गंगा माँ है अजीर्ण है अविरल है। एक संस्कृति है अध्यात्म है ,जीवनधार है इसलिए परम धर्म है । यह जीवन शैली है ,,आचार है विचार है ,सहयोग है और समृद्धि भी । इसमें नहाना मना हो जाय,इसके आँचल में शव दाह बंद हो जाय ,,,पशु पक्षियों का कलरव बंद हो जाय ,,,कुछ दिन बाद इसके दर्शन भी बंद कर दिए जाय ,,तो उस बच्चे लिए माँ कैसी ,,,अरे क्यों ढोंग करते हो ,,हैशियत हो तो बंद करो आंध बाँध ,,छोडो इसके अविरल धारा को ,,,और हां इसके लिए आंदोलन रत वातानुकूल माहौल में रहने वाले नाटककारों ,,खुली हवा में सास लेने का माद्दा पैदा करो ,,,फिर गंगा तुम्हारी थी ,,तुम्हारी है और तुम्हारी रहेगी ,,,,,