पांच साल पहले आज के ही दिन एक राहगीर को संकटमोचन असि नदी पुलिया के पास उसको यह समझाने में कि यह नदी है ,,यह अंकुरित हुआ कि क्यों न इसके उद्धार की लड़ाई लड़ी जाय । जिसके निमित्त काशी के युवाओं और बुद्धिजीवियों की एक टोली "असि बचाओ संघर्ष समिति "ने संघर्ष का ऐलान किया । लम्बी लड़ाई चली । इस आंदोलन ने देश के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर आला अधिकारियों तक को बखूबी से झकझोरा । जगजाहिर है की कोई भी आंदोलन जब गति पकड़ता है तो उसमे अपना कोई स्वार्थ और भविष्य तलाश रहे ताक लगाये बैठे लोगों की जमात भी हाजिर होती है । ये आंदोलन भी इससे अछूता नहीं रह पाया । बंद कमरे में एक बोतल पानी रख कर नदियों के सुधर और उद्धार की बात करने वाले कालनेमी प्रकृति के तथाकथित जल वैज्ञानिकों की फ़ौज खड़ी हो गयी ,,तालाब और झील पाट कर ही मॉल नुमा विद्यालय चलाने वाले नवोदित शिक्षाविद भी इसमें नाम लिखने की कोशिश से वंचित नहीं रहे । असि बचाओ संघर्ष समिति के अथक प्रयास और संघर्षों का ही रंग लाना था कि प्रदेश सरकार ने असि के उद्धार के लिए ८. ८ आठ करोड़ अस्सी लाख रूपये जारी किये । इस धन राशि के निर्गत होने की खबर अखबारों आई नहीं कि असि के बचाने वालों की बाढ़ आ गयी । ऐसे गिरोह जो सरकारी पैसों के लिए और उनके बल पर आंदोलन करने का भ्रम फैलाते नजर आते हैं ,,उन गिरोहों की सक्रियता बढ़ गयी । ये शायद प्रशासनिक मोहरे थे जो भोथरा करने के लिए साजिशन भेजे गए थे ।
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