गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
सोमवार, 19 अप्रैल 2010
बरबादियों का जश्न मानते चलो चलें
हमको भी मालूम है जन्नत की हकीकत ग़ालिब ,
दिल को बहलाने का ये ख्याल अच्छा है।
आज के राजनैतिक जामें में जहाँ हर व्यक्ति अपने को छला सा महसूस कर रहा है वहां नेताओं के अविश्वसनीयता भरे कदम उनके शक को हकीकत में बदल देते हैं.आज देश की माली हालत किसी से छिपी नहीं है,दुर्दशा और बेकरियां किलकारियां मार रही हैं लेकिन देश की राष्ट्रीय नीति से जुड़े हुए लोग अपनी राजनैतिक एकजुटता का प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं.कहीं कोई जम्मू में अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिल रहा है तो कोई मिशन २०१२ में परेशां प्रदेश भ्रमण करा रहा है.और सारे नेता उनके पीछे-पीछे भीड़ बढ़ने का काम कर रहे हैं. सबकी नैतिकता चुनाओं में ही समाहित है क्योंकि सबका एक मात्र उद्देश्य विधायक और सांसद बनाना है,कोई भी ऐसा नहीं है जो नेता बनना चाहता हो ,पहले उद्देश्य स्पस्ट होना जरूरी है सांसद और विधायक तो आप विशेष कर आज के परिस्थिति में बिना नेतागिरी के भी बन सकते है.तो पहले यह तय होना चाहिए,
नेता होना ज्यादे बड़ा काम है बनस्पत की विधायक बनना.देश में जितने भी बड़े चेहरेहुए चाहे वो गाँधी रहे हो चाहे वो जयप्रकाश रहे हों चाहे वो लोहिया रहे हों वो नेता बने कभी मंत्री विधायक बनाने को तवज्जो नहीं दिया,और जब जब कोई बदलाव आया तो इन्ही लोगों के द्वारा।
आज इन्ही लोगों का नाम भजने का काम करने वाले प्रधानमंत्री तक कुर्सी पर सत्तासीन हुए.पर आज देश में न तो कोई आन्दोलन है न ही कोई नीति है शिवाय स्वार्थ के.हँसी आती है पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की दुखद हत्या के
बाद बीबीसी ने एक बड़ा बढियां कमेन्ट दिया था की चंद्रशेखर एक नेता हैं जिसके पास कोई पार्टी नहीं है और कांग्रेस एक पार्टी है जिसके पास कोई नेता नहीं है.शायद चंद्रशेखर का भी अब अभाव हो गया .और देश में सब मंत्री और विधायक,सांसद बनाने वाले लोग है,जिनसे राष्ट्र नहीं चला करते ,ये एक सबसे अहम् सवाल है.
दिल को बहलाने का ये ख्याल अच्छा है।
आज के राजनैतिक जामें में जहाँ हर व्यक्ति अपने को छला सा महसूस कर रहा है वहां नेताओं के अविश्वसनीयता भरे कदम उनके शक को हकीकत में बदल देते हैं.आज देश की माली हालत किसी से छिपी नहीं है,दुर्दशा और बेकरियां किलकारियां मार रही हैं लेकिन देश की राष्ट्रीय नीति से जुड़े हुए लोग अपनी राजनैतिक एकजुटता का प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं.कहीं कोई जम्मू में अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिल रहा है तो कोई मिशन २०१२ में परेशां प्रदेश भ्रमण करा रहा है.और सारे नेता उनके पीछे-पीछे भीड़ बढ़ने का काम कर रहे हैं. सबकी नैतिकता चुनाओं में ही समाहित है क्योंकि सबका एक मात्र उद्देश्य विधायक और सांसद बनाना है,कोई भी ऐसा नहीं है जो नेता बनना चाहता हो ,पहले उद्देश्य स्पस्ट होना जरूरी है सांसद और विधायक तो आप विशेष कर आज के परिस्थिति में बिना नेतागिरी के भी बन सकते है.तो पहले यह तय होना चाहिए,
नेता होना ज्यादे बड़ा काम है बनस्पत की विधायक बनना.देश में जितने भी बड़े चेहरेहुए चाहे वो गाँधी रहे हो चाहे वो जयप्रकाश रहे हों चाहे वो लोहिया रहे हों वो नेता बने कभी मंत्री विधायक बनाने को तवज्जो नहीं दिया,और जब जब कोई बदलाव आया तो इन्ही लोगों के द्वारा।
आज इन्ही लोगों का नाम भजने का काम करने वाले प्रधानमंत्री तक कुर्सी पर सत्तासीन हुए.पर आज देश में न तो कोई आन्दोलन है न ही कोई नीति है शिवाय स्वार्थ के.हँसी आती है पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की दुखद हत्या के
बाद बीबीसी ने एक बड़ा बढियां कमेन्ट दिया था की चंद्रशेखर एक नेता हैं जिसके पास कोई पार्टी नहीं है और कांग्रेस एक पार्टी है जिसके पास कोई नेता नहीं है.शायद चंद्रशेखर का भी अब अभाव हो गया .और देश में सब मंत्री और विधायक,सांसद बनाने वाले लोग है,जिनसे राष्ट्र नहीं चला करते ,ये एक सबसे अहम् सवाल है.
