आज सुबह की चाय की पहली चुश्की ही अखबार की हेड लाइन पढ़ते कड़वा हो गयी /कारण छत्तीसगढ़ में मीडिया के अनुसार छिहत्तर सैनिकों की शहादत/बड़े -बड़े भाषण देने वाले किसी एक नेता का बेटा सीमा पर तो लड़ने जैसी मुर्खता कर नहीं सकता/शायद यही कारण है की कोई भी नेता अपनी सहानुभूति सिर्फ और सिर्फ आर्थिक मदद की मांग के रूप में दिखता है /सत्तधारी पक्ष का नेता रकम बताता है और सत्ता विरोधी दल का सीधे दो गुनी रकम की मांग करता है/जो जितनी राजनीति कर ले लाश पे वो उतना बड़ा नेता है/
क्या इससे ये समस्याएं ख़त्म हो जाएँगी तो कभी नहीं /जरूरत है तो चीजों को देखने के अंदाज बदलने का.इतनी भारी संख्या के नौजवान नकारात्मक उर्जा संचारित कर रहे हैं ,उन्हें मौका नहीं है,अवसर नहीं है,जिसका परिणाम हम लाश के ढेरों के रूप में देख रहे हैं.मैं उन नक्सलवादियों के घटिया कृत्य की कत्तई तरफदारी नहीं कर रहा हु बल्कि ये कहना चाहता हूँ की विचार कितने ही ऊंचे भले क्यों न हो लेकिन यदि उसके रस्ते हत्या और अपराधो से जुड़े हो तो उसे कदापि जायज नही कहा जा सकता । हा जरुरत है तो इनके सकारात्मक दिशा निर्देशन की जिसका लाभ पुरे रास्त्र को मिल सकता है । आज देश की संसद और बिधान सभाएं अपराधियों से भरी पड़ी है और हम विकास की तरफ अग्रसर होते हुए कहे जा रहे है तो अगर इन नक्सलवादी सिपाहियों को सीमा पर लगा दिया जाय तो क्या पाकिस्तान और चीन जैसी समस्याए हमें परेशां कर पाएंगी ।
अतः नक्सलवाद एक समस्या नहीं अपितु समाधान है जरुरत है तो अच्छे पहल की ....
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