गुरुवार, 16 सितंबर 2010

छात्र-युवा महापंचायत ,क्या खोया क्या पाया ?

१४ सितम्बर ,भारतीय हिंदी दिवस .और ज्ञानपुर का छात्र युवा सम्मलेन संयोग से एक ही दिन था या जान बूझ कर रखा गया था ,भगवान ही जाने। मेघ के प्रसन्न होने से कार्यक्रम गीला होने का बहाना भी मिल ही गया। लेकिन मै चाह कर भी चीजों को बड़े सकारात्मक नजरिये से नहीं देख पाया। वहां मंचासीन नेता जी लोग ज्यादा थे श्रोता कम थे ,देर से पहुचने और श्रोता गण की कमी देख मै श्रोता बन कर ही कार्यक्रम के सफलता को निहारना ज्यादा उचित समझा। अतः श्रोताओं की कतार में जा बैठा,साथ में हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र राजनीति के अपने जमाने के थिंक टैंक रहे चौधरी राजेन्द्र जी थे वे भी नीचे श्रोताओं में ही बैठने पर अड़े थे। हालांकि संचालन कर रहे किसी व्यक्ति से माइक लेकर अरविन्द शुक्ल ने हम लोगों को कई बार मंच पर आमंत्रित किया,लेकिन किसी द्वेष वश नहीं यूं ही हम लोग नीचे ही रहे । इलाहाबाद के छात्रनेता रहे अजीत यादव का भाषण चल रहा था की पानी जोर से आ गयापूरा पंडाल खाली हो गया ,श्रोता बस दो ,मैं और चौधरी राजेन्द्र जी। कई बार संचालक के कहने और अनुरोध के बाद हम लोगों को कहना पड़ा कि जब आप पानी से भाग रहे हो भाई तो आन्दोलन करने जा रहे हो ,अभी गोली चल जायेगी तो क्या करोगे?रही सही भाषण का निष्कर्ष फिर मैंने देखा वही था जो छात्र राजनीति के लोगको बीसों सालों से करता देख रहा हूँ। किसी ने किसी को पचासों टिकट दिलाने कि हैसियत में लाने का प्रयास किया तो किसी द्वारा मंच की मर्यादाये भी तोडी गयीं । एक विकास तिवारी जो इलाहाबाद से आये थे कि बाते काफी तर्क संगत और विचारणीय समझ में आयीं ,बाकी सबका सिर्फ स्वार्थ था।

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