गुरुवार, 9 सितंबर 2010

अयोध्या मसले के आने वाले फैसले में फिर भविष्य तलाशने लगे अस्तित्व के खतरे से जूझते लोग

बाबरी मस्जिद विवाद लगभग दम तोड़ चुका था । उसके फैसले का न तो किसी सामान्य जनता को इन्तजार था ,न तो कोई रूचि। लेकिन इसको मीडिया द्वारा इतना प्रचारित करा दिया गया कि लोग अपना फिर दिमाग खपाना शुरू कर दिए। सच यह है कि अगर चुपचाप यह निर्णय सामान्य ख़बरों कि तरह अखबार में आजाता तो शायद किसी का ध्यान भी नहीं जाता ,बाकि प्रतिक्रिया कि तो बात हो छोडिये।
लेकिन ऐसा नहीं हो पाया पहले से ही इतनी मुस्तैदी और हो हल्ला दिखाया जाने लगा कि न चाहते हुए भी लोग कुछ कर बैठे। ऐसे ही है जैसे किसी के मरने की तैयारी में पहले से ही कफ़न खरीद कर रख लिया जाय। अगर कोई हो हल्ला होता है,कोई विवाद होता है तो सबसे पहले मीडिया और चाँद नेताओं को जो पहले से ही शव-यात्रा के लिए कमर कास रहे हैं,उनको हमेशा-हमेशा के लिए जेल की काल कोठरी में डाल देना चाहिए जिससे फिर किसी जीवित के मरने के तैयारी करने की जुर्रत और हिम्मत जुटाने में इनकी रूह काप जाय ।

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