शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

मुकम्मल छात्र संघ बनाम तवायफ छात्र संघ

छात्र संघ को लोकतंत्र की नर्सरी के रूप में शुरू से परिभाषित किया जाता रहा है। इस सीढ़ी से देश को अगुवाई तक मिली है सरीखे कई लुभावनी बातें राजनेताओं या कतिपय बुध्ह्जीवियों द्वारा अक्सर सुनने को मिलती हैं। छात्र संघ की जब भी बात होती है तो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय अग्रणी भूमिका वाले इतिहास में होता है। फिर छात्रों के एक चुनावी मंच की चर्चा इस समय बीएचयू से जुड़े लोगों की जुबान पर सुलभ है। अतीत को बतियाते लोग नहीं अघा रहे हैं ,लेकिन जो वर्तमान में छात्र परिषद् नाम देकर चुनाव कराये जाने का डंका पीटा जा रहा है,ये निश्चय ही छात्र संघ के नाम पर एक मिथ्या मजाक और घटिया छलावा है। विश्वविद्यालय के करता-धर्ता चाहते है कि उनके काली करतूतों पर पर्दा पड़ा रहे और छात्रों को एक तावायफी मंच देकर भुलवाये रहा जाये जिससे साप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। जाहिर सी बात है ये मुकम्मल छात्र संघ नहीं हो सकता और जब तक मुकम्मल छात्र संघ के अलावा और किसी भी छलावे और प्रलोभन में छात्र फसते रहेंगें उन्हें उनका पूर्ण अधिकार नहीं मिल सकता।
छात्र परिषद् के इस चुनाव में एक महा सचिव और आठ सचिवों के चुने जाने की व्यवस्था का जिक्र है।उसमें पढ़ाकू छात्र ही चुनाव लडेगा इससे भी कोई गिला शिकवा नहीं है क्योंकि विश्वविद्यालय निश्चय ही पढने कि जगह है लेकिन इससे भी नाकारा नहीं जा सकता कि विश्वविद्यालय का छात्र अगर राजनीती और देश सेवा के लिए आगे आता था तो अपने कैरियर को बनाने के लिए नहीं बल्कि देश को बनाने के लिए ,वो बात दीगर है कि तरुनाई के अंगनाई में किये गए निःस्वार्थ संघर्ष ही उन्हें मुकाम दिलाते रहे और कालांतर में उसमें से बहुतेरे लूट और स्वार्थ के दलदल में फस गएँ। लेकिन इसका प्रतिशत काभी भी सौ नहीं हो सकता उसी में से विचारवान भी आये जो किसी दशा पर दिशा देने की समझ भी रखते हैं।
कहना गलत नहीं होगा की १९५६ से आज तक संसद और विधानसभाए छात्र संघ के लोगों से भरी रही हैं,आज भी देश के गृह मंत्री से लेकर तमाम बड़े राजनेता इस सीढ़ी से संसद तक ,पहुचे है ,लेकिन आज बीएचयू छात्र संघ चुनाव के नाम पर नौटंकी पर सबकी चुप्पी संदेहास्पद है। यह छात्र परिषद् छात्रसंघ का विकल्प नहीं हो सकता। चालीस साल पहले यहाँ कौन छात्र संघ का अध्यक्ष था वह कहा तक पंहुचा इसको बताने वाले बहुतेरे मिल जायेंगे लेकिन पिछले चार बार से छार परिषद् के मनोनीत छात्रों को कौन जानता है ,कारण ये उनकी कमी या गलती
नहीं है बल्कि उनको कोई न जाने या वो आगे न जा सके या देश और दुनिया की सक्रिय राजनीति में उनका किसी प्रकार का हस्तक्षेप और समझ न होसके इसीलिए विश्वविद्यालय के लोगों ने ये व्यवस्था बनाई।
अपना मुकम्मल छात्र संघ पाने से कम किसी भी कीमत पर छात्रों को समझौता नहीं करना चाहिए और उन्हें इस परिषद् के तवायफ छात्र संघ का बहिष्कार कर देना चाहिए। जिससे उनको उनका पूरा अधिकार मिल सके ,और ये नौटंकी बंद हो सके। छात्र परिषद् के लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सटीक न होने के वजह से लोकतंत्र को धोखा देने के जुर्म में विश्वविद्यालय के नीति-नियंताओं को कितना हूँ कोसा जाये कम है ।

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