शनिवार, 3 सितंबर 2011

लोकपाल बनाम भ्रष्टाचार

देश परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है अगर ऐसा कहा जाय तो शायद बहुत गलत नहीं होगा वो परिवर्तन कितना सार्थक हो पायेगा कितना राष्ट्र हित में चल पायेगा यह भविष्य की कोख में है। क्या भ्रष्टाचार ही बस देश को पीछे किये हुए है ,अगर हाँ तो क्या एक अन्ना की हैसियत है की देश डेढ़ अरब की भेड़-भीड़ को रामलीला मैदान में दहाड़ कर सुधार देंगे। निश्चय ही अन्ना साहब की सामाजिक सरोकारों की रूचि को सलाम किया जा सकता है ,उनके मेहनत,लगन और कारनामे अनुकरणीय रहे हैं । अपने गृह जनपद में सामान्य जनता से जुड़े बहुत सारे कार्य उन्होंने किया जोकि काफी सराहनीय है। लेकिन अन्ना के इस आन्दोलन से राष्ट्र को बड़ी क्षति हुई है,ठीक उसी तर्ज पर जैसे डॉ.अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बना कर देश को वैज्ञानिक दुर्भिक्ष में डाल दिया गया था। वैसे ही अन्ना अगर हर जिले में घूम के हकीकत के पायदान पर चलते हुए वह की विपत्तियों से लोगों को बचाहते और सारे गाँव को अपने गांव सरीखे बनाने का प्रयास करते ,जो उनके रूचि की विषयवस्तु है,तो शायद ज्यादे बेहतर होता। किताबी चापलूस फोटोकारों ने गाँधी से तुलना अन्ना की करके बेमानी की है,गाँधी जिस चम्पारन के विषय में जनता तक नहीं था वह एक गए बर्षों रह गया मगर वहां के हालत सुधार कर ही दम लिया। आज पूरे देश की स्थिति चम्पारन सरीखी हुई है ,लेकिन क्षोभ की गाँधी के नाम पर शोहरत हाशिल करने वाले लोग गाँधी के पद चिन्हों पर चलने में खुद को असहज पा रहे हैं।
दूसरी बड़ी चीज की अन्ना की लडाई भ्रष्टाचार है या लोकपाल। अगर लोकपाल की गोजी से ये भ्रष्टाचार की चुरईन को मरना चाहते है तो शायद बड़ी भूल कर रहे हैं। जो आदमी इतना तय नहीं कर पा रहा है की देश बड़ा है या कौम विशेष,उससे कितनी सार्थक उम्मीद की जाय। बात स्पस्ट करना चाहूँगा कि भारत माता की जय,और बन्दे मातरम का नारा जब उनके आन्दोलन कारियों द्वारा दिया जारहा था तो इमाम बुखारी ने कहा की अन्ना का आन्दोलन इस्लाम के खिलाफ है उर मुस्लिम वहां जाने से परहेज करें,यद्यपि किसी मुस्लिम पर बुखारी का असर नहीं पड़ा लेकिन अन्ना पर इतना असर पड़ा की वे रातोरात मंच से भारत मान की तस्वीर हटवा दिए,इतना ही नहीं अगले दिन अपने दो दूत अरविन्द केजरीवाल साब को और मोहतरमा किरण बेदी को उनको मनाने उनके घर भेज दिए। मुझे एक बात समझ में नहीं आयी की जब सारे मुस्लमान अपने धर्म से ऊपर उठ कर राष्ट्र धर्म के भाव से अन्ना के साथ जुड़े थे तो उन्हें अकेले बुखारी के बयां पर इतना लचीला होने की क्या जरूरत। बुखारी इस्लामिक नेता हो सकते हैं इस्लाम नहीं।
धन्यवाद.............

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