शुक्रवार, 6 मई 2011

आधुनिक भारत में रिश्तों का अस्तित्व

निश्चय ही जब आधुनिक भारत की कल्पना पंडित नेहरु जैसे तथाकथित भ्रष्ट योगी के दिमाग में आई होगी तो उनके सपने में परिवार सजाने का उद्देश्य रहा होगा लेकिन इसका इतना बुरा असर परिवार और पारिवारिक रिश्तों पर ही पड़ेगा शायद वो सपने में भी नहीं सोचे होंगे। आधुनिकता के अंधेपन और स्वार्थ के चरमोत्कर्ष ने परिवार की शक्ल ही बदल डाली है। बिखरते परिवार में खुशियों की जगह अवसाद लेता जा रह है। चाहे वो नोएडा के दो बहनों की कहानी हो या फिर बनारस की सुनंदा की ,ये सर्फ पारिवारिक विघटन की परिणति है अन्यथा अगर संयुक्त परिवार रहता तो आज ये स्थिति कत्तई नहीं आती। इस समस्या की जड़ अगर तलाशा जाय तो मिलेगा कि हर आदमी इसके जड़ में सरे आम पानी दे रहा है। हर बाप ये तो चाह रहा है कि उसके बच्चे एक साथ रहे लेकिन बेटी की शादी के लिए उसे अकेले रह रहे लड़के की तलाश होती है जिससे उसके बिटिया की कम मेहनत करना पड़े साथ ही उसे कोई बंधन न झेलना पड़े और इस तरह से पूरा समाज जाने -अनजाने में सुनंदा और नोएडा की कहानी की पृष्ठभूमि तैयार करने में अपनी शानदार भूमिका दर्ज करा रहा है। जब तक रिश्तों के अस्तित्व पर संकट के छाये बादल काटने का सफल प्रयास नहीं किया जायेगा यही हश्र होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें