रविवार, 5 सितंबर 2010

किसानो के देश भारत में किसानो की बदहाली

बचपन से ही एक रटा -रटाया जूमला पढता चला आ रहा हूँ कि भारत एक कृषि प्रधान देश है ,जिसकी सत्तर प्रतिशत जनसँख्या आज भी गावों में निवास करती है ,जिसकी आजीविका कृषि पर निर्भर है। मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि देशवासियों का अन्नदाता भी किसान ,सीमा पर देश कि सुरक्षा के लिए सीने पर गोलियां भी खाता किसान ,फिर भी उस किसान कि ये बदहाली देश में क्यों है कि वो कभी अपने अधिकारों कि लड़ाई में सरकार कि लाठियां खाता है तो कभी गोलियां। शायद देश के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का यह नारा कि "जय -जवान,जय-किसान "कहीं न कहीं इसी मनोभाव से प्रभावित था।
आज अलीगढ़ के जमुना एक्सप्रेस कि बात चल रही थी वह किसानो के साथ जुर्म हुआ,बाद में राजनैतिक पार्टियाँ अपनी रोटी-सेकने के चक्कर में उनके साथ हो लिए। कभी सिंगूर तो कभी नैनो का विवाद। ये दर्शाता है कि आजादी के तिरसठ सालो बाद भी हमारे देश में किसानो के जमीन के अधिग्रहण से सम्बंधित कोई पुख्ता नीति नहीं बनी है। गुजरात में तो ऐसे विवाद नहीं होते कारण शायद वह जब ऐसे कारखाने या किसी तरह के प्रोजेक्ट लोअगाये जाते है तो किसानो के साथ बैठ कर सलाह मशविरा किया जाता है,उन्हें उनकी जमीन का उचित मुआवजा दिया जाता है। तो बाकी के प्रान्तों में ऐसा क्यों नहीं होता। हाँ एक बात जरूर है कि इसमें किसानो को भी अपनी जिद छोड़ इतना अधिक मांग नहीं रखनी चाहिए जो देय न हो।
देश के राजनेताओं का हाल यह है कि एक -एक सन्देश यात्राओं में करोड़ों रूपये खर्च हो रहे है और किसानो को मूर्ख बना उनके स्वार्थ के साथ टोपी पहनी जा रही.है। एक कांग्रेसी मित्र ने बताया जो प्रदेश पदाधिकारी भी है कि राहुल गाँधी के अहरौरा आगमन पर दस करोड़ खर्च हुए थे। क्या राहुल गाँधी ये दस करोड़ अगर दो चार महीने वही अहरौरा में रुक कर ये पैसा अपने हाथ से वहा के विकास में लगा देते तो क्या उनको अलग से कोई सन्देश यात्रा भी करनी पड़ती क्या?लेकिन नहीं इनको कितनी कलावती के सूखी रोटी को संसद में प्रचारित करना है,वह कैसे होगा। रत कर भासन देने वालों से आखिर कितनी उम्मीद कि जाय ।
अतः जिसका खा रहे हो उसका तो गावो भी नेताओं ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. यही नेता हैं जिन्होंने देश की हालत बद से बद्तर करने का भार उठा रखा है... अच्छी पोस्ट है...

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  2. ganesh ji , zhanse me mat aaiye kisan bhi to neta ho sakte hai , jahan tak muzhe lagta hai kisanwa sab muwawza pakar bhi netagiri par outare hai , aab ek suddh kisan hai kahan - "uma pati"

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