मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मेरे महान  में जब तक अंगरेज रहे तब तक अंग्रेजी इतनी मजबूती नहीं बना पायी थी ,,, पर अंग्रेजों के जाते जितने दिन बीत रहे हैं अंगरेजी उतनी मजबूत होती जा रही है ,,,पाठशालाओं में मौलबी साहब और पंडित जी या मुंशीजी  हुआ करते थे ,,,,अंग्रेजी के गुरुओं का कही जिक्र नहीं सुनाई पड़ता था ,,,,,एक भाषा के तौर पर इसके ज्ञान को बढ़ाना कत्तई बुरा या गलत नहीं है लेकिन भाषाई चोचले बाजी अब अंगरेजी पर भी भरी पड़ने लगी है ,,,,अमेरिकन और ब्रिटिश के चक्कर में अंग्रेजी बेचने की दूकान चमकाए लोग छात्रों को छल रहे हैं ,,,छात्र सही गलत में फस कर दम तोड़ रहा है ,,,,उदहारण के लिए कुछ शब्दों की पेशकश जरुरी है ,,,हमारे किसी गुरु ने या हमारी पीढी के लोगों को शायद were को वर कभी भी नहीं बताया गया ये हमेशा वेयर था ,,,यहाँ तक की हिन्दू विश्वविद्यालय के अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थी होने के वजह से अपने समय के गुरुओं को भी याद करते हुए याद आता है की वो लोग भी वेयर ही कहते थे ,,,अब finananceकही फाइनेंस होता ही नहीं फिनांस हो गया ,,director डायरेक्टर ,,डिरेक्टर हो गया ,,,,सिखवाक इस बदलावों से बेहाल हैं ,,,,,हमारे यहाँ एक कहावत कही जाती थी की ,,,,कोस कोस पर पानी बदले ,,तीन कोस पर बानी ,,,,कहा सम्भव है भाइयों की पूरी दुनिया की भाषा एक बना देंगे ,,,ऐसा होना भी ,,खतरा है ,,,,,,,

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