सोमवार, 7 फ़रवरी 2011
जातिगत सभाएं राष्ट्रहित में कितनी न्यायोचित
देश पता नहीं विकास कर रहा है कि पीछे जा रहा है ये कह पाना कठिन है। जिस देश में देश की नीतियाँ जातिगत आधार पर बनाई जाती हैं,उसके उद्धार के लिए देर सबेर गाँधी और अब्राहम लिकन जैसे महामानवों का को जन्म लेना ही पड़ता है। गाँधी के देश में इस तरह की विसंगतियां शुरू से ही थी लेकिन बहुत प्रयास और संघर्षों के बाद स्थितियां कुछ सुधरी थीं। लेकिन आजादी के बाद फिर उसी रह पर देश की नीतियां तय की जाने लगी। जोकि किसी भी लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है। मुलायम सिंह यादव के समाजवादी पार्टी के निष्कासित नेता अमर सिंह और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह दो धुर विरोधी लोग एक मंच पर अगर दिखे तो सिर्फ जातीय बोलबाले के लिए। अगर ऐसी जातिगत सभाओं पर संवैधानिक अंकुश नहीं लगे तो वो दिन दूर नहीं जब लोकतंत्र की परिभाषा के परिधि में हमारा देश नहीं होगा। इसका सबको विरोध करना चाहिए खास कर जब कोई नेता जाती के नाम पर लोगो को मुर्ख बनाये तो,उसकी पार्टी तक के भी अस्तित्व को ख़त्म कर देना ही सच्ची लोकतान्त्रिक प्रडाली है।
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kaun aisa neta hai sir jo ki jati ke naam par logon ko murkh nhi banata .
जवाब देंहटाएंplz tell me sir,
Lage rahiye G.S. Sir.
जवाब देंहटाएंKashi ki awaz bankar Kashivasiyo ka isi tarah pratinidhitva karte rahiye.
Hamari shubhkamnaye apke sath hai.
"zaat paat pooche nahi koe hari ko bhaze so hari ka hoe" sufi sant kabeer das
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