नगर चुनावों की सरगर्मी गर्मी को बढ़ा दिया है,हर तरफ गहमा गहमी बढ़ रही है। कुरता धारी फास्ट हैं किसको हनुमान बन अपना कलेजा फाड़ दिखा दे कि एक दम राम की तरह वो उन्ही को मन में बसाये हुई हैं । सामान्य जनता शांत है समझ नहीं पा रही है इस कदर इन लोकतान्त्रिक उत्सवों कि मरजाद बिगड़ी है कि जनता मौन सी हो गयी है। लेकिन विकल्प का अभाव कभी भी नहीं होता है वो बात दीगर है कि हम समय रहते पहचानते नहीं हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि बरसों सिद्धांत बघारने वाले लोग चंद मिनटों में कही शराब का तो कही अपराध का तो कही अर्थ का कोना पकड़ बस उसी को अपनी राष्ट्रीय राजनीती का द्योतक समझना शुरू कर देते हैं। खुद जब ये लोग काभी कोई चुनाव लड़ते है तो अर्थ हीन और अपराध हीन होने के वजह से सरे स्वस्थ समाज से उम्मीद करते हैं कि लोग उनके साथ हो ,लेकिन खुद कहा रहे हैं या रहते हैं यह भूल जाते हैं....ईश्वर उन सबको सद्बुधी दे,,,,और स्वच्छ को काशी की कमान ।
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