गुरुवार, 25 जुलाई 2013

अब नहीं रही महामना की बगिया गरीबों के लिए ,,

   महात्मा मालवीय जी महराज के सपने का बीएचयू अब शायद नहीं रहा ,,विश्वविद्यालय के निर्माण में निश्चित ही अमीरों के अमीरी का ज्यादा योगदान था लेकिन गरीबों की रेज्कारियां भी पंडित जी के कटोरे में छलकी थी . यही कारन था की उनका पूरा ध्यान गरीब भारत पर था और इसकी जरूरत भी शायद उनके दिमाग में इन्ही गरीबों को ध्यान में रखकर उभरी रही होंगी ,,अन्यथा जो हैसियत वाले थे  वो तो उन दिनों भी विदेश पढाई करने जाते ही थे ,,,लेकिन आज का विश्वविद्यालय गरीब भारत को देखना भी पसंद नहीं करता ,,,कल अख़बार में पढने को मिला की एक बच्चे को कुछ छात्र  में उठाकर अस्पताल में ले गए तो वह चिकित्सकों ने   बद्फी नाटक नौटंकी के बाद उसे इलाज मिला ,,,ऐसे न जाने दूर दराज से आये कितने रोगी रोज बेइज्जती ,और जलालत झेलते हैं ,,साथ ही साथ लूटे भी जाते हैं ,,,यह तो हाल है विश्विद्यालय के प्रवेशद्वार का ,,,अन्दर  घुसते ही इस तथाकथित शिक्षा की राजधानी में बहुरूपियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है ,,कुछ ऐसे लोग हैं जो सिर्फ चमचागिरी से फलफूल रहे हैं ,चाहे जो कुलपति आये वो सबके करीब होते हैं मोती तनख्वाहों के बेरंगी चश्मे से उन्हें गरीब भारत नहीं दीखता ,,,उन्हें किसान की हैसियत नहीं  पता एक बरस के लिए हल चलाना बंद कर देगा तो पूरी कायनात के होश ठिकाने हो जायेंगे ,,,लेकिन यहाँ आये दिन गरीबों को अनदेखा कर फीस वृद्धि इत्यादि जारी है ,,पहले यहाँ गरीब किसी तरह खीच कर प्रवेश पा लिया तो फिर जीवन सुधर जाता था ,,आज इतना खर्च हो जाता है की ,,,,,जब की इतनी अधिक राशी आती है इस संस्थान के नाम पर की खर्च कर पाना  सम्भव नहीं हो पाता,,और चैनलों पर बीएचयू का प्रचार करने का फर्जी प्रमाणपत्र सौप घोटाले बाजी होती है ,,,,,आखिर ये सारे लोग छात्रों के मंच छात्र संघ के विरोध में क्यों खड़े हो जाते है कारन की इन्हें पता है अगर ये अधिकार फिर से उन्हें हाशिल हुआ तो अतीत वर्तमान और भविष्य तीनों की काली खुल जायेगी ,,,,,लेकिन वर्तमान रहनुमाओं को एक सार्थक सलाह देने की गुस्ताखी करने की जरुरत समझता हु की बाढ़ पानी को जरुर रोक लेता है लेकि एक समय तक उसके बाद जब बाँध टूटता है तो तो तबाहियां देखे नहीं देख जातीं ,,,,गरीबों की अनदेखी बंद करे और छात्रों को उनका मंच दे सब निपटारा अपने आप हो जायेगा ,,,,

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मेरे महान  में जब तक अंगरेज रहे तब तक अंग्रेजी इतनी मजबूती नहीं बना पायी थी ,,, पर अंग्रेजों के जाते जितने दिन बीत रहे हैं अंगरेजी उतनी मजबूत होती जा रही है ,,,पाठशालाओं में मौलबी साहब और पंडित जी या मुंशीजी  हुआ करते थे ,,,,अंग्रेजी के गुरुओं का कही जिक्र नहीं सुनाई पड़ता था ,,,,,एक भाषा के तौर पर इसके ज्ञान को बढ़ाना कत्तई बुरा या गलत नहीं है लेकिन भाषाई चोचले बाजी अब अंगरेजी पर भी भरी पड़ने लगी है ,,,,अमेरिकन और ब्रिटिश के चक्कर में अंग्रेजी बेचने की दूकान चमकाए लोग छात्रों को छल रहे हैं ,,,छात्र सही गलत में फस कर दम तोड़ रहा है ,,,,उदहारण के लिए कुछ शब्दों की पेशकश जरुरी है ,,,हमारे किसी गुरु ने या हमारी पीढी के लोगों को शायद were को वर कभी भी नहीं बताया गया ये हमेशा वेयर था ,,,यहाँ तक की हिन्दू विश्वविद्यालय के अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थी होने के वजह से अपने समय के गुरुओं को भी याद करते हुए याद आता है की वो लोग भी वेयर ही कहते थे ,,,अब finananceकही फाइनेंस होता ही नहीं फिनांस हो गया ,,director डायरेक्टर ,,डिरेक्टर हो गया ,,,,सिखवाक इस बदलावों से बेहाल हैं ,,,,,हमारे यहाँ एक कहावत कही जाती थी की ,,,,कोस कोस पर पानी बदले ,,तीन कोस पर बानी ,,,,कहा सम्भव है भाइयों की पूरी दुनिया की भाषा एक बना देंगे ,,,ऐसा होना भी ,,खतरा है ,,,,,,,