अब नहीं रही महामना की बगिया गरीबों के लिए ,,
महात्मा मालवीय जी महराज के सपने का बीएचयू अब शायद नहीं रहा ,,विश्वविद्यालय के निर्माण में निश्चित ही अमीरों के अमीरी का ज्यादा योगदान था लेकिन गरीबों की रेज्कारियां भी पंडित जी के कटोरे में छलकी थी . यही कारन था की उनका पूरा ध्यान गरीब भारत पर था और इसकी जरूरत भी शायद उनके दिमाग में इन्ही गरीबों को ध्यान में रखकर उभरी रही होंगी ,,अन्यथा जो हैसियत वाले थे वो तो उन दिनों भी विदेश पढाई करने जाते ही थे ,,,लेकिन आज का विश्वविद्यालय गरीब भारत को देखना भी पसंद नहीं करता ,,,कल अख़बार में पढने को मिला की एक बच्चे को कुछ छात्र में उठाकर अस्पताल में ले गए तो वह चिकित्सकों ने बद्फी नाटक नौटंकी के बाद उसे इलाज मिला ,,,ऐसे न जाने दूर दराज से आये कितने रोगी रोज बेइज्जती ,और जलालत झेलते हैं ,,साथ ही साथ लूटे भी जाते हैं ,,,यह तो हाल है विश्विद्यालय के प्रवेशद्वार का ,,,अन्दर घुसते ही इस तथाकथित शिक्षा की राजधानी में बहुरूपियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है ,,कुछ ऐसे लोग हैं जो सिर्फ चमचागिरी से फलफूल रहे हैं ,चाहे जो कुलपति आये वो सबके करीब होते हैं मोती तनख्वाहों के बेरंगी चश्मे से उन्हें गरीब भारत नहीं दीखता ,,,उन्हें किसान की हैसियत नहीं पता एक बरस के लिए हल चलाना बंद कर देगा तो पूरी कायनात के होश ठिकाने हो जायेंगे ,,,लेकिन यहाँ आये दिन गरीबों को अनदेखा कर फीस वृद्धि इत्यादि जारी है ,,पहले यहाँ गरीब किसी तरह खीच कर प्रवेश पा लिया तो फिर जीवन सुधर जाता था ,,आज इतना खर्च हो जाता है की ,,,,,जब की इतनी अधिक राशी आती है इस संस्थान के नाम पर की खर्च कर पाना सम्भव नहीं हो पाता,,और चैनलों पर बीएचयू का प्रचार करने का फर्जी प्रमाणपत्र सौप घोटाले बाजी होती है ,,,,,आखिर ये सारे लोग छात्रों के मंच छात्र संघ के विरोध में क्यों खड़े हो जाते है कारन की इन्हें पता है अगर ये अधिकार फिर से उन्हें हाशिल हुआ तो अतीत वर्तमान और भविष्य तीनों की काली खुल जायेगी ,,,,,लेकिन वर्तमान रहनुमाओं को एक सार्थक सलाह देने की गुस्ताखी करने की जरुरत समझता हु की बाढ़ पानी को जरुर रोक लेता है लेकि एक समय तक उसके बाद जब बाँध टूटता है तो तो तबाहियां देखे नहीं देख जातीं ,,,,गरीबों की अनदेखी बंद करे और छात्रों को उनका मंच दे सब निपटारा अपने आप हो जायेगा ,,,,
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