शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

आखिर कहाँ जायेंगे झोलाछाप चिकित्सक और चिकित्सार्थी

आज कल जिसको सुनो वही झोलाछाप चिकित्सकों के खिलाफ खड़ा दिख रहा है। भारत गावों का देश है,दूर दराज के बहुत ऐसे गाँव है जहाँ दूर-दूर तक कोई डिग्रीधारी डाक्टर नहीं है । अगर गलती से स्वास्थ्य सामुदायिक केंद्र स्थापित भी है तो वहां के डाक्टर्स अधिकतर शहरों में रहते है, और शहरके सरकारी अस्पतालों को देख कर ये आसानी से आका जा सकता है की वो कितनी अच्छी सेवा देते होंगे गाँव वालों को। बीमार होने का कोई समय तो होता नहीं लेकिन ये डिग्री धारी डाक्टर लोग इतनी मोटी रकम सरकार से पाते है की इनमे सेवा भाव तो है नहीं, हमेशा इनका झोला उठा रहता है ऐसे में झोलाछाप कह बदनाम किये जाने वाले चिकित्सक ही उनके दुःख के असली सहभागी हो पाते हैं। ये भी सच है की कही-कही इनके ज्य्दाती की कहानियां सुनने को मिलती है।लेकिन अपनी आजीविका के साथ -साथ वे गाव वालों के स्वास्थ्य का भी देख भाल कर लेते है। सरकार हर छह महीने पर अपनी धपोरसंखी आवाज में इनके खिलाफ बिगुल तो फूक देती है,लेकिन क्या कोई ऐसा चिकित्सा का माडल है जिससे आम आदमी को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराया जा सके। तो शायद नहीं। ऐसे में जरूरत है तो इन तथाकथित झोलाछापों को कोई प्राथमिक प्रशिक्षण देकर उपयोग में लाने का अन्यथा घर-घर तक स्वास्थ्य पहुचाने का अभी तक तो कोई माडल नहीं दिखा सरकार के पास,तो क्या गरीब जनता मरेगी,एक बात दूसरी बात की येबड़े डाक्टर सर्दी-बुखार जैसे सामान्य रोगों के लिए भी बिना जांच इत्यादि के इलाज शुरू नहीं करते खर्च के नाम से ही इन गरीबों का बुखार उतर जाता है।

1 टिप्पणी:

  1. sahi bola aapne ..kuch aise profession hai jiski siksha ( education ) dete samy student ka morel knowledge bhi check karna chahiye....sarkar ko chahiye ki doctor ko achhi se achhi salary de aur kisi bhi tarah ki private practice ko bade crime ke category me consider kar ke judjement kare.MILITARY KI TARAH SEPERATE COURT HONA CHAHIYE.

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