शनिवार, 18 जून 2011

सत्ता की लोलुपता जनसेवा को निगलने के कगार पर

खेतिहरों के देश भारत में सबसे ज्यादा लूटा जाता है खेतिहर ,विचारवानों के देश में सबसे ज्यादा मारा जाता है विचारवान इसी तर्ज पर कुछ चल रही है भारत की पहचान। आज देश में आन्दिलनों की बाढ़ आ गयी है,जिसको देखो वही अनशन पर बैठने को तैयार है यदि इसी तरह गैर राजनैतिक लोगों का बर्चस्व बढ़ता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब नेता से उठा विश्वास उसके अंतिम स्वास तक चलेगा,बाबा रामदेव ने तो सोने पर सुहागा का काम किया ,पेट फुलाने पचकाने का पेशेवर इस्तेमाल करने वाले लोग जब अनशन पर मंचासीन होंगे तो उनसे विरोध का दंश झेलने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती,नतीजा पेटीकोट पहन कर महिलाओं के बीच शरण लेंगे। ताज्जुब है आज तक के इतिहास में जब-जब सरकार का दमन यंत्र भरी पड़ा है तब - तब पहले यानि अनशन का मुखिया मारा जाता रहा है यह इतिहास का पहला अनशन होगा जब मुखिया भाग खड़ा हुआ और सखिया लात खाए, तथाकथित रूप से पुलिस की मर पड़ी एक महिला आज भी कोमा में है लेकिन बाबा रामदेव के लोगों के पास फुर्सत नहीं की उसकी पूछ भी करें। अपना व्यवसाय भी तो देखना है,कहीं समय पर आंवला का बागन नहीं खरीदा पाया तो बाबा जी करोड़ों के घाटे में चले जायेंगे।
मेरी बाबा से कोई दोस्ती का तो सवाल नहीं उठता लेकिन दुश्मनी भी नहीं है ,बस इतना ही है कहना की हर व्यक्ति को हर क्षेत्र में जबरन टांग अदा स्वयंभू नहीं बनना चाहिए,न ही मैं कांग्रेस का सिपाही हूँ न ही किसी क्गेरुआ का समर्थक,अच्छा होता बाबा कोई अनाथालय खोल कुछ अनाथ बच्चों की परवरिश में लग जाते उनको एक नेक सलाह है,अब तो पैसे की भी कोई कमी नहीं है संयोग से उनके पास। देश चलता रहेगा इसकी चिंता कम से कम उन्हें नहीं करनी चाहिए जब गेरुआ के लिए परिवार छोड़ दिए तो अब बड़े परिवार रुपी देश के पचड़े में पद अपनी शोर क्यों धो रहे हैं ।

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