दो करोड़ खटाई में,,,,,,,,,,,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के रचयिता पंडित मदन मोहन मालवीय ने १९१६ में जिस जगह फावड़ा चलाकर विश्वविद्यालय की नीव रखी थी ,,,वह जगह खाली छोड़ उससे हट कर बाद में विश्वविद्यालय का निर्माण शुरू किया । कारन की वह गंगा का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था ,और प्रयाग में नदियों के उफान में बाकायदा उनकी समझ थी । अतः उस जगह को स्थापना स्थल के रूप में जाना और पूजा जाता था ,,महामना के फावड़े के निशानी के रूप में सजोया गया था । पर कुलपति डॉ लालजी सिंह ने वहां दो सौ करोड़ की लागत से ट्रामा सेंटर बनवा डाला । जब बाढ़ की विभीषिका में बनारस जलमग्न होना शुरू हुआ तो उन्हें अपने ट्रामा सेंटर की याद आई और उसे देखने सदल पहुचे ,,पूरा प्रस्ताव मानों बाढ़ में आहें भर रहा हो ,,हो सकता है कोई रास्ता कुलपति महोदय को मिल ही जाय और मोटी रकम खर्च कर के पानी को अन्दर आने से कुछ और रोक भी लें ,,लेकिन अदूरदर्शी होने के वजह से राष्ट्र का दो सौ करोड़ तो खटाई में ही दिख रहा है ,,ऊपर से महामना के प्रथम फावड़े की अनमोल निशानी भी निगल ली इस ट्रामा सेंटर ने ।ये देश को फायदा कितना देगा भगवान् जाने पर तत्काल कुछ बिचौलियों की जेबों में तो हरियाली आयी ही होगी ।
सबसे बड़ा कारन की इस इतने बड़े विश्वविद्यालय को समझने में तीन बरस बीत जाते है यहाँ के कुलपतियों को ,,फलतः ये जिन चंद लोगों से घिरे होते हैं उन्ही को बीएचयू समझते हैं ,,और कितने लोगों की नौकरियां गणेश परिक्रमा में ही पूरी ही नहीं होती बल्कि पुष्पित और पल्लवित होती है ,,,महामना जैसे युग पुरुष ने विपन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण कराया देश को संपन्न बनाने के लिए ,,,और उनके मानस पुत्र सम्पन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण करा रहे हैं लेकिन देश को शायद विपन्न बनाने के लिए ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के रचयिता पंडित मदन मोहन मालवीय ने १९१६ में जिस जगह फावड़ा चलाकर विश्वविद्यालय की नीव रखी थी ,,,वह जगह खाली छोड़ उससे हट कर बाद में विश्वविद्यालय का निर्माण शुरू किया । कारन की वह गंगा का बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था ,और प्रयाग में नदियों के उफान में बाकायदा उनकी समझ थी । अतः उस जगह को स्थापना स्थल के रूप में जाना और पूजा जाता था ,,महामना के फावड़े के निशानी के रूप में सजोया गया था । पर कुलपति डॉ लालजी सिंह ने वहां दो सौ करोड़ की लागत से ट्रामा सेंटर बनवा डाला । जब बाढ़ की विभीषिका में बनारस जलमग्न होना शुरू हुआ तो उन्हें अपने ट्रामा सेंटर की याद आई और उसे देखने सदल पहुचे ,,पूरा प्रस्ताव मानों बाढ़ में आहें भर रहा हो ,,हो सकता है कोई रास्ता कुलपति महोदय को मिल ही जाय और मोटी रकम खर्च कर के पानी को अन्दर आने से कुछ और रोक भी लें ,,लेकिन अदूरदर्शी होने के वजह से राष्ट्र का दो सौ करोड़ तो खटाई में ही दिख रहा है ,,ऊपर से महामना के प्रथम फावड़े की अनमोल निशानी भी निगल ली इस ट्रामा सेंटर ने ।ये देश को फायदा कितना देगा भगवान् जाने पर तत्काल कुछ बिचौलियों की जेबों में तो हरियाली आयी ही होगी ।
सबसे बड़ा कारन की इस इतने बड़े विश्वविद्यालय को समझने में तीन बरस बीत जाते है यहाँ के कुलपतियों को ,,फलतः ये जिन चंद लोगों से घिरे होते हैं उन्ही को बीएचयू समझते हैं ,,और कितने लोगों की नौकरियां गणेश परिक्रमा में ही पूरी ही नहीं होती बल्कि पुष्पित और पल्लवित होती है ,,,महामना जैसे युग पुरुष ने विपन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण कराया देश को संपन्न बनाने के लिए ,,,और उनके मानस पुत्र सम्पन्नता में विश्वविद्यालय का निर्माण करा रहे हैं लेकिन देश को शायद विपन्न बनाने के लिए ।