काशी हिन्दू विश्व्विद्यालय में पिछले पंद्रह सालों में पंद्रह गुना फीस बढ़ी है । यह फीस वृद्धि अभी भी हुक्मरानों को संतुष्ट नहीं कर पायी है । यह अभी और बढ़ेगी । जब तक यहाँ गरीब तपके के बच्चों का दिखना नहीं बंद हो जाता तब तक यह बढ़त प्रक्रिया अनवरत चलती रहेगी । छात्र जीवन से सुनते आये है कि जितना कई छोटे देशों का राष्ट्रीय बजट होता है उससे कही अधिक इस विश्विविद्यालय का बजट है ,,फिर भी यहाँ के कर्ता धर्ताओं को संतोष में कभी नहीं देखा जा सकता है । यहाँ पत्थर की अदालत है और शीशे की गवाही है ,,, अधिक धन यहाँ के लिए इस कदर समस्या बन जाता है कि कभी कभी खर्चे का ब्यौरा विश्व्विद्यालय का प्रचार रेडियो मंत्रा आदि पर करने के झूठे एवं पापगामी हरकत की बोध कराते हैं । छात्रों का पुख्ता मंच इन्हे वापस लौटाने में इनकी रूह कापती है । कुछ छात्र भी इन कुलपतियों के चट्टे बट्टों के चट्टे बट्टे बनने में अपने को भगयवान समझते हैं । अगर यह पूर्वनियोजित एवं प्रोफेसरान संचालित भीड़ होगी तो फिर कुछ नहीं मिलने वाला अन्यथा ये वापस लौटेंगे ,,मैं क्या गूंगा बहरा भी छात्रों के साथ होता है । वहीं दूसरी तरफ इस कुल के हर तीन साल पर बदल रहे पतियों एवं देवरों के जमाकोषों में बढ़ते शून्य पर भी निगाहें होनी चाहिए ,,,उनके खाते भी सीज होने चाहिए ,,घोटाला डिटेक्टिव भी यहाँ लगना चाहिए ,इसके पहले ये नहीं सुधरेंगे और छात्र लाठी खाते रहेंगे और वे काजू ।
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