युवाओं के नाम पाती ……
युवा सोंच अरोक होती है । युवा अपरिवर्तनशील में भी परिवर्तन कि क्षमता रखता है । अवसर बनाता है अवसर उसके लिए न तलाशने का विषय होता है न ही इन्तजार का ।युवा अतिसंवेदनशील एवं नितांत त्यागी होता है । उससे बेहतर लोकसेवी की उम्मीद नहीं की जा सकती है । देश कि सीमा पर नौजवान होता है और देश के खेत और खलिहानों में खून पसीने एक कर देश का पेट भी नौजवान ही भरता है । नौजवान विवेकानंद होता है ,नौजवान सुभाषचंद्र और भगत होता है , कहीं गांधी तो कहीं पटेल होता है और हर कुछ से पहले वो बिगड़ों की नकेल होता है ।
आज देश में हर जगह युवाओं के लिए चिल्लहट लगाए जा रहे हैं ,युवा मौन है क्योंकि युवाओं के लिए ,, न फूलपुर होता है न गुजरात होता है उसके लिए देश ही सबसे बड़ा सौगात होता है ,,। कहीं कहीं युवाओं के स्वछन्द आकलन करने कि युवा क्षमता से भयग्रस्त उसे झंडाबरदार और खूटे से बधने कि सलाह देते हैं । लेकिन आज समय आ गया है जब युवा अपनी सोच पर जिए । केंद्रीय और राजकीय राजनीती में अपनी सक्रियता का आभास कराये वो भी बेझंडा होकर । लगभग एक दशक पहले एक बुजुर्ग मनीषी ने एक सवाल मुझसे किया कि ,,तुम किस धारा के हो ,,मेरा अगंभीर जवाब उन्हें बड़ा गम्भीर कर दिया ,,,मैं धारा में नहीं धरा में आस्था रखता हूँ ,,मैं बेधार ही सही लेकिन जिस धारा में धरा हो उससे आप मुझे जोड़ सकते हैं ।
अतः आज समय है जब माँ भारती को पुनः उसके छोटे बेटों की तलाश है ,,,,युवाओं उठो ,, क्या गुजरात ,क्या बंगाल ,,पूरा देश तुम्हारे बाँहों में समाने को आतुर है ,,,
हिन्द के नौजवानों उठो शान से ,,,
युवा सोंच अरोक होती है । युवा अपरिवर्तनशील में भी परिवर्तन कि क्षमता रखता है । अवसर बनाता है अवसर उसके लिए न तलाशने का विषय होता है न ही इन्तजार का ।युवा अतिसंवेदनशील एवं नितांत त्यागी होता है । उससे बेहतर लोकसेवी की उम्मीद नहीं की जा सकती है । देश कि सीमा पर नौजवान होता है और देश के खेत और खलिहानों में खून पसीने एक कर देश का पेट भी नौजवान ही भरता है । नौजवान विवेकानंद होता है ,नौजवान सुभाषचंद्र और भगत होता है , कहीं गांधी तो कहीं पटेल होता है और हर कुछ से पहले वो बिगड़ों की नकेल होता है ।
आज देश में हर जगह युवाओं के लिए चिल्लहट लगाए जा रहे हैं ,युवा मौन है क्योंकि युवाओं के लिए ,, न फूलपुर होता है न गुजरात होता है उसके लिए देश ही सबसे बड़ा सौगात होता है ,,। कहीं कहीं युवाओं के स्वछन्द आकलन करने कि युवा क्षमता से भयग्रस्त उसे झंडाबरदार और खूटे से बधने कि सलाह देते हैं । लेकिन आज समय आ गया है जब युवा अपनी सोच पर जिए । केंद्रीय और राजकीय राजनीती में अपनी सक्रियता का आभास कराये वो भी बेझंडा होकर । लगभग एक दशक पहले एक बुजुर्ग मनीषी ने एक सवाल मुझसे किया कि ,,तुम किस धारा के हो ,,मेरा अगंभीर जवाब उन्हें बड़ा गम्भीर कर दिया ,,,मैं धारा में नहीं धरा में आस्था रखता हूँ ,,मैं बेधार ही सही लेकिन जिस धारा में धरा हो उससे आप मुझे जोड़ सकते हैं ।
अतः आज समय है जब माँ भारती को पुनः उसके छोटे बेटों की तलाश है ,,,,युवाओं उठो ,, क्या गुजरात ,क्या बंगाल ,,पूरा देश तुम्हारे बाँहों में समाने को आतुर है ,,,
हिन्द के नौजवानों उठो शान से ,,,