गुरुवार, 23 सितंबर 2010

पुलिसिया नाटक से तंग लोग कहीं वाकई विद्रोह न मचाने लगें

२४ सितम्बर को अयोध्या मामले का फैसला आने का इंतज़ार पता नहीं जनता कर रही है या नहीं लेकिन पुलिसवालों को इसका इंतज़ार लग रहा है बड़ी बेसब्री से है। अपने प्रचार काटो ये हद कर दिए। कहीं दरोगा को विद्रोही नेता बना कर दबोचने की प्रैक्टिस तो कहीं पुलिस के बड़े अधिकारीयों द्वारा अपने सिपाहियों पर पत्थर मार कर उनकी काबिलियत आकना जहाँ एक तरफ प्रदर्शन की अति है ,वहीं दूसरी तरफ वर्दी पहनाने के यहाँ के तरीके पर भी प्रश्नचिन्ह है। की क्या भर्ती के बाद इन सिपाहियों को ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। अगर एकाएक कोई आफत खडी हो गयी तो ये काठ के सिपाही क्या करेंगे।
वैसे तो मायावती सरकार अपने हिम मत के डींगे हांके जा रहे हैं लेकिन परोक्ष रूप से स्कूल,कालेज या हॉस्टल घूम-घूम कर बंद कराये जा रहे हैं। अगर ये कहा जाय कि जनता कुछ भी नहीं करने जा रही इन पुराने मुद्दों पर लेकिन अगर कुछ अस्वाभाविक घटना निर्णय आने के बाद होती है तो उसके लिए शत-प्रतिशत बहन जी के सिपहसालार जिम्मेदार होंगे। जिनको जनता कि रहनुमाई तो छोडिये अपनी वर्दी बचाना मुश्किल हो जायेगा।

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