सुबह -सुबह आँख मीजते हुए चाय का प्याला हाथ में लिए अखबार पढ़ने का अपना आनंद ही कुछ और है./उसमे अगर कही किसी स्कूल - कोलेज की अल्लुम्नी मीट का जिक्र हो तो बात थोड़ी और मजेदार हो जाती है/ओ पुराने लोगो का एक साथ होना भला किसका मन नहीं लुभा देता है/
परन्तु अगर हम अपनी निःस्वार्थ आखों से इन पुरातन छात्र सम्मेलनों पर दृष्टि डालें तो पाएंगे की इनमे शरीक होने वाले कुछ खास लोग ही होते हैं,जो किसी क्षेत्र विशेष में चमत्कारी स्थिति रखते हैं ,और जिन्हें अपना पुराना छात्र बता कर ये स्कूल कॉलेज उनका नाम अपने व्यवसाय में भजते हैं/अन्यथा क्या किसी संस्था विशेष के सारे छात्र अच्छी स्थिति में ही होते है,अगर नहीं तो ,समुचित पहचान न बना पाने वाले किसी गरीब प्राचीन छात्र को क्यों आमंत्रित कर एक नई मिशल क्यों नहीं कड़ी की जाती है,/शायद अपने पुराने मित्रों के माध्यम से किसी गुमनाम साथी जिंदगी जाये/
अतः अनुरोध ही नहीं सलाह भी है अपने शान शौकत का डंका बजानेवाले इन आधुनिक भारत के तत्कालीन नुमैन्दों से की इस अल्लुम्नी मीट को अर्थपूर्ण बनाये उनके खान्दहारो को सहेज कर न की छतों को उजार कर या नई बहुमंजिली ईमारत खरीद कर/ सबका भला होगा,तभी राष्ट्र का भला होगा और राष्ट्र का भला होगा तभी हम अपना गर्दन शान से ऊचा कर सकते हैं/
is per koi comment abhi tak nahi aaya aur yahi blog aapka khojne per samse pahle aata hai to hamne socha ki kuch comment de dale ..-Uma Pati
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