मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
मिस्र और लीबिया जैसी शुरुआत की जरूरत है भारत में
मिस्र में तीस बरस से तानाशाही का जलवा बिखेरे सरकार का अठारह दिन के जनांदोलन के बाद नस्त-नाबूद हो जाना लीबिया को भी आत्म बल दिया और उसी तर्ज पर लीबिया के लोगों को भी तानाशाही से मुक्ति मिली। लेकिन भारत गुलाम मानसिकता का एक आजाद देश है जहाँ नाम बड़े और दर्शन छोटे का जुमला शत -प्रतिशत चरितार्थ होता है। यहाँ हर कोई ट्रस्ट है लेकिन सड़क पर उतरने की स्थिति में जनता नहीं दिख रही है। निश्चय ही मिस्र और लीबिया की कहानी आन्दोलनों के इतिहास में सबसे ऊपर की कतार में राखी जाएगी,भारतीय मीडिया उसको चाहे जितना दबा ले। इससे कम अत्याचार पर १९७७ में इस देश के युवाओं ने ऐसे ही अत्याचार के खिलाफ सड़कों पर उतर नया इतिहास रचा था जब कांग्रेस अपने घरों में पराजित हुई थी। अब कितने महगाई और कितने लूट-खसोट और भ्रष्टाचार का इंतजार कर रहे हो देश वासियों भारत मान की आत्मा रो रही है ऐसे गैर जिम्मेदाराना राजनीतक रवैये पर जहा नौनिहाल कार्यालयी आकड़ो से तो मलाई खा रहा है लेकिन दूधमुहे बच्चों का मरना जारी है। अतः उठो ,मिस्र और लीबिया की नक़ल नहीं बल्कि अपने अधिकारों के प्रति एक दिन की मेहनत देश की तस्बीर बदल सकती है जोकि बरसों के लूट -पाट पर भारी पड़ेगा।
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hamare desh me aandolan ki zarurat nahi kewal vote dete samy soojh boojh ki zarurat hai ..aur election system ko jyada se jyada fair bnane ki jarurat hai..sarkar ko public ke diye gye aswasan ke prati badhya karne ki zarurat hai.
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