काशी हिन्दू विश्व्विद्यालय में पिछले पंद्रह सालों में पंद्रह गुना फीस बढ़ी है । यह फीस वृद्धि अभी भी हुक्मरानों को संतुष्ट नहीं कर पायी है । यह अभी और बढ़ेगी । जब तक यहाँ गरीब तपके के बच्चों का दिखना नहीं बंद हो जाता तब तक यह बढ़त प्रक्रिया अनवरत चलती रहेगी । छात्र जीवन से सुनते आये है कि जितना कई छोटे देशों का राष्ट्रीय बजट होता है उससे कही अधिक इस विश्विविद्यालय का बजट है ,,फिर भी यहाँ के कर्ता धर्ताओं को संतोष में कभी नहीं देखा जा सकता है । यहाँ पत्थर की अदालत है और शीशे की गवाही है ,,, अधिक धन यहाँ के लिए इस कदर समस्या बन जाता है कि कभी कभी खर्चे का ब्यौरा विश्व्विद्यालय का प्रचार रेडियो मंत्रा आदि पर करने के झूठे एवं पापगामी हरकत की बोध कराते हैं । छात्रों का पुख्ता मंच इन्हे वापस लौटाने में इनकी रूह कापती है । कुछ छात्र भी इन कुलपतियों के चट्टे बट्टों के चट्टे बट्टे बनने में अपने को भगयवान समझते हैं । अगर यह पूर्वनियोजित एवं प्रोफेसरान संचालित भीड़ होगी तो फिर कुछ नहीं मिलने वाला अन्यथा ये वापस लौटेंगे ,,मैं क्या गूंगा बहरा भी छात्रों के साथ होता है । वहीं दूसरी तरफ इस कुल के हर तीन साल पर बदल रहे पतियों एवं देवरों के जमाकोषों में बढ़ते शून्य पर भी निगाहें होनी चाहिए ,,,उनके खाते भी सीज होने चाहिए ,,घोटाला डिटेक्टिव भी यहाँ लगना चाहिए ,इसके पहले ये नहीं सुधरेंगे और छात्र लाठी खाते रहेंगे और वे काजू ।
बुधवार, 29 जनवरी 2014
सोमवार, 20 जनवरी 2014
काशी हिन्दू विश्व्विद्यालय को महज एक शिक्षण संस्थान नहीं अपितु एक चिंतन स्थल के रूप में देखा जाता है ,चिंतनशीलता एवं लोकतान्त्रिक तथा राजनैतिक भारत को सुसंगठित एवं मजबूत करने कि दृष्टि से ही यहाँ राधाकृष्णन से लेकर आचार्य नरेंद्रदेव ,जैसे लोग स्वयं महामना के उसूलों के नजदीक थे ,,कारण राष्ट्र निर्माण सबके केंद्रीय भूमिका में था । लेकिन आज का विश्व्विद्यालय लगता है लोकतान्त्रिक ढांचे को अपना दुश्मन मानता है ,चिंतनशीलता एवं समजवादिता का अपने को अंग नहीं समझता है ,,कितना हास्यास्पद है कि एक खुद में बड़ा समाज समाज से या समाजशीलता से ही मुह मोड़ने में अपनी तटस्थता का मिथ्या सबूत देने को आतुर है । कुछ दिन पहले अखबारो के माध्यम से जान पड़ा कि प्रो आनंद कुमार जो खुद एक जाने माने समाजशास्त्री हैं ,चिंतक हैं ,प्रोफेसर शब्द से तो विश्व्विद्यालय के नीतिको को खासा प्रेम है वो इस तमगे से भी जड़ित हैं उन्हें भाषण के लिए प्रवेश नहीं दिया गया ,,उन्हें आम आदमी पार्टी से बनारस लोकसभा लड़ने की सम्भावना के तहत । मैं नहीं जानता आनन्द कुमार जी यहाँ से चुनाव लड़ेंगे या नहीं पर यह जरूर जानता हूँ कि कितने लोग यहाँ से भाषण करने के बाद विभिन्न जगहों से चुनाव लड़े हैं या लड़ते हैं ,,,आजादी के संग्राम में भी यहाँ एक तरफ गांधीवादियों की तो दुसरे तरफ क्रांतिकारियों के ठिकानो और वैचारिक विभिन्नताओं के बाद भी एकता की अनेकानेक कहानियां मिलती हैं । फिर किस संविधान को आड़े आते देख किसी विद्वान ,किसी राजनेता को या किसी समाजशास्त्री को विश्व्विद्यालय प्रशासन बेईज्जत करता है । और फिर किस मुह से पुनः आमंत्रण देता है और खातिरदारी करता है जब वो कही सत्तासीन हो जाता है । क्या यहाँ लोकतान्त्रिक चर्चा ,,राजनैतिक चर्चा अपराध घोषित किया जा चूका है ।
बुधवार, 8 जनवरी 2014
सेवा में
श्री श्यामदेव राय चौधरी
माननीय विधायक
शहर दक्षिणी
शहर दक्षिणी
वाराणसी
महोदय
विश्व की प्रचीनतम धार्मिक एवं पौराणिक नगरी एवं शिक्षा की निर्विवादित राजधानी काशी को वाराणसी नाम देने वाली नदी असि बरसों से नाले की गाली सुन शहर का गन्दा पानी ढोने को विवश है । इस के उद्धार हेतु कटिबद्ध शहर के युवाओं और बुद्धजीवियों का एक समूह असि बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले सालों से संघर्ष कर रहा है । लेकिन क्षोभ कि दिन प्रतिदिन नदी में इमारतें तनती जा रही हैं । प्रशासनिक उदासीनता इस कदर जारी है मानो नदी की जमीन के कब्जे के लिए उनकी मौन स्वीकृति हो । एक तरफ पूरे विश्व में जल संरक्षण को बढ़ावा देने की बात होती है वही दूसरी तरफ नदियां ही पाटी जाती हैं । जिक्र करना लाजमी होगा कि इस नदी का अति धार्मिक और पौराणिक महत्व रहा है ,जिसका जिक्र महाभारत ,जवालोपनिषद ,वामन पुराण सरीखे तमाम धर्म ग्रंथों में है । धार्मिक महत्व से इतर यह एक तरफ बाढ़ काल में जहा शहर को जलभार से उबारती थी वही दूसरी तरफ जल स्तर को नियंत्रित करने में महत्व्पूर्ण भूमिका अदा करती है । इसे आज कही चुपचाप प्रशासन पाइप से प्रवाहित करने की जुगत में है तो कही ,,इसके किनारे पचास मीटर के दायरे को हरित पट्टी घोषित कर निर्माण प्रतिबंधित करने की बात कर पल्ला झाड़ लेती है ।
अतः आप महानुभाव से निवेदन है कि काशी की स्मिता और धार्मिक पहचान बरकरार रखने के हमारे इस पहल को नैतिक समर्थन व आशीर्वाद दें । जिससे नदी को उसकी धार और बहाव मिल सके ,,काशी सुरक्षित और संरक्षित हो सके ।
सधन्यवाद
गणेश शंकर चतुर्वेदी
(संयोजक )
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