गरीबों की झुग्गी झोपड़ियों में सौ पचास रुपये की कलम किताब बाँट कर अपने ईटों को टाइल्स में तफदील करने के सपने सहेज समाज कल्याण विभाग के दफ्तरों में चक्कर लगाने और अधिकारियों की चापलूसी करने वाले कालनेमी सरीखे तथाकथित आज के समाज सेवियों की बुद्धि- शुद्धि लिए श्रद्धेय नारायण देसाई पर यह लेख सुन्दरकाण्ड ही नहीं समूचा मानस पाठ है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें