अमेरिकी लेखिका जोसफ लेलिवेल्ड द्वारा गाँधी पर लिखी पुस्तक में अभद्र टिप्पड़ी खास कर ऐसे में और विचारणीय हो जाती है जब अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा साहब अपने को गांधीवादी कहने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसके वावजूद उक्त लेखिका का क्षमा मांगनेके बजाय खुद को सही ठहराने और भारत में जिन प्रदेशों में इसके पाबन्दी की चर्चा चल रही है उस पर इस महान लेखिका को भारत को एक लोकतंत्र के रूप में देखने में दिक्कत हो रही है,तो क्या ये मन लिया जाय की ऐसे महात्मा के ऊपर की गयी इस घटिया टिपण्णी से ओबामा भी खुश हैं अन्यथा उनके देश में भी अब तक इस किताब पर रोक लग गयी होती।
वैसे एक बात तो साफ है कि इस लेखिका ने नाम और काम दोनों ही बड़ा अच्छा चुना है। गाँधी का इतना बड़ा वैश्विक कद है कि जो भी उनके नाम से जुदा उसे अमरत्व हाशिल हुआ,चाहे वो नाथूराम गोडसे ही क्यों न हों आज जितने लोग गाँधी को जानते है उतने लोग नाथू को,अंतर इतना ही है कि नाथूराम ने जीवित गाँधी कि हत्या कि थी और लेलिवेल्ड नामक इस महिला ने शहीद गाँधी कि हत्या कर अपना दुकान चलने को सोच शुरू की। किताब तो अब निश्चय ही खूब बिकेगी यह मानव स्वभाव है किरोक लगी चीजों के प्रति हम ज्यादा ही आकर्षित होते हैं। लेकिन इसकी अधिक बिक्री को देख किताब की सफलता के तर और इस तथ्य को सही धर नहीं दिया जा सकता क्योंकि गाँधी को जानने वालों में गाँधी का चरित्र स्थिर है सचल नहीं। एक चीज और की साहित्य जब-जब बदनाम हुआ है साहित्यकार सरनाम हुआ है लेकिन फिर गुमनाम हुआ तो काभी सरेआम न हो सका ।
अतः ऐसे घटिया सोंच और हरकत से बाज आ इस पुस्तक के हर रोक का चौतरफा स्वागत होना चाहिए,वैसे भी गाँधी कोई झुनझुना नहीं जो जब चाहे जैसे चाहे जहाँ चाहे बजाते फिरे और रोज नई धुन निकालते चले।
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