शनिवार, 21 मई 2011
अधिवेशन में नेता और रैली में जनता
अभी दो दिन पहले बनारस में पैर रखना असिर्धा हो गया था कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन और रैली। अधिवेशन स्थल दूसरा और रैली का स्थल दूसरा। कारण कि अधिवेशन में सिर्फ नेता थे और रैली में नेता को भी जनता कि औकात में आना पड़ता। वैसे भी अब पहले जैसे रैलियों में नेता को लोग सुनने तो जाते नहीं देखने जाते हैं,उसमें भी बिकाऊ भीड़ नाश्ते और भोजन के साथ कुछ फिक्स रकम पर धूप-छांव झेलने को तैयार हो जाती है। अगर कोई भी राजनैतिक पार्टी अपने साफगोई का इतना ही डंका पीटना चाहती है तो अधिवेशन भी जनता के बीच क्यों नहीं कराती सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा ,लेकिन बात यह है कि तब भाई भतीजावाद नहीं चल पायेगा ,नेता का भोजन kar waha tak pahuchne वाली जनता ही uska wirodh karne lagegi,वैसे भी kaangres कि nautanki se देश हमेशा दो चार hota रहा है यह कोई नया वाक्य नहीं है। ये सब राजनैतिक लुटेरों कि जमात बन कररह gayee है अन्यथा kendr अगर pradesh कि neetiyon se asahmat है
शुक्रवार, 6 मई 2011
आधुनिक भारत में रिश्तों का अस्तित्व
निश्चय ही जब आधुनिक भारत की कल्पना पंडित नेहरु जैसे तथाकथित भ्रष्ट योगी के दिमाग में आई होगी तो उनके सपने में परिवार सजाने का उद्देश्य रहा होगा लेकिन इसका इतना बुरा असर परिवार और पारिवारिक रिश्तों पर ही पड़ेगा शायद वो सपने में भी नहीं सोचे होंगे। आधुनिकता के अंधेपन और स्वार्थ के चरमोत्कर्ष ने परिवार की शक्ल ही बदल डाली है। बिखरते परिवार में खुशियों की जगह अवसाद लेता जा रह है। चाहे वो नोएडा के दो बहनों की कहानी हो या फिर बनारस की सुनंदा की ,ये सर्फ पारिवारिक विघटन की परिणति है अन्यथा अगर संयुक्त परिवार रहता तो आज ये स्थिति कत्तई नहीं आती। इस समस्या की जड़ अगर तलाशा जाय तो मिलेगा कि हर आदमी इसके जड़ में सरे आम पानी दे रहा है। हर बाप ये तो चाह रहा है कि उसके बच्चे एक साथ रहे लेकिन बेटी की शादी के लिए उसे अकेले रह रहे लड़के की तलाश होती है जिससे उसके बिटिया की कम मेहनत करना पड़े साथ ही उसे कोई बंधन न झेलना पड़े और इस तरह से पूरा समाज जाने -अनजाने में सुनंदा और नोएडा की कहानी की पृष्ठभूमि तैयार करने में अपनी शानदार भूमिका दर्ज करा रहा है। जब तक रिश्तों के अस्तित्व पर संकट के छाये बादल काटने का सफल प्रयास नहीं किया जायेगा यही हश्र होगा।
चिन्हित लादेन तो मारा गया लेकिन गैर चिन्हित लादेनों का क्या होगा
अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन मारा क्या गया अमेरिका अपने कारनामों की गाथा गाते नहीं थक रहा है। वहीँ भारत के भी सेना के अधिकारी अपनी हेकड़ी दिखाना शुरू कर दिए हैं। आतंकवाद के प्रति साहसी होना और उसके खात्मे भरे विचार का निश्चय ही स्वागत होना चाहिए,लेकिन ओसामा के साथ एक चीज तो स्पस्ट था वो उसका चरित्र और कार्य,जो उसकी जानलेवा परिणति में साबित हुआ लेकिन साद की तरह छुट्टा घूम रहे और लूट-खसोट सरेआम मचा रहे उन ओसामाओं के लिए हम क्या कर रहे है जो बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में वातानुकूलित व्यवस्था का न सिर्फ आनंद ले रहे हैं बल्कि जनता में बहरूपिया भूमिका में लूट पाट मचा रहे होते हैं। इस पर विचार होना चाहिए क्योंकि ओसामा से तो हम हमेशा सावधान रहते रहे हैं लेकिन इन ओसामाओं को जिनको हम ओबामा समझते हैं या समझने की भूल करते हैं ,और रोज खुद के एक नई त्रासदी की कहानी गढ़े जाने का आमंत्रण देते हैं ,इन पर जब तक लगाम नहीं लगेगा दुनियां से आतंकवाद ख़त्म होने उम्मीद भी एक बड़ी भूल होगी। न मैं ओसामा की तारीफ कर रहा हूँ न ही किसी जाति विशेष पर आक्षेप पर ये बात विचारणीय तो है ही ।
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