर भारी  पड़ने लगी हैं ,या प्रकृति को नाश कर मिथ्या विकास की अपनी विचित्र अवधारणा पर मंथन कर रहे हैं  । एक और भी गिरोह है जो हर आपदा में सबसे पहले अपने हाथ सहयोग के रूप में प्रस्तुत करने का ढोंग रचता है और उसके मुखियों का शख्त आदेश होता है कि बिना वर्दी के दिखना नहीं है ,,,,,,,,,,सब के सब कहाँ हैं ?

गुरुवार, 20 जून 2013

उत्तराखण्ड में हुई भयानक प्राक्रितिक तबाही से सीख लेनी चाहिए आधुनिक भारत  के निर्माताओं को । बाढ़ और इस तरह की जल तबाही को रोकने में छोटी नदियों,नारों और तालाबों,तालों ,कुंडों और कुओं का अति महत्वपूर्ण योगदान होता थ। आज इन छोटे जल श्रोतों के प्रति हमारे देश की सरकारे इस कदर उदासीन है और अमेरिका बनाने में  पगलाए हुए हैं कि नदियों को पाटने और उन पर लम्बी चौड़ी इमारते बनाने की खुली छूट और लूट जारी है । मुठ्ठी भर सरकार के लोगो पर ही पूरा दोष नहीं मढ़ा जा सकता है ,हम लोग भी इस कदर अपने स्वार्थों में अंधे हो चले हैं कि क्या नदियाँ क्या तालाब हर चीज की कीमत लगाने और उस पर अपना नेम प्लेट झुल्वाने के पीछे झूलते जा रहे हैं । उन्हें भी एक नजर इस भयानक जल आपदा पर नजर डाल कर आँख मूद  सोचने की जरुरत है आखिर वो किस दुर्घटना की घड़ी की बाट  जोह रहे हैं । जब गंगा उफान पर होती है तो उसके बाढ़ को ये छोटी नदियाँ कूप तालाब इत्यादि आपदा नियंत्रण की भूमिका में होते हैं । लेकिन इनको पाइप में डाल कर साफ सुथरा सड़क बनाने के सरकार के फैसले पर हम लट्टू हो जाते हैं । याद रहे टेहरी भी एक बाँध है  उसकी भी अपनी एक धैर्य सीमा है गंगा का सत्तर प्रतिशत पानी उसे अकेले पिलाया जाता है ,जिस दिन उसका पेट भर जाएगा ,फिर  विकास के भूख को भी तत्काल शांत  करने में वो कोई कसर नहीं छोड़ेगा ,और हमारे पास  मलने को हाथ भी नहीं रह जाएगा ,केदारनाथ जी के बाद विश्वनाथजी को भी त्रस्त  करने का मानचित्र तैयार है ,,,,अब तो कम से कम नदियों को पाटने तालाबो को पीने की आदत से बाज आइये ।