सोमवार, 12 अप्रैल 2010
शिक्षा का अधिकार एक राजनैतिक छलावा
समान शिक्षा का अधिकार इस सरकार का सबसे अहम् प्रयास दिख रहा है.जिसकी उपयोगिता महज सरकार को लूटने लुटाने के अलावा और कुछ होती नहीं नजर आ रही है.निश्चय ही ग्रामीणांचल में तेजी से स्कूल खोले जा रहे हैं,शिक्षा मित्रों इत्यादि की सीधी भर्तियाँ भी की जा रही हैं,लेकिन क्या वाकई इससे शैक्षणिक विकास हो पायेगा तो कह पाना कठिन है.समान शिक्षा का महज़ इतना ही अर्थ नहीं है।
आखिर क्यों गिर रहा है सरकारी संस्थाओं का शिक्षा स्तर और व्यक्तिगत संस्थान फल फूल रहे हैं.कारन कि शिक्षा में आज भी भयंकर भेदभाव है,एक भी सरकारी प्राइमरी स्कूल का अध्यापक अपने बच्चे को उस स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहता जहाँ कि रोटी वो खा रहा है कारन कि वो वहां क्या पढाता है यह उसे पता है.तो क्या यही शिक्षा सुधार है और इसी के बल बूते हम शैक्षणिक भारत कि नीव रख रहे हैं.
सच तो यह है कि जब तक जिलाधिकारी और चपरासी के लड़के एक साथ एक स्कूल में नहीं पढेंगे तब तक ये संभव नहीं है.इससे दोनों ही चीजे सुधरेंगी .जब जिलाधिकारी का लड़का स्कूल में पढ़ रहा होगा तो अध्यापक कि क्या मजाल कि पढाये न और दूसरा कि परस्पर संस्कृतियों के मेल से ये लाभ संभव हो पायेगा कि बड़े बाप का बेटा भी जमीनी चीजों को जान सकेगा और छोटे घर वाले बड़े लोगों के बीच रहना.तन जब कृष्ण और सुदामा एक साथ पढेंगे तो वो समान शिक्षा का अधिकार होगा अन्यथा ये महज एक राजनैतिक छलावा और सरकारी दोहन के अलावा कुछ भी नहीं है.
आखिर क्यों गिर रहा है सरकारी संस्थाओं का शिक्षा स्तर और व्यक्तिगत संस्थान फल फूल रहे हैं.कारन कि शिक्षा में आज भी भयंकर भेदभाव है,एक भी सरकारी प्राइमरी स्कूल का अध्यापक अपने बच्चे को उस स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहता जहाँ कि रोटी वो खा रहा है कारन कि वो वहां क्या पढाता है यह उसे पता है.तो क्या यही शिक्षा सुधार है और इसी के बल बूते हम शैक्षणिक भारत कि नीव रख रहे हैं.
