मंगलवार, 19 अप्रैल 2011
राजनैतिक कार्यक्रम और रैलियां अब विचार नहीं महासंग्राम का सन्देश देते हैं
पहले भी राजनैतिक रेलयान होती थी कार्यक्रम होते थे लेकिन उसे महासंग्राम के आगाज के रूप में नहीं प्रस्तुत किया जाता था .एक तरफ अन्ना इत्यादि सामाजिक कार्यकर्ताओं की सराहना और दूसरी तरफ लड़ाई का महा आमंत्रण ये कैसा राजनीती है भाई। क्या अभी तक देश कम टूटा है जो और लड़ने-लड़ाने का जश्न जारी है,इतने पैसे लगा कर ये रैलियां हो रही है जब की कोई भी इन रैलियों में किसी राजा-महराजा या जमीदार का बेटा नहीं है तो गाहे-बगाहे देश को ही न खोखला बना रहे हो भाई। ऊपर से ईमानदारी का घटिया ढोंग। अगर जोड़ नहीं सकते तो तोड़ने का ठेकेदार तो मत बनो। देश कभी भी किसी के कंधे पर नहीं चला है जो अब चलेगा। जनता को अब तो मंदिर मुद्दा भी आपके हाथ से चला गया अब कौन सा मंदिर बनवा के इन लोगों के भावनाओं के साथ खिलवाड़ की नई शुरुआत करना चाह रहे हैं।
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