मंगलवार, 27 नवंबर 2012

अरविन्द केजरीवाल बनने  चले आम 

अरविन्द केजरीवाल ने नयी पार्टी को ,,आम ,,नाम दिया ।राम मनोहर गाँधी आम आदमी बने थे जो की सच में आम नहीं अनार थे ।फिर भी आम आदमी ने उन्हें नहीं स्वीकारा ।बनारस के विधानसभा चुनाव में भी एक प्रत्याशी को हम आम आदमी के करीब कहने की जुर्रत करते है ,कारन सबसे अधिक सभाए ,सबसे अधिक गोष्ठियां,और इतना कम खर्च की आम आदमी भी चुनाव लड़ने का मन बना सके।वो बात दीगर है कि सब कुछ अच्छा होने के बावजूद आम आदमी की स्वीकार्यता वहा  भी नहीं बन पायी ।लेकिन हां आम में भी खास बनने  की हिम्मत में इजाफे के नजरिये से इसे न देखना बेमानी होगी ।
अब आप ही बताएँ  अरविन्द जी का आम आदमी कौन है ?करोडो की धन उगाही शुरू है ,।बदलाव जरुरी है ,लेकिन क्या यही ।अगर यही उनका आम है तो आम कहाँ जायेगा?डर है देवानंद ने एक पार्टी बनाई थी ,,इंडियन नेशनल पार्टी,,उसमे विजयलक्ष्मी पंडित को साथ भी जोड़ा था .........

रविवार, 25 नवंबर 2012

वाराणसी के माननीय जिलाधिकारी ,मीडिया घरों के आदरणीय प्रमुख गणों,एवं जन जन  के नाम खुला पत्र 

            ब्रह्माण्ड की प्राचीनतम नगरियों में शुमार वाराणसी (काशी)सदियों  से मोक्ष दायिनी रही है ।इस वाराणसी के नाम निर्माण में वरुणा और असी दो नदियों का संगम है ।नदियाँ पुरे देश में खस्ता हाल हैं।सरकारें  पैसा खर्च कर रही है लेकिन जन भूमिकाये  हाशियें पर आई हैं ।आज वरुणा और असी दोनों ही नदिया अस्तित्व से जूझ रही हैं ।असी का तो रास्ता तक बदल दिया गया है।
लेकिन ये तथाकथित बुद्धजीवी वर्ग जब नदी को नाला कहना स्वीकार करता है या  है तो हताशा होती है।खासकर असी नदी को आज कई अख़बारों ने नाला संबोधित कर समाचार छापा है,जिससे हमें कोफ़्त है ।अख़बार के लोग अगर ऐसी गलतियाँ करते हैं तो बाकि से क्या उम्मीद किया जाये ।प्रशासन भू माफियाओं की  तरफदारी में लगा है नदियों में बीचोबीच ईमारते तन रही है ।तो भी बनारसी जन गण मन शांत था लेकिन अब  ये घोषित गाली बर्दाश्त नहीं है।
अतः इस पत्र  के माध्यम से देश के नीति नियंताओं तथा  बनारस के माननीय  ज़िला अधिकारी मीडिया प्रमुखों एवं जन जन से ये अनुरोध एवं उम्मीद जताते है की असी नदी को नाला का संबोधन बंद होगा।
सधन्यवाद 
गणेश शंकर 

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

Desh Ho Raha Mahan

देश हो रहा महान ....

हम सब विचित्र देश के सुचित्र नागरिक हैं ।  शिक्षा किसी भी देश का भविष्य निर्धारित करती है।  .शिक्षा के नाम पर पहल देश की कुर्सी संभाल  रहे किसी भी सरकार का प्रथम कर्तव्य होता है। फीस प्रतिपूर्ति तथा वजीफा के नाम पर बहुतायत धन उपलब्ध कराये जा रहे है ,गलती से कभी पात्र अन्यथा हमेशा कुपात्र इसका हकदार बन बैठता है ।दूसरी तरफ शिक्षण संथाओं में शिक्षा के स्तर  को ऊचा  करने का कोई प्रयास होता नहीं दिख रहा है ।तमगे पहनाये जा रहे है ।जबकि ,आई आई एम् और आई आई टी जैसी संस्थाए भी विश्वस्तरीय शिक्षण की गणना में शामिल नहीं हो पा रहे ।विश्वविद्यालयों में शोध कार्यों में कट कॉपी पेस्ट का बोलबाला है  ।प्राध्यापक महोदय मोटी  तनख्वाहो को खर्च करने में खासे व्यस्त रहते हैं।तीन कक्षाओं से अधिक लेना नहीं है,वैसे भी कोई संस्था छह सात घंटो से अधिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं मुहैया करने की स्थिति में है,खास कर सरकारी।स्वास्थ्य सेवाए चौबीस घंटे,रेलवे चौबीस घंटे ,पिज्जा चौबीस घंटे,सिनेमा चौबीस घंटे ,बस शिक्षा ही है जिसको सबसे कम समय देने की जरुरत समझी जाती है  ।जबकि इस पर पहल बहुत पहले शाम की कक्षाए शुरू कर के बहुत शिक्षण संस्थाओं ने की थी ,पर क्षोभ की वो व्यवस्था तो बंद हो गयी लेकिन उस समय  अंशकालिक नियुक्ति प्राप्त लोग बाद में पूर्णकालिक शिक्षक हो लुत्फ़ उठा रहे हैं।अब ऐसे प्रयोग की भी जरुरत नहीं समझी जाती  ।अब आप ही अंदाजा लगाओ की ये सब ढोंगी प्रयास शिक्षा को कहा पहुचने की निरंतर कोशिश में हैं ।
दूसरा शुरूआती शिक्षा की प्रक्रिया पर अगर जोर दिया जाए तो आज अंग्रेजी माध्यम हो या हिंदी माध्यम ,बारहवी के बच्चे को बीस तक पहाडा नहीं मालूम है ,कारन की अब ,, दो के दो ,,,दो दुने चार ,,के नारे नहीं लगते ।हा हाथ में मोबाइल पहाड़े में मदद करने से बाज नहीं आती ।गुरुकुल शिक्षा पद्धतिओं में भी चौबीस घंटे की व्यवथा सी थी ।सहयोग और समर्पण में खामियां आई है,समाज विघटन की राह चला ।अगर यही विकास है तो ऐसे विकास से तौबा ........निश्चय ही देश हो रहा महान ....