सोमवार, 19 अप्रैल 2010

बरबादियों का जश्न मानते चलो चलें

हमको भी मालूम है जन्नत की हकीकत ग़ालिब ,
दिल को बहलाने का ये ख्याल अच्छा है।
आज के राजनैतिक जामें में जहाँ हर व्यक्ति अपने को छला सा महसूस कर रहा है वहां नेताओं के अविश्वसनीयता भरे कदम उनके शक को हकीकत में बदल देते हैं.आज देश की माली हालत किसी से छिपी नहीं है,दुर्दशा और बेकरियां किलकारियां मार रही हैं लेकिन देश की राष्ट्रीय नीति से जुड़े हुए लोग अपनी राजनैतिक एकजुटता का प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं.कहीं कोई जम्मू में अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिल रहा है तो कोई मिशन २०१२ में परेशां प्रदेश भ्रमण करा रहा है.और सारे नेता उनके पीछे-पीछे भीड़ बढ़ने का काम कर रहे हैं. सबकी नैतिकता चुनाओं में ही समाहित है क्योंकि सबका एक मात्र उद्देश्य विधायक और सांसद बनाना है,कोई भी ऐसा नहीं है जो नेता बनना चाहता हो ,पहले उद्देश्य स्पस्ट होना जरूरी है सांसद और विधायक तो आप विशेष कर आज के परिस्थिति में बिना नेतागिरी के भी बन सकते है.तो पहले यह तय होना चाहिए,
नेता होना ज्यादे बड़ा काम है बनस्पत की विधायक बनना.देश में जितने भी बड़े चेहरेहुए चाहे वो गाँधी रहे हो चाहे वो जयप्रकाश रहे हों चाहे वो लोहिया रहे हों वो नेता बने कभी मंत्री विधायक बनाने को तवज्जो नहीं दिया,और जब जब कोई बदलाव आया तो इन्ही लोगों के द्वारा।
आज इन्ही लोगों का नाम भजने का काम करने वाले प्रधानमंत्री तक कुर्सी पर सत्तासीन हुए.पर आज देश में न तो कोई आन्दोलन है न ही कोई नीति है शिवाय स्वार्थ के.हँसी आती है पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की दुखद हत्या के
बाद बीबीसी ने एक बड़ा बढियां कमेन्ट दिया था की चंद्रशेखर एक नेता हैं जिसके पास कोई पार्टी नहीं है और कांग्रेस एक पार्टी है जिसके पास कोई नेता नहीं है.शायद चंद्रशेखर का भी अब अभाव हो गया .और देश में सब मंत्री और विधायक,सांसद बनाने वाले लोग है,जिनसे राष्ट्र नहीं चला करते ,ये एक सबसे अहम् सवाल है.

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