सच तो यह है कि जब तक जिलाधिकारी और चपरासी के लड़के एक साथ एक स्कूल में नहीं पढेंगे तब तक ये संभव नहीं है.इससे दोनों ही चीजे सुधरेंगी .जब जिलाधिकारी का लड़का स्कूल में पढ़ रहा होगा तो अध्यापक कि क्या मजाल कि पढाये न और दूसरा कि परस्पर संस्कृतियों के मेल से ये लाभ संभव हो पायेगा कि बड़े बाप का बेटा भी जमीनी चीजों को जान सकेगा और छोटे घर वाले बड़े लोगों के बीच रहना.तन जब कृष्ण और सुदामा एक साथ पढेंगे तो वो समान शिक्षा का अधिकार होगा अन्यथा ये महज एक राजनैतिक छलावा और सरकारी दोहन के अलावा कुछ भी नहीं है.
गुरुवार, 8 अप्रैल 2010
नक्सलवाद एक समस्या नहीं अपितु समाधान
आज सुबह की चाय की पहली चुश्की ही अखबार की हेड लाइन पढ़ते कड़वा हो गयी /कारण छत्तीसगढ़ में मीडिया के अनुसार छिहत्तर सैनिकों की शहादत/बड़े -बड़े भाषण देने वाले किसी एक नेता का बेटा सीमा पर तो लड़ने जैसी मुर्खता कर नहीं सकता/शायद यही कारण है की कोई भी नेता अपनी सहानुभूति सिर्फ और सिर्फ आर्थिक मदद की मांग के रूप में दिखता है /सत्तधारी पक्ष का नेता रकम बताता है और सत्ता विरोधी दल का सीधे दो गुनी रकम की मांग करता है/जो जितनी राजनीति कर ले लाश पे वो उतना बड़ा नेता है/
क्या इससे ये समस्याएं ख़त्म हो जाएँगी तो कभी नहीं /जरूरत है तो चीजों को देखने के अंदाज बदलने का.इतनी भारी संख्या के नौजवान नकारात्मक उर्जा संचारित कर रहे हैं ,उन्हें मौका नहीं है,अवसर नहीं है,जिसका परिणाम हम लाश के ढेरों के रूप में देख रहे हैं.मैं उन नक्सलवादियों के घटिया कृत्य की कत्तई तरफदारी नहीं कर रहा हु बल्कि ये कहना चाहता हूँ की विचार कितने ही ऊंचे भले क्यों न हो लेकिन यदि उसके रस्ते हत्या और अपराधो से जुड़े हो तो उसे कदापि जायज नही कहा जा सकता । हा जरुरत है तो इनके सकारात्मक दिशा निर्देशन की जिसका लाभ पुरे रास्त्र को मिल सकता है । आज देश की संसद और बिधान सभाएं अपराधियों से भरी पड़ी है और हम विकास की तरफ अग्रसर होते हुए कहे जा रहे है तो अगर इन नक्सलवादी सिपाहियों को सीमा पर लगा दिया जाय तो क्या पाकिस्तान और चीन जैसी समस्याए हमें परेशां कर पाएंगी ।
अतः नक्सलवाद एक समस्या नहीं अपितु समाधान है जरुरत है तो अच्छे पहल की ....
क्या इससे ये समस्याएं ख़त्म हो जाएँगी तो कभी नहीं /जरूरत है तो चीजों को देखने के अंदाज बदलने का.इतनी भारी संख्या के नौजवान नकारात्मक उर्जा संचारित कर रहे हैं ,उन्हें मौका नहीं है,अवसर नहीं है,जिसका परिणाम हम लाश के ढेरों के रूप में देख रहे हैं.मैं उन नक्सलवादियों के घटिया कृत्य की कत्तई तरफदारी नहीं कर रहा हु बल्कि ये कहना चाहता हूँ की विचार कितने ही ऊंचे भले क्यों न हो लेकिन यदि उसके रस्ते हत्या और अपराधो से जुड़े हो तो उसे कदापि जायज नही कहा जा सकता । हा जरुरत है तो इनके सकारात्मक दिशा निर्देशन की जिसका लाभ पुरे रास्त्र को मिल सकता है । आज देश की संसद और बिधान सभाएं अपराधियों से भरी पड़ी है और हम विकास की तरफ अग्रसर होते हुए कहे जा रहे है तो अगर इन नक्सलवादी सिपाहियों को सीमा पर लगा दिया जाय तो क्या पाकिस्तान और चीन जैसी समस्याए हमें परेशां कर पाएंगी ।
अतः नक्सलवाद एक समस्या नहीं अपितु समाधान है जरुरत है तो अच्छे पहल की ....
सदस्यता लें
संदेश (Atom)