बीएचयू के कल के दीक्षांत समारोह में छात्रों को कुरता पायजामा और पगड़ी तथा छात्राओं को साड़ी के लिबास में देख कर काफी प्रसन्नता हो रही थी । याद आया की इसी लिबास की मांग करते हुए सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्रों को काफी मशक्कत करनी पडी थी । बीएचयू में भी यह शुरुआत प्रौद्योगिकी संस्थान से की गयी थी । बहरहाल सब कुछ शानदार रहा । लेकिन एक बात चाह के भी नहीं रोक पा रहा । दीक्षांत के दिन जितना शानदार अंदाज में इस पोशाक को हम प्रस्तुत कर रहे हैं ,,यह बाकि के जीवन के लिए पिछड़ेपन का द्योतक भला कैसे हो जाता है । यही छात्र उसी संस्थान में अपने दीक्षांत के पोशाक को आदर्श मानते हुए यदि नौकरी का साक्षात्कार देने चला जाता है ,तो साक्षात्कार लेने वाले के दिमाग में इस वस्त्र के प्रति वही सार्थक ऊर्जा क्यों नहीं आ पाती ।
इसे किसी तरह के विरोध के नजरिये से न देखें । यह मनन का विषय है । हमें इन्तजार है ,कुरता पायजामा और पगड़ी में लिपटे डाक्टर और इंजीनियर देखने का ।
इसे किसी तरह के विरोध के नजरिये से न देखें । यह मनन का विषय है । हमें इन्तजार है ,कुरता पायजामा और पगड़ी में लिपटे डाक्टर और इंजीनियर देखने का ।