मंगलवार, 3 सितंबर 2013

जग जाहिर है जब जब प्रकृति के साथ अप्राकृतिक व्यवहार हुआ है तब तब विनाश गले का हार बनती है । अभी कुछ दिन पहले काशी हिन्दू विश्विविद्यालय में आपदा प्रबंधन पर चर्चा के दौरान कुछ पर्यावरण के विद्वानों ने नदियों को जोड़ने की कवायद की । मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कोई ऐसी नदी है जो किसी दूसरी नदी से जुडी न हो । हां नए विकास के माडल और नए पर्यावरण के विद्वानों ने अपने इन्ही कृत्रिम सोचों से प्राकृतिक आपदाओं को बखूबी न्योता दिया है । एकाक न्योतों की तादात और बढ़ जायेगी । हाँ एक फायदा जरूर होगा जैसा की होता रहा है ,,कुछ पर्यावरण का जबरन झोरा ढोने वालों के आलमारियों में कुछ गद्दियों की संख्या बढ़ जायेगी ,,या बैंक बचत में कई शून्य । प्रकृति जब जब छेड़ी जाती है धरासायी होता है सामान्य जन जीवन ,,जो तैयार रहे अगले के लिए,,,,,,,,